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पाकिस्तानी हुक्मरानों के लिए अनलकी रहा है अप्रैल, पर बच निकले नवाज

पाकिस्तान में हुक्मरानों के लिए अप्रैल महीना मुश्किलों वाला साबित होता रहा है. दरअसल देश के इतिहास पर नजर डालें तो इसी महीने पाकिस्तानी हुक्मरानों का तख्तापलट हुआ है, उन्हें उम्र कैद की सजा मिली है और फांसी के फंदे पर लटकाया गया है. हालांकि प्रधानमंत्री नवाज शरीफ अप्रैल महीने का शिकार बनने से बाल- बाल बच गए हैं.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जश्न मनाते नवाज समर्थक सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जश्न मनाते नवाज समर्थक
साद बिन उमर
  • इस्लामाबाद,
  • 20 अप्रैल 2017,
  • अपडेटेड 8:24 PM IST

पाकिस्तान में हुक्मरानों के लिए अप्रैल महीना मुश्किलों वाला साबित होता रहा है. दरअसल देश के इतिहास पर नजर डालें तो इसी महीने पाकिस्तानी हुक्मरानों का तख्तापलट हुआ है, उन्हें उम्र कैद की सजा मिली है और फांसी के फंदे पर लटकाया गया है. हालांकि प्रधानमंत्री नवाज शरीफ अप्रैल महीने का शिकार बनने से बाल- बाल बच गए हैं.

दरअसल, पनामा गेट्स को लेकर पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट की ओर से 3-2 से दिए गए एक बंटे हुए फैसले के कारण प्रधानमंत्री नवाज शरीफ अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब रहे. पीठ ने कहा कि शरीफ को प्रधानमंत्री पद से हटाने के नाकाफी सबूत हैं. हालांकि, पीठ ने एक हफ्ते के अंदर एक संयुक्त जांच टीम (JIT) गठित करने का आदेश दिया, ताकि शरीफ के परिवार के खिलाफ धनशोधन के आरोपों की जांच की जा सके. यह टीम हर दो हफ्ते के बाद अपनी रिपोर्ट पेश करेगी और 60 दिन में जांच पूरी करेगी.

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पहले भी दो बार बने अप्रैल के शिकार
यहां यह गौर करने वाली बात है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उसी महीने आया है, जिस महीने अब से पहले शरीफ को 2000 में उम्र कैद की सजा सुनाई गई थी और उनकी सरकार 1993 में बर्खास्त कर दी गई थी. प्रधानमंत्री शरीफ की सरकार को तत्कालीन राष्ट्रपति गुलाम इशहाक खान ने कथित भ्रष्टाचार को लेकर अप्रैल 1993 में बर्खास्त कर दिया था. इसके बाद छह अप्रैल 2000 को कुख्यात विमान अपहरण मामले में एक अदालत ने उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई थी.

भुट्टो को भी अप्रैल में दी गई थी फांसी
हालांकि, नवाज के साथ दूसरे पाकिस्तानी प्रधानमंत्रियों के लिए भी अप्रैल का महीना बुरा ही रहा है. पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को एक प्रमुख नेता की हत्या की आपराधिक साजिश रचने को लेकर 4 अप्रैल 1979 को फांसी के फंदे पर लटका दिया गया था.

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वहीं इसके कई बरस बाद 26 अप्रैल 2012 को तत्कालीन प्रधानमंत्री युसूफ रजा गिलानी को अदालत के एक आदेश की अवहेलना का दोषी ठहराया गया. उसी दिन गिलानी को इस्तीफा देना पड़ा था.

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