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नेपाल में चुनाव के बाद नतीजे आए लेकिन सरकार नहीं बनी, राष्ट्रपति ने दिया 7 दिन का अल्टीमेटम

नेपाल में चुनावी नतीजे घोषित होने के बाद भी कोई दल सरकार नहीं बना सका है. इस वजह से राष्ट्रपति की तरफ से अब सात दिन का अल्टीमेटम दिया जा चुका है. जिस भी दल को अपना दावा पेश करना है, उसके पास 25 दिसंबर तक का समय है.

पीएम शेर बहादुर देउबा पीएम शेर बहादुर देउबा
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 18 दिसंबर 2022,
  • अपडेटेड 10:52 PM IST

नेपाल में चुनाव के बाद सियासी सरगर्मी तेज हो गई है. नतीजों से स्पष्ट है कि कि प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा की नेपाल कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. वहीं केपी ओली की पार्टी 79 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर खड़ी है. अब क्योंकि चुनाव में किसी को भी बहुमत नहीं मिला है, अभी तक नेपाल में किसी की भी सरकार नहीं बन पाई है. इस वजह से नेपाल के राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने पार्टियों को सात दिन का अल्टीमेटम दे दिया है.

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नेपाल चुनाव के क्या नतीजे?

अब राष्ट्रपति की तरफ से भी ये अल्टीमेटम इसलिए दिया गया है क्योंकि हाल ही में चुनाव आयोग ने औपचारिक नतीजे घोषित कर दिए. बताया गया कि इस चुनाव में किसी भी एक दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है. दो से तीन सहयोगी दलों को साथ लाकर ही सत्ता में आया जा सकता है. अब जिसे भी सरकार बनानी है, उस दल को दिसंबर 25 को शाम पांच बजे तक अपना दावा पेश करना होगा. अभी के लिए नतीजों की बात करें तो नेपाली कांग्रेस ने 275 सीटों में से 89 जीती हैं, CPN-UML के खाते में 78 सीटें गई हैं और CPN-Maoist को 32 सीटों से संतुष्ट करना पड़ा है. पहली बार चुनाव लड़ रही राष्ट्रीय स्वतंत्रता पार्टी ने भी 20 सीटे अपने नाम की हैं, जनता समाजवादी पार्टी ने 12 सीटें जीती हैं जनमत पार्टी के खाते में 6 सीटें गई हैं.

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सत्ता को लेकर क्या डील हुई?

नतीजों के तुरंत बाद ये स्पष्ट हो गया था कि शेर बहादुर देउबा के पास एक बार फिर प्रधानमंत्री बनने का सुनहरा मौका है. अभी बातचीत का दौर जारी है, कई दलों के साथ मंथन हो रहा है, पॉवर शेयरिंग को लेकर बातचीत चल रही है. इसी कड़ी में शेर बहादुर देउबा ने सीपीएन-माओइस्ट सेंटर के अध्यक्ष पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ से मुलाकात की है. उस मुलाकात में समर्थन देने की बात तो हुई है, लेकिन शर्त ये रखी है कि प्रधानमंत्री की कुर्सी एक नहीं दो लोगों के हिस्से में आएगी. यानी कि पहले ढाई साल प्रचंड प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं, फिर दूसरे हाफ में देउबा को मौका मिले. अभी तक ये स्पष्ट नहीं है कि देउबा की तरफ से क्या जवाब दिया गया है. वे इस डील के लिए राजी हैं या नहीं, इसे लेकर कोई बयान जारी नहीं किया गया है.

देउबा की चुनौती बड़ी क्यों?

वैसे इस समय नेपाल कांग्रेस की चुनौती भी छोटी नहीं है. सबसे बड़ी पार्टी के साथ-साथ पार्टी इस समय सबसे ज्यादा पीएम उम्मीदवार के साथ भी खड़ी है. कहने को शेर बहादुर देउबा इस रेस में काफी आगे चल रहे हैं, लेकिन कई दूसरे नेता भी पीएम बनने के सपने देख रहे हैं. इसी वजह से अभी तक संसदीय बोर्ड की बैठक नहीं हुई है.
 

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