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मालदीव की संसद में चीन समर्थक मुइज्जू की प्रचंड जीत! भारत के लिए कितनी चिंता की बात?

चीन समर्थक मोहम्मह मुइज्जू भले ही मालदीव के राष्ट्रपति हैं लेकिन संसदीय चुनाव के पहले तक वो खुद के फैसले नहीं पा रहे थे. ऐसा इसलिए क्योंकि संसद में उनकी पार्टी अल्पमत में थी लेकिन रविवार को हुए चुनाव में उनकी पार्टी को प्रचंड बहुमत मिला है जो कि भारत के लिए चिंता की बात है.

मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू की पार्टी को संसदीय चुनाव में प्रचंड बहुमत मिला है (Getty Images) मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू की पार्टी को संसदीय चुनाव में प्रचंड बहुमत मिला है (Getty Images)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 24 अप्रैल 2024,
  • अपडेटेड 10:22 PM IST

मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के चीन समर्थक रुख को देश की जनता का भारी समर्थन मिल गया है जिसका सबूत संसदीय चुनाव में उनकी पीपुल्स नेशनल कांग्रेस (PNC) पार्टी की भारी जीत से मिला है. रविवार को हुए मालदीव के संसदीय चुनाव में पीएनसी को प्रचंड बहुमत मिला है.

पीएनसी ने मालदीव की संसद मजलिस की 93 सीटों में से 90 सीटों पर चुनाव लड़ा था. 86 सीटों के नतीजे सामने आ चुके हैं जिसमें मुइज्जू की पार्टी ने 66 सीटों पर जीत दर्ज की है. यह संख्या सदन में दो तिहाई बहुमत से भी ज्यादा है.

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मजलिस में प्रचंड जीत भारत विरोधी माने जाने वाले राष्ट्रपति मुइज्जू  के लिए बेहद अहम है क्योंकि अब उनकी सरकार को संसद में कोई भी कानून पास करने में परेशानी नहीं आएगी. यह भारत के लिए चिंता का विषय है क्योंकि चुनाव से पहले संसद में भारत समर्थक माने जाने वाली पार्टी मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी का बहुमत था लेकिन चुनाव नतीजों ने बाजी पलट दी है.

मालदीव संसदीय चुनाव के नतीजे भारत के लिए अहम क्यों हैं?

मालदीव की संसद देश की कार्यकारिणी की देखरेख करती है और यह राष्ट्रपति के फैसलों पर भी रोक लगा सकती है. हालिया चुनाव से पहले, पीएनसी संसद में उस गठबंधन का हिस्सा थी जो सदन में अल्पमत में था. इसका मतलब यह था कि भले ही मुइज्जू राष्ट्रपति थे, लेकिन उनके पास अपनी नीतियों को आगे बढ़ाने के लिए राजनीतिक ताकत नहीं थी.

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अब तक मजलिस में पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मह सोलिह के नेतृत्व वाली मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) को बहुमत था. संसद में भारत समर्थक माने जाने वाले सोलिह की पार्टी के पास 41 सीटें थीं. लेकिन समाचार एजेंसी एएफपी की रिपोर्ट के मुताबिक, एमडीपी अब एक दर्जन सीटों पर जीत के साथ अपमानजनक हार की तरफ बढ़ रही है.

संसद में बहुमत होने के कारण एमडीपी ने कई योजनाओं को रोक दिया था और इसके नेताओं ने सार्वजनिक रूप से मुइज्जू की भारत विरोधी नीतियों की आलोचना की थी. 

मुइज्जू के एक वरिष्ठ सहयोगी ने समाचार एजेंसी एएफपी से बात करते हुए कुछ समय पहले कहा था, 'मुइज्जू भारतीय सैनिकों को वापस भेजने के वादे पर सत्ता में आए थे और वह इस पर काम कर रहे हैं. संसद सहयोग नहीं कर रही है.'

लेकिन अब चुनाव के बाद मजलिस में स्थिति पूरी तरह बदल गई है.

मजलिस चुनाव को चीन के साथ आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने की मुइज्जू की योजनाओं के टेस्ट के रूप में देखा गया था. पद संभालने के बाद से, राष्ट्रपति ने चीन की सरकारी कंपनियों को बड़े-बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर कॉन्ट्रैक्ट्स दिए हैं.

मालदीव का बीजिंग की ओर बढ़ता झुकाव और भारत की चिंता

पिछले साल राष्ट्रपति चुनाव में चुने जाने के बाद से, मुइज्जू ने चीन के साथ मालदीव के रिश्तों को मजबूत किया है जिसे भारत चिंता के नजरिए से देख रहा है. राष्ट्रपति चुने जाने के तुरंत बाद मुइज्जू ने चीन का दौरा किया जिसमें वो चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिले.

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चीन से वापस लौटने के बाद उन्होंने कहा था, 'हम छोटे हो सकते हैं, लेकिन इससे उन्हें हमें धमकाने का लाइसेंस नहीं मिल जाता है.' हालांकि उन्होंने किसी देश का नाम नहीं लिया, लेकिन इस टिप्पणी को भारत पर कटाक्ष के तौर पर देखा गया.

मोहम्मद मुइज्जू ने अपना चुनावी वादा निभाते हुए द्वीप देश में मानवीय कार्यों के लिए तैनात भारतीय सैनिकों को भारत वापस भेजने में सफल रहे हैं. हालांकि, मालदीव में मौजूद 80 से अधिक सैनिकों की दो खेप वापस आई है और बाकी बचे सैनिक 10 मई तक भारत वापस आ जाएंगे.

हालांकि, पिछले महीने जब भारत ने मालदीव को वित्तीय मदद दी थी तब मुइज्जू ने उसे स्वीकार कर लिया था. मुइज्जू ने भारत की मदद स्वीकार करते हुए कहा था, 'भारत मालदीव का करीबी सहयोगी बना रहेगा.'

पिछले साल के अंत में मालदीव पर भारत का लगभग 40.09 करोड़ डॉलर बकाया था.

भारत ने मुइज्जू के विरोधी रुख के बाद भी अब तक संयमित रुख अपनाया है और तनावपूर्ण संबंधों को कम महत्व दिया है. मुइज्जू के चुनाव के बाद नई दिल्ली-मालदीव संबंधों के बारे में पूछे जाने पर विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने कहा था कि पड़ोसियों को एक-दूसरे की जरूरत होती है. उन्होंने कहा था, 'इतिहास और भूगोल बहुत शक्तिशाली ताकतें हैं. इससे कोई बच नहीं सकता.'

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