
अबकी बार गणतंत्र दिवस परेड पर पड़ोसी मुल्क चीन और पाकिस्तान समेत दुनिया भर की निगाह गड़ी हुई है. इसकी वजह यह है कि इस बार गणतंत्र दिवस पर भारत 10 आसियान देशों के राष्ट्राध्यक्षों की मेजबानी कर रहा है. यह पहली बार है, जब सभी आसियान देश गणतंत्र दिवस समारोह में शिरकत करने भारत पहुंचे हैं. इससे मोदी सरकार को चीन के दबदबे को चुनौती देने और एक्ट ईस्ट पॉलिसी को रफ्तार देने में मदद मिलेगी.
गुरुवार को इस दिशा में भारत और आसियान देश एक कदम भी बढ़ा दिया है. भारत और आसियान के 10 देश समुद्री क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए एक तंत्र बनाने पर सहमत हो गए हैं. दरअसल, आसियान के कुछ देश चीन से डरे हुए हैं और उससे निपटने के लिए भारत को आगे लेकर आना चाहते हैं. अब शुक्रवार को राजपथ से दुनिया में भारत की बढ़ती ताकत की धमक साफ सुनाई देगी.
एक तरफ जहां आसियान देशों की संस्कृति और संगीत की लहर होगी, तो दूसरी ओर जमीन से आसमान तक भारतीय तिरंगे के साए तले आसियान देशों के झंडे लहराएंगे और इंटरनेशनल डिप्लोमेसी में इंडिया का 10 का दम दिखेगा. भारत और आसियान देशों के एक साथ आने से दोनों पक्षों को फायदा दिख रहा है. चीन से डरे हुए कुछ आसियान सदस्य देश उससे निपटने के लिए भारत को आगे लेकर आना चाहते हैं.
खासकर ये आसियान देश दक्षिण चीन सागर विवाद को हल करने के लिए भारत की मदद चाहते हैं. मालूम हो कि दक्षिण चीन सागर कई दक्षिणी-पूर्वी एशियन देशों से घिरा है. इनमें ताइवान, फिलीपीन्स, मलयेशिया, इंडोनेशिया और वियतनाम जैसे आसियान देश शामिल हैं. साल 1947 में चीन ने एक मैप के जरिए दक्षिण चीन सागर के पूरे इलाके को अपने देश की सीमाओं में शामिल कर लिया था, जबकि वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया और ब्रूनेई जैसे आसियान देश चीन के इस दावे को खारिज करते हैं.
दक्षिण चीन सागर विवाद की एक बड़ी वजह इस क्षेत्र का आर्थिक महत्व भी है. दुनिया के एक तिहाई व्यापारिक जहाज इस समुद्री इलाके से गुजरते हैं. भारत की बात करें, तो उसका 50 से 55 प्रतिशत समुद्री व्यापार यहीं से होता है. इसके अलावा दक्षिण चीन सागर के गर्त में तेल और गैस का अकूत भंडार है. यही वजह है कि दक्षिण चीन सागर से जुड़े देशों के कई इलाकों पर अपना हक जताता है. भारत चीन के इस दबदबे को तोड़ना चाहता है और आसियान देश भी दक्षिण चीन सागर इलाके में चीन के मुकाबले के लिए भारत को तैयार करना चाहते हैं.