
नेपाल में जारी राजनीतिक संकट के बीच राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने संसद के निचले सदन यानी हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स को भंग कर दोबारा चुनाव कराने का ऐलान कर दिया है. शुक्रवार को राष्ट्रपति कार्यलय की तरफ से जारी बयान में कहा गया है प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा की तरफ से सरकार बनाने का दावा किया गया था, लेकिन राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने दोनों के ही दावों को खारिज कर दिया है. इसके साथ ही उन्होंने 12 और 19 नवंबर को मध्यावधि चुनाव कराने के आदेश दिए हैं.
दरअसल, 10 मई को संसद में प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली विश्वास मत हार गए थे. उनके विरोध में 124 और पक्ष में 93 वोट ही पड़े थे. जबकि उन्हें सरकार बचाने के लिए 136 सांसदों के समर्थन की जरूरत थी. इसके बाद उन्होंने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. हालांकि, इस्तीफे के बाद राष्ट्रपति विद्या देवी ने उन्हें दोबारा प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया था. उन्हें 30 दिन के अंदर बहुमत साबित करना था.
ओली के विश्वास मत हारने के बाद उनकी पार्टी और देउबा दोनों की तरफ से ही सरकार बनाने का दावा किया जाने लगा था. नेपाल की संसद में इस वक्त सबसे बड़ी पार्टी ओली की सीपीएन-यूएमएल है. उनकी पार्टी के पास संसद की 275 सीटों में से 121 सीटें हैं. जबकि, सरकार बनाने के लिए 136 सांसदों की जरूरत है.
नेपालः विपक्षी दल नहीं हासिल कर पाया बहुमत, केपी शर्मा ओली फिर से बने प्रधानमंत्री
ओली ने दावा किया था कि उनके पास 149 सांसदों का समर्थन है, जबकि देउबा का दावा था कि उन्हें 153 सांसदों का समर्थन हासिल है. इस हिसाब से सांसदों की संख्या 302 होती है. लेकिन नेपाल की संसद में 275 सांसद ही हैं. इस वजह से राजनीतिक संकट गहरा गया क्योंकि दोनों ही सरकार बनाने का दावा पेश कर रहे थे. इसके बाद राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने संसद भंग कर मध्यावधि चुनाव कराने की घोषणा कर दी.
नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता पिछले साल 20 दिसंबर को शुरू हो गई थी जब राष्ट्रपति भंडारी की ओर से सत्तारूढ़ नेशनलिस्ट पार्टी (एनसीपी) के भीतर जारी सत्ता संघर्ष के बीच नेपाली पीएम ओली की ओर से संसद भंग करने और 30 अप्रैल और 10 मई को नए आम चुनाव कराए जाने के सुझाव के बाद ऐलान कर दिया गया. संसद भंग किए जाने के फैसले से राजनीतिक संकट बढ़ गया और एनसीपी के प्रमुख प्रचंड की अगुवाई में बड़ी संख्या में लोग विरोध में उतर आए.
फरवरी में, देश शीर्ष अदालत ने ओली को झटका देते हुए भंग सदन को बहाल करने का आदेश दिया, जो मध्यावधि चुनाव की तैयारी कर रहे थे. चीनी समर्थक रुख के लिए पहजाने जाने वाले ओली ने इससे पहले 11 अक्टूबर, 2015 से 3 अगस्त, 2016 तक देश के प्रधानमंत्री के रूप में काम किया था, जिस दौरान काठमांडु की नई दिल्ली के साथ संबंध तनावपूर्ण हो गए थे.