
भारतीय विदेश नीति वैसे तो हमेशा से ही स्वतंत्र रही है, लेकिन बीते कुछ वर्षों में इसमें काफी बदलाव देखने को मिले हैं. हमने क्वाड को देखा, जिसके सदस्य ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, जापान और भारत हैं. इसके बाद हमें भारत का तीन देशों के साथ ट्राइलेटरल (त्रिपक्षीय) गठजोड़ भी दिखा. हाल में ही यूएनजीए (संयुक्त राष्ट्र महासभा) की 77वीं बैठक के इतर भारत ने फ्रांस और यूएई के साथ कुछ मुद्दों पर त्रिपक्षीय गठजोड़ किया है.
इसी से एक सवाल निकलकर आया कि क्या मोदी सरकार के आने के बाद भारत की विदेश नीति में मिनी लेटरलिज्म का एक नया फ्लेवर आ चुका है? अगर बीते कुछ वर्षों की तरफ एक नजर डालें तो हमें महसूस होगा कि विदेश नीति की मिनि लेटरल्स जैसे, ट्राय लेटरल और क्वाडिलेटरल के साथ इंगेजमेंट काफी ज्यादा बढ़ चुकी है. तो चलिए आज इसी बारे में विस्तार से जानते हैं.
कैसे बदलता गया वर्ल्ड ऑर्डर?
सबसे पहले जान लेते हैं कि मल्टी लेटरलिज्म क्या है? यह एक ग्लोबल वर्ल्ड ऑर्डर है. पहले इतिहास में जाते हैं. जब विश्व युद्ध -1 हुआ, विश्व युद्ध-2 हुआ, या इससे पहले के समय में... तब बैलेंस ऑफ पावर का कॉन्सेप्ट था. यानी शक्ति का संतुलन बनाना. हालांकि 1945 के बाद बाइपोलर मॉडल आया, इसमें एक तरफ अमेरिका और दूसरी तरफ सोवियत संघ (USSR) था. दुनिया दो धड़ों में बंटी हुई थी. हालांकि भारत ने तब भी दोनों से ही अपने संबंध मजबूत रखे और गुटनिरपेक्षता का पालन किया.
इसके बाद 1991 आते-आते ये वर्ल्ड ऑर्डर भी बदल गया और यूनिपोलर वर्ल्ड ऑर्डर बना. अब जब 21वीं सदी आ गया है, तो हम वर्ल्ड ऑर्डर का मल्टी पोलारिज्म और मल्टी लेटरलिज्म के तौर पर वर्णन कर सकते हैं. हमारी भारतीय विदेश नीति भी मल्टी लेटरलिज्म को प्रमोट करती है. अब वह इसे प्रमोट करने के लिए मिनी लेटरलिज्म का भी इस्तेमाल कर रही है. क्योंकि कई देश ऐसे हैं, जो भारत के साथ मिनी लेटरल (छोटे ग्रुप्स) और मल्टी लेटरल (बड़े ग्रप्स) दोनों तरह के ग्रुप में शामिल हैं.
क्या भारत मल्टी लेटरलिज्म को मिनी लेटरलिज्म के जरिए प्रमोट कर रहा है?
सबसे हालिया उदाहरण मिनी लेटरलिज्म का है, यानी भारत, फ्रांस और यूएई के बीच हुआ त्रिपक्षीय गठजोड़. यूएनजीए की 77वीं बैठक के इतर भारत ने एक और ट्राय लेटरल ग्रुप की शुरुआत की थी. इसकी शुरुआत बीते साल सितंबर महीने में हुई. इसमें एक हैरानी की बात ये है कि तीनों देश अलग-अलग क्षेत्रों से हैं.
जैसे भारत दक्षिण एशियाई देश है, फ्रांस एक यूरोपीय देश और यूएई पश्चिम एशियाई देश है. पहली बार हुई त्रिपक्षीय बैठक में चर्चा का एक प्रमुख मुद्दा हिंद प्रशांत क्षेत्र रहा. इस ट्राइलेटरल की नींव जुलाई 2020 में रखी गई थी, जब तीनों देशों के मंत्रियों ने मुलाकात की थी. तब भी विभिन्न मुद्दों पर चर्चा हुई थी.
इसी चर्चा को मूल रूप देने के लिए 2022 में बैठक हुई और अब 2023 में इस गठजोड़ को और मजबूत किया जा रहा है. इसी साल 4 फरवरी को तीनों देशों ने इस ढांचे के भीतर सहयोग के प्रमुख क्षेत्रों की पहचान करके उनकी रूपरेखा दुनिया के सामने रखी है. इनके इस गठजोड़ को Trilateral Cooperation Initiative (त्रिपक्षीय सहयोग पहल) नाम दिया गया है.
तीनों देशों ने रक्षा, परमाणु ऊर्जा और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में सहयोग को लेकर रोडमैप पेश किया. इसके लिए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 4 फरवरी को फ्रांस की विदेश मंत्री कैथरीन कोलोना और यूएई के विदेश मंत्री शेख अब्दुल्ला बिन जायद अल नाहयान के साथ फोन पर बातचीत की थी.
इस दौरान तीनों मंत्री सहयोग के क्षेत्रों की पहचान करते हुए त्रिपक्षीय सहयोग के ढांचे को अधिक मजबूत करने पर सहमत हुए थे.
अभी क्या बदलाव देखने को मिल रहा है?
पारंपरिक रूप से भारत 21वीं शाताब्दी से पहले छोटे-छोट ग्रुप्स में अधिक विश्वास नहीं करता था, लेकिन अब चीजें बदल गई हैं. बेशक 1985 में सार्क आया, लेकिन इसकी पहल भी बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे छोटे-छोटे देशों की तरफ से की गई थी.
भारत इससे पहले आईबीएसए (भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका), आरआईसी (रूस, भारत और चीन), सार्क (भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, भूटान और मालदीव), ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) और एससीओ (भारत, कजाखस्तान, चीन, किर्गिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान, पाकिस्तान और उज्बेकिस्तान) में भी शामिल हुआ था.
हालांकि बीते 10-15 साल में काफी बदलाव देखने को मिला है. भारत अब मिनी लेटरलिज्म की तरफ पहले से अधिक ध्यान दे रहा है. फ्रांस, यूएई और भारत की त्रिपक्षीय बैठक से पहले भी ऐसी बैठकें हुई हैं. जैसे-
तीन देशों का ग्रुप-
चार देशों का ग्रुप-
यूएनजीए की 77वीं बैठक के इतर भारत, फ्रांस और यूएई की बैठक के अलावा, क्वाड की भी बैठक हुई थी. भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने इसे लेकर ट्वीट किए थे. इसके अलावा पिछले साल ही ऑस्ट्रेलिया, भारत और इंडोनेशिया के त्रिपक्षीय गठजोड़ की भी नींव रखी गई थी. यानी भारतीय विदेश नीति में मिनी लेटरल्स बढ़ रहे हैं.
इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार, यूएनजीए के इतर हुई फ्रांस, यूएई और ऑस्ट्रेलिया की बैठक के बाद आधिकारिक सूत्रों ने इससे जुड़े कारण बताए थे. इसमें कहा गया कि पहले की ग्रुपिंग्स में शामिल देश एक ही क्षेत्र से हुआ करते थे, जिनके हित सामान्य थे.
मगर अब कूटनीति बदल रही है और ऐसे देश साथ आ रहे हैं, जो न तो पड़ोसी हैं, न ही एक क्षेत्र में एक-दूसरे के बगल में मौजूद हैं, लेकिन फिर भी कुछ मुद्दों पर इनके सामान्य हित हैं और इसी वजह से ये एक-दूसरे के साथ काम कर रहे हैं.
मिनी लेटरल्स के बढ़ने के प्रमुख कारण-