
नेपाल में चल रहे राजीनीतिक घमासान के बीच नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने अपने खिलाफ एक्शन लेने के पार्टी के फैसले को नकार दिया है. उन्होंने कहा है कि एक साजिश के तहत उन्हें संसद भंग करने के लिए बाध्य किया गया है. बीते रविवार केपी शर्मा संसद भंग करने के लिए राष्ट्रपति से मिले थे. आपको बता दें कि केपी शर्मा ने ये फैसला तब लिया है जबकि राजनीतिक सत्ता को लेकर सत्तारूढ़ पार्टी के ही पूर्व प्रधानमंत्री पुष्पकमल दहल प्रचंड से ही उन्हें टक्कर मिल रही थी.
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''माय रिपब्लीका'' की रिपोर्ट के अनुसार ओली ने कहा कि मुझे संसद भंग करने का फैसला लेने के लिए इसलिए बाध्य होना पड़ा क्योंकि मैं पार्टी के अंदर चल रही राजनीती से चिंतित था. मेरे खिलाफ अंतरराष्ट्रीय-राष्ट्रीय ताकतों के साथ मिलकर साजिशें रची जा रही थीं. ओली ने आगे कहा कि मैंने संसद भंग करने का फैसला तब लिया था जब मुझे राष्ट्रपति बिद्या भंडारी पर महाभियोग चलाये जाने के प्लान के बारे में पता चला. जब पता चला कि उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जाएगा, इसे जानने के बाद ही मैंने संसद भंग करने का फैसला लिया.''
''हमें लोगों से क्षमा मांगनी चाहिए और दोबारा चुनाव करवाने चाहिए, क्योंकि जो वायदे हमने लोगों से किए थे हमने पूरे नहीं किए.''
सत्तारूढ़ पार्टी यानी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी की स्टैंडिंग कमिटी ने ओली के इस कदम को संवैधानिक, अलोकतांत्रिक और इकतरफा बताया है और प्रधानमंत्री के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की अनुशंसा की है. 'काठमांडू पोस्ट' के अनुसार ओली ने इस कदम का विरोध ये करते हुए किया है कि ये फैसला पार्टी में दूसरे नंबर के पद के द्वारा लिया गया है जो कि पार्टी के संविधान के ही खिलाफ है. चूंकि मैं पार्टी में पहले पद पर हूं इसलिए मेरे अलावा किसी और के कहने पर बुलाई गई कोई भी मीटिंग सही नहीं मानी जाएगी.''