
पिछले दो महीनों से हिंसा झेल रहे मणिपुर को लेकर यूरोपीय यूनियन (EU) की ब्रुसेल्स स्थित संसद में बुधवार को एक प्रस्ताव पेश किया गया जिसे भारत सरकार ने खारिज कर दिया है. भारत सरकार का कहना है कि मणिपुर का मुद्दा भारत के लिए एक आंतरिक मुद्दा है. भारत का कहना है कि यूरोपीय संसद में प्रस्ताव पर बहस भारत के मणिपुर हिंसा पर अपना रुख स्पष्ट करने के बावजूद हो रही है.
यूरोपीय संसद में 12 जुलाई को छह संसदीय दलों ने एक प्रस्ताव पेश किया जिसमें मणिपुर हिंसा को न रोक पाने के लिए मोदी सरकार और उनकी पार्टी भारतीय जनता पार्टी की आलोचना की गई थी. प्रस्ताव में हिंसा की निंदा करते हुए ईयू के शीर्ष अधिकारियों को निर्देश दिया गया था कि वो स्थिति में सुधार के लिए भारत से बात करें.
मणिपुर में 3 मई को हिंसा भड़की थी जिसमें अब तक कम से कम 142 लोग मारे गए हैं और 54,000 लोग विस्थापित होने पर मजबूर हुए हैं.
'यह हमारा आंतरिक मामला है'
भारत ने ईयू के इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया है. दिल्ली में पत्रकारों से बात करते हुए विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने कहा कि मणिपुर की स्थिति पर भारत सरकार ने अपना रुख स्पष्ट कर दिया है और यूरोपीय सांसदों से भी इस संबंध में बात की है बावजूद इसके ईयू संसद में इस प्रस्ताव को पेश किया गया है.
उन्होंने कहा, 'यह पूरी तरह से भारत का आंतरिक मामला है. हम यूरोपीय संसद में होने वाली घटनाओं से अवगत हैं. हमने इस मामले से संबंधित यूरोपीय संसद के सदस्यों से संपर्क भी किया है. हमने यह पूरी तरह से स्पष्ट कर दिया है कि यह पूरी तरह से भारत का आंतरिक मामला है.'
विदेश सचिव ने हालांकि मणिपुर के एक अखबार में छपी एक रिपोर्ट पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया जिसमें कहा गया था कि भारत सरकार ने यूरोपीय संसद के सदस्यों से बात करने के लिए एक लॉबिंग फर्म को काम पर लगाया है. रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत सरकार ने ईयू के सांसदों से मणिपुर हिंसा पर बात करने के लिए ब्रुसेल्स स्थित एक प्रमुख लॉबिंग फर्म 'अल्बर और गीगर' को हायर किया जिसने कथित तौर पर यूरोपीय संसद के सदस्यों को भारत सरकार की तरफ से एक पत्र भेजा था.
यूरोपीय संसद के इस प्रस्ताव पर गुरुवार को मतदान होना है.
मणिपुर हिंसा पर ईयू के प्रस्ताव में किन बातों का उल्लेख?
यूरोपीय संघ की संसद में छह संसदीय समूहों की तरफ से पेश किए गए प्रस्ताव में मणिपुर में दो महीने से चल रही हिंसा से निपटने के मोदी सरकार के तरीकों की आलोचना की गई है.
प्रस्ताव में कहा गया है, 'हिंदू बहुसंख्यकवाद को बढ़ावा देने वाली राजनीति से प्रेरित, विभाजनकारी नीतियों और आतंकवादी समूहों की गतिविधि में बढ़ोतरी को लेकर हम चिंतित हैं.'
प्रस्ताव में मणिपुर हिंसा के मद्देनजर प्रदेश में कर्फ्यू लगाने और इंटरनेट पर रोक लगाने के राज्य सरकार के फैसले की भी आलोचना की गई और कहा गया कि इससे मीडिया और सिविल सोसाइटी ग्रुप्स हिंसा की सही सूचना नहीं जमा कर पा रहे और उन्हें रिपोर्टिंग में बाधा आ रही है.'
प्रस्ताव में केंद्र सरकार से आग्रह किया गया कि वो संयुक्त राष्ट्र की सिफारिशों को मानते हुए आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर्स एक्ट (AFPSA) को निरस्त करे और सुरक्षा बलों द्वारा बल के इस्तेमाल पर संयुक्त राष्ट्र के बुनियादी सिद्धांतों का पालन सुनिश्चित करे.
प्रस्ताव में आगे कहा गया, 'हाल के वर्षों में भारत में धार्मिक स्वतंत्रता में गिरावट आई है. भेदभाव वाले कानूनों और प्रथाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है और उन्हें लागू किया जा रहा है जो ईसाई, मुस्लिम, सिख और आदिवासी समुदायों पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं.'
प्रस्ताव में मणिपुर से सभी पक्षों से संयम बरतने के लिए कहा गया है. नेताओं से आह्वान किया गया है कि वो लोगों के बीच विश्वास कायम करें और तनाव खत्म करने के लिए निष्पक्ष की भूमिका निभाने के लिए भड़काऊ बयानबाजी बंद करें.
प्रस्ताव में भारत सरकार, राजनीतिक दलों के नेताओं और धार्मिक नेताओं से आग्रह किया है कि शांति स्थापित करने के लिए तुरंत कदम उठाए जाएं.
अमेरिकी राजदूत ने मणिपुर हिंसा पर रखी थी बात
भारत में अमेरिका के राजदूत एरिक गार्सेटी ने भी मणिपुर हिंसा पर अपनी बात रखी थी. इसी महीने कोलकाता में अमेरिकन सेंटर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोलते हुए अमेरिकी राजदूत ने कहा था कि यह कोई राजनीतिक समस्या नहीं बल्कि एक मानवीय समस्या है.
उन्होंने कहा था, 'हम मणिपुर में शांति के लिए प्रार्थना करते हैं. मुझे नहीं लगता कि जब हम बच्चों और लोगों को हिंसा में मरते देख रहे हैं तो हमें इसकी चिंता करने के लिए भारतीय होने की जरूरत है. अगर हमसे मदद मांगी गई तो हम हर तरह से मदद के लिए तैयार हैं. हम जानते हैं कि यह भारत का मसला है. हम शांति के लिए प्रार्थना करते हैं और उम्मीद है जल्द ही शांति कायम होगी.'
क्यों भड़की है मणिपुर में हिंसा?
मणिपुर हिंसा 3 मई को उस वक्त भड़की प्रदेश की बहुसंख्यक मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग के खिलाफ अल्पसंख्यक कुकी आदि जनजाती समुदायों ने एक रैली निकाली थी. यह रैली हिंसक हो गई और मैतेई समुदाय पर हमले किए गए.
बदले में मैतेई समुदाय ने भी कुकी समुदाय पर हमले शुरू कर दिए और उनके इलाके में रह रहे कुकी लोगों पर हमले होने लगे. उनके घरों को जला दिया गया. उधर, कुकी लोगों ने भी अपने इलाके में रह रहे मैतेई लोगों पर हमले शुरू कर दिए. इस कारण दोनों तरफ से हजारों लोग अपने घरों को छोड़कर राहत शिविरों में रहने को मजबूर हो गए.