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...मिखाइल गोर्बाचेव की दो गलतियों से 15 हिस्सों में टूट गया था सोवियत संघ और थम गई थी कोल्ड वॉर

सोवियत संघ के आखिरी राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव का 91 साल की उम्र में निधन हो गया है. वो 1985 से 1991 तक राष्ट्रपति रहे थे. गोर्बाचेव के काल में ही सोवियत संघ का विघटन हुआ था और इससे टूटकर 15 देश बने थे. 25 दिसंबर 1991 को सोवियत संघ का विघटन हो गया था.

मिखाइल गोर्बाचेव लंबे समय से बीमारी से जूझ रहे थे. (फाइल फोटो-Reuters) मिखाइल गोर्बाचेव लंबे समय से बीमारी से जूझ रहे थे. (फाइल फोटो-Reuters)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 31 अगस्त 2022,
  • अपडेटेड 1:40 PM IST

Mikhail Gorbachev: सोवियत संघ के आखिरी राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव का निधन हो गया. वो 91 साल के थे. गोर्बाचेव लंबे समय से बीमारी से जूझ रहे थे. गोर्बाचेव वही राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने बिना खून बहाए शीत युद्ध खत्म कर दिया था. दूसरे विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और सोवियत संघ में सालों तक शीत युद्ध चलता रहा था. एक ओर शीत युद्ध खत्म कराने का ताज उन्हें मिला है तो दूसरी ओर सोवियत संघ को बिखरने से न रोक पाने की नाकामी का दाग भी. 

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मिखाइल गोर्बाचेव वो राष्ट्रपति थे, जो सुधार करना चाहते थे, लेकिन असल में वो अपनी ही सत्ता की कब्र खोद रहे थे. गोर्बाचेव के सामने ही सोवियत संघ बिखर गया था. 

वो सोवियत संघ, जिसने एडोल्फ हिटलर को हराया. वो सोवियत संघ, जिसने अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश के साथ शीत युद्ध किया और परमाणु होड़ में हिस्सा लिया. वो सोवियत संघ, जिसने अंतरिक्ष में पहला उपग्रह भेजा. अंतरिक्ष में जाने वाला पहला इंसान भी सोवियत संघ का ही था. उसका नाम यूरी गागरिन था. एक वक्त सोवियत संघ हर मामलों में आगे था. लेकिन गोर्बाचेव के देखते ही देखते सोवियत संघ बिखर गया और इससे 15 देश बन गए.

25 दिसंबर 1991 को सोवियत संघ टूट गया था. टूटकर 15 नए देश बने- आर्मीनिया, अजरबैजान, बेलारूस, इस्टोनिया, जॉर्जिया, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, लातविया, लिथुआनिया, मालदोवा, रूस, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, यूक्रेन और उज्बेकिस्तान. 

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रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने एक बार कहा था, ये सोवियत संघ के नाम पर 'ऐतिहासिक रूस' का विघटन था. हम पूरी तरह से अलग देश में बदल गए और हजार सालों में हमारे पूर्वजों ने जो बनाया था, वो बिखर गया. 

मिखाइल गोर्बाचेव सोवियत संघ में खुलापन लाना चाहते थे. (फाइल फोटो-AP)

गोर्बाचेवः 1931 में जन्मे, 1985 में राष्ट्रपति बने

1917 में रूस में बोल्शेविक की क्रांति हुई. इस क्रांति ने जार निकोलस द्वितीय को सत्ता से बेदखल कर दिया और रूसी साम्राज्य का अंत हो गया. मजदूर और सैनिकों ने मिलकर सोवियत का गठन किया. सोवियत रूसी शब्द है, जिसका अर्थ होता है असेंबली या परिषद. 1917 में सोवियत संघ बना. 

सोवियत संघ बन तो गया था, लेकिन राजनीतिक अस्थिरता का दौर जारी रहा. बाद में व्लादिमीर लेनिन ने सत्ता अपने हाथ में ले ली. 1922 में लेनिन ने दूर-दराज के राज्यों को रूस में मिलाया और इस तरह आधिकारिक रूप से सोवियत संघ की स्थापना हुई. 

जार की तानाशाही से निकलकर रूस ने लोकतंत्र बनने की कोशिश की, लेकिन आखिरकार तानाशाही ही स्थापित हुई. इनमें सबसे प्रमुख तानाशाह रहे- जोसेफ स्टालिन. सोवियत संघ में संसद भी बनी, लेकिन सारे फैसले कम्युनिस्ट पार्टी करती थी.

सोवियत संघ बन चुका था. इसी बीच 2 मार्च 1931 को प्रिवोलनोय गांव में मिखाइल गोर्बाचेव का जन्म हुआ. गोर्बाचेव स्टालिन को देखते हुए बड़े हुए थे. 1985 में गोर्बाचेव कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव बने और सोवियत संघ के राष्ट्रपति भी. 

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गोर्बाचेव 1985 में कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव बने. (फाइल फोटो-AP)

इस गलती से टूट गया सोवियत संघ!

गोर्बाचेव जब राष्ट्रपति बने, तब सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था बिखर चुकी थी और राजनीतिक ढांचा भी तबाह हो चुका था. गोर्बाचेव सोवियत संघ को लोकतंत्र और निजी स्वतंत्रता के सिद्धांतों पर ले जाना चाहते थे. इसके लिए गोर्बाचेव ने राजनीतिक-आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया शुरू कर दी.

इसके लिए गोर्बाचेव दो नीतियां लेकर आए- पेरेस्त्राइंका और ग्लासनोस्त. पेरेस्त्राइंका का मतलब था लोगों को काम करने की आजादी और ग्लासनोस्त का मतलब था राजनीतिक और अर्थव्यवस्था में खुलापन. स्टालिन की तानाशाही देख चुके लोगों के लिए ये हैरान करने वाला फैसला था. धीरे-धीरे लोगों में खुलापन आने लगा. लोग कारोबार करने लगे. संपत्ति खरीदने लगे. बाजार पर सरकार का नियंत्रण कम हो गया, जिससे कीमतें भी बढ़ने लगीं. 

लेकिन इसने भ्रष्टाचार को बढ़ा दिया. बिना रिश्वत दिए कोई काम नहीं होता था. लोग सरकार की नीतियों का खुलकर विरोध करने लगे. गोर्बाचेव का मानना था कि नई पीढ़ी कुछ नया करेगी, विदेशी निवेश आएगा, देश का सरकारी खजाना भरेगा. लेकिन गोर्बाचेव को लेकर लोगों का नजरिया बदलने लगा था. अब बहुत कम लोग उनके साथ खड़े थे. इस खुलेपन की नीति की वजह उनकी अपनी ही कम्युनिस्ट पार्टी में विरोध होने लगा था.

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25 दिसंबर 1991 को सोवियत संघ आधिकारिक रूप से टूट गया. (फाइल फोटो-AFP)

ऐसे बिखरने लगा सोवियत संघ

मॉस्को और रूसी गणराज्य में असंतोष पनप चुका था. ये कम्युनिज्म के अंत का संकेत था. ये चिंगारी धीरे-धीरे दूसरे गणराज्यों तक पहुंचने लगी. बाल्टिक स्टेट (एस्टोनिया, लिथुआनिया और लातविया) में युवाओं ने आजादी की मांग शुरू कर दी. 6 सितंबर 1991 को इन तीनों देशों ने खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया. 

धीरे-धीरे अजरबैजान, जॉर्जिया, आर्मीनिया, यूक्रेन और माल्डोवा में भी प्रदर्शन होने लगे. सबका एक ही मकसद था- सोवियत रूस से अलग अस्तित्व. धीरे-धीरे सारे देश खुद को स्वतंत्र घोषित करने लगे. 21 दिसंबर 1991 को सोवियत संघ से अलग होकर बने सभी देशों के राष्ट्रपतियों को बुलाया गया और एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए. इसके साथ ही सभी देशों को औपचारिक रूप से स्वतंत्रता मिल गई.

25 दिसंबर 1991 की शाम स्थानीय समय के अनुसार 7 बजकर 35 मिनट पर गोर्बाचेव नेशनल टीवी पर आए. क्रेमलिन से सोवियत संघ का झंडा उतारा गया और आखिरी बार सोवियत संघ के राष्ट्रगान की धुन बजाई गई. शाम 7 बजकर 45 मिनट पर रूसी झंडा फहराया गया. 

सोवियत संघ के बिखराव से पुतिन नाराज थे. (फाइल फोटो-AP)

जब सोवियत संघ टूट रहा था, तब रूस के मौजूदा राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 39 साल के थे. उस समय पुतिन KGB में जासूस थे. उन्हें क्रेमलिन से सोवियत संघ का झंडा उतरते देखना अच्छा नहीं लग रहा था. पुतिन ने एक बार कहा था, 'हमारे पूर्वजों ने हजार सालों में जो बनाया था, वो बिखर गया था.'

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गोर्बाचेव के काल में कोल्ड वॉर खत्म होने की मुहिम तो शुरू हो ही गई थी. उन्हें कोल्ड वॉर खत्म करने का श्रेय भी दिया जाता है. लेकिन जब सोवियत संघ टूटा तो कोल्ड वॉर पूरी तरह खत्म हो गया. क्योंकि दुनिया एकध्रुवीय हो चुकी थी. अब अमेरिका ही एकमात्र सुपरपावर बचा था. इस विघटन से संभलने में रूस को दो दशक से ज्यादा समय लग गया. पुतिन के शासन में रूस एक बार फिर बड़ी शक्ति बनकर उभरा है और दुनिया फिर दो धड़ों में बंटती दिखाई दे रही है.

 

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