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'महल खाली करो, हमारे राजा आ रहे...', हिन्दू राष्ट्र और राजशाही की वापसी के लिए नेपाल में क्यों मचा गदर?

16 साल पहले की ही बात है नेपाल दुनिया का एकमात्र हिन्दू राष्ट्र हुआ करता था. 2008 तक ज्ञानेंद्र शाह नेपाल के राजा हुआ करते थे. लेकिन एक माओवादी आंदोलन और एक कथित वामपंथी क्रांति के बाद भारत के इस पड़ोसी देश में सत्ता परिवर्तन हुआ और ज्ञानेंद्र शाह को सिंहासन खाली करना पड़ा. लेकिन नेपाल में एक बार फिर से बदलाव की हवा चल रही है.

नेपाल में राजशाही और हिन्दू राष्ट्र के लिए आंदोलन (फोटो- आजतक) नेपाल में राजशाही और हिन्दू राष्ट्र के लिए आंदोलन (फोटो- आजतक)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 10 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 2:15 PM IST

नेपाल की राजधानी काठमांडू के त्रिभुवन अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के मुख्य प्रवेश द्वार से शुरू होकर 10000 उत्साही लोगों की भारी भीड़ जमा है. भीड़ में गर्मजोशी है, सब लोग एक शख्स की प्रतीक्षा कर रहे हैं और उनकी झलक पाने को आतुर हैं. कुछ हाथ मिलाना चाह रहे हैं, कुछा नारेबाजी कर रहे हैं. भीड़ आवाज लगाती है- 'नारायणहिटी खाली गर, हाम्रो राजा आउंदै छन,' यानी कि नारायणहिती (राजा का महल) खाली करो, हमारे राजा आ रहे हैं. भीड़ फिर शोर करती है और नारा लगाती है, "जय पशुपतिनाथ, हाम्रो राजालाई स्वागत छ.' मतलब जय पशुपतिनाथ, हमारे राजा का स्वागत है. 

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जिस शख्सियत का स्वागत करने के लिए त्रिभुवन अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर 10 हजार लोगों की भीड़ इकट्ठा हुई है. उनका नाम है नेपाल के पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह. ये भीड़ नेपाल में हिन्दू राष्ट्र की वापसी, राजशाही की वापसी को लेकर नारे लगा रही है और पूर्व राजा का स्वागत कर रही है. 

पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह नेपाल के पर्यटन स्थल पोखरा में 2 महीने के प्रवास के बाद काठमांडू लौटे हैं. नेपाल में अभी ये चर्चा आम है कि ज्ञानेंद्र शाह राजनीति में वापसी करना चाह रहे हैं. इसके लिए वे लंबी तैयारी कर रहे हैं. पोखरा प्रवास के दौरान ज्ञानेंद्र शाह दर्जन भर से ज्यादा मंदिरों और तीर्थ स्थलों के दौरे किए और जनता का मिजाज भांपने की कोशिश की. 

16 साल पहले की बात है नेपाल दुनिया का एकमात्र हिन्दू राष्ट्र हुआ करता था. 2008 तक ज्ञानेंद्र शाह नेपाल के राजा हुआ करते थे. लेकिन एक माओवादी आंदोलन और एक कथित वामपंथी क्रांति के बाद भारत के इस पड़ोसी देश में सत्ता परिवर्तन हुआ और ज्ञानेंद्र शाह को सिंहासन खाली करना पड़ा. अब नेपाल में राजशाही के समर्थक शासन की राजशाही व्यवस्था की वापसी की मांग कर रहे हैं. 

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काठमांडू में पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह का स्वागत. (फोटो- रॉयटर्स)

RPP का हाथ, हिंदू राष्ट्र और राजशाही के साथ

नेपाल में शासन व्यवस्था में परिवर्तन की मांग में एक बड़ा राजनीतिक दल ज्ञानेंद्र शाह को समर्थन कर रहा है. इस पार्टी का नाम है राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक पार्टी. अपनी स्थापना के बाद से राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक पार्टी (RPP) नेपाल में हिन्दू राष्ट्र और राजशाही का समर्थन करता आ रहा है. राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक पार्टी नेपाल के लिए हिन्दू राष्ट्र और राजशाही को एक दूसरे का पूरक मानता है. 

बता दें कि 2008 में राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी ने 575 सीटों वाली संसद में से संविधान सभा में 8 सीटें हासिल कीं. 2013 के चुनाव में, यह 13 सीटें हासिल करने में सफल रही. 2017 में, यह 1 सीट पर आ गई, लेकिन 2022 के चुनाव में 14 सीटों के साथ वापस आ गई. 

आरपीपी के सीनियर उपाध्यक्ष रविंद्र मिश्रा ने बीबीसी को बताया है कि उनकी पार्टी नेपाल में राजशाही क्यों चाहते हैं, "नेपाल में अभी जो व्यवस्था चल रही है, उससे लोगों का मोहभंग हो गया है. अब लोग पुराने दिन याद कर रहे हैं. 2008 में सत्ता बदलाव के बाद से 17 सालों बाद अब किंग ज्ञानेंद्र नेपाल में कोई विलेन नहीं हैं."

पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह की काठमांडू वापसी के बाद RPP के सीनियर नेताओं ने एयरपोर्ट पर उनका स्वागत किया. ज्ञानेंद्र शाह को एयरपोर्ट से अपने घर निर्मल निवास पहुंचने में ढाई घंटे लगे. इस दौरान रैलियों जैसा माहौल रहा. 

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लोगों ने राजा का स्वागत किया और नारे लगाए. टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपने एक रिपोर्ट में रैली में मौजूद एक प्रत्यक्षदर्शी का हवाला देकर लिखा है कि इनका कहना है कि नई शासन व्यवस्था से इनका मोहभंग हो चुका है. कुलराज श्रेष्ठ नाम के बढ़ई ने बताया कि 16 साल पहले उस प्रदर्शन में शामिल था जिसे राजशाही को खत्म करने के लिए किया गया था. उसे उम्मीद थी कि हालात बदलेंगे. लेकिन वो गलत साबित हुए. नेपाल में कुछ नहीं बदला. देश और भी बदल गया है इसलिए उन्होंने अपनी सोच बदल ली है. 

कुलराज जैसे लाखों नेपाली अपने पुराने दिनों को वापस चाहते हैं. रैली में शामिल राजेंद्र कुंवर नाम के एक शख्स ने कहा कि देश में अस्थिरता है, कीमतें बढ़ रही हैं, शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति बदतर है. उन्होंने कहा कि गरीब के पास खाने को नहीं है, देश का नियम अमीरों पर लागू नहीं होता है, इसलिए हम अपने राजा को वापस चाहते हैं.

2008 के बाद नेपाल में 13 सरकार 

2008 में नेपाल में लोकतंत्र बहाली के बाद भारत के इस पड़ोसी देश में लगातार राजनीतिक अस्थिरता रही है. यहां 2008 के बाद से अबतक 13 सरकारें बदल चुकी हैं. नेपाल ने 240 वर्ष पुरानी राजशाही को बदलने में कई कुर्बानियां दी. आंदोलन की वजह से पर्यटन पर आधारित इस राज्य की अर्थव्यवस्था ठप हो गई. हिंसा में 16000 लोगों की जान गई. गौरतलब है कि 2022 की जनगणना के अनुसार, हिमालय की गोद में स्थित नेपाल की जनसंख्या 30.55 मिलियन यानी कि लगभग 3.5 करोड़ है और यहां की 81.19 प्रतिशत जनता हिन्दू है. 

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नेपाल में क्या संभव है राजशाही की वापसी?

नेपाल में राजा आओ, देश बचाओ के नारे भले ही लग रहे हैं. लेकिन बिना संसदीय समर्थन के ऐसा होना मुश्किल लगता है. नेपाल के चर्चित अखबार कांतिपुर के संपादक उमेश चौहान के हवाले से बीबीसी लिखता है, "नेपाल के लोगों में मौजूदा सरकार को लेकर निराशा तो है. लोग गुस्से में भी हैं. और वैकल्पिक राजनीति की तलाश कर रहे हैं, पर उन्हें ठोक विकल्प दिखता है. ऐसे में राजतंत्र के समर्थन इसी असंतोष को लामबंद करना चाहते हैं. मुझे नहीं लगता है कि यह असंतोष राजतंत्र के पक्ष में जाएगा."

नेपाल में भारत के पूर्व राजदूत रंजीत राय मानते हैं कि नेपाल के लोगों में निराशा है, "सरकारें लोगों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पाई है लेकिन राजशाही नेपाल के लोगों को इस निराशा से निकाल पाएगी इसमें मुझे संदेह है, राजतंत्र के समर्थन में अभी उतने लोग नहीं है कि यहां इस आंदोलन को राजतंत्र के लिए खतरे के रूप में देखा जाएं."

नेपाल के प्रमुख राजनीतिक दल, जैसे नेपाली कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियां, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र का समर्थन करते हैं. संवैधानिक रूप से राजशाही की बहाली के लिए व्यापक संशोधन और जनसमर्थन की जरूरत होगी, जो फिलहाल मुश्किल लगता है. 

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पीएम ओपी शर्मा ओली की चुनौती 

नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह को मुख्यधारा की राजनीति में आने की चुनौती दी है. ओली ने ज्ञानेंद्र शाह पर सद्भाव को बाधित करने का आरोप लगाया है.  सुदूरपश्चिम प्रांत विधानसभा की बैठक को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, "वे (पूर्व राजा ज्ञानेंद्र) संविधान, कानून, लोकतंत्र, व्यवस्था, प्रक्रिया के बारे में कुछ नहीं कहते, बल्कि कहते हैं, मेरा साथ दो, मैं आऊंगा और देश को बचाऊंगा. देश को क्या हो गया है? इस तरह की गतिविधि अस्थिरता को आमंत्रित करेगी. उनके द्वारा प्रेरित गतिविधियां देश को अराजकता के कगार पर धकेल रही हैं."

ओली ने कहा कि अगर वे राजनीति में आना चाहते हैं तो वे उनका स्वागत करते हैं. उन्हें आना चाहिए और चुनाव लड़ना चाहिए. अगर वे संवैधानिक तरीके से राजनीति में आना चाहे हैं तो उनका स्वागत है.

नेपाल का आंदोलन 

नेपाल की जनता का आक्रोश झेल चुके पूर्व राजा ज्ञानेंद्र आजकल कम बोलते हैं. नेपाल में हिन्दूशाही और राजशाही की वापसी के आह्वान पर उन्होंने कोई सीधी टिप्पणी नहीं की है. हां उन्होंने नेपाल के भविष्य को लेकर जरूर बयान दिया है. हाल के वर्षों में उनकी सार्वजनिक उपस्थिति बढ़ी है, लेकिन उन्होंने सीधे तौर पर राजनीतिक बयानबाजी से दूरी बनाए रखी है. हालांकि, उनके समर्थन में होने वाले प्रदर्शनों और उनके द्वारा शुरू किए गए अभियानों को राजनीतिक वापसी की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है. 

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बता दें कि  ज्ञानेंद्र 2002 में तब राजा बने, जब 2001 में उनके भाई और परिवार के लोगों की महल में हत्या कर दी गई थी. इस हत्या का आरोप राजकुमार दीपेंद्र पर लगा था. जिन्होंने खुद भी आत्महत्या कर ली थी. पूर्व राजा ज्ञानेंद्र तब नेपाल में अलोकप्रिय हो गए. उनके खिलाफ असंतोष उभरने लगा. 

2006 के जनआंदोलन और माओवादी विद्रोह के बाद ज्ञानेंद्र ने संवैधानिक राजशाही को औपचारिक रूप से समाप्त कर दिया गया था. और उन्होंने पूर्ण सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया, सरकार और संसद को भंग कर दिया. उन्होंने आपातकाल की स्थिति घोषित कर दी और देश पर शासन करने के लिए सेना का इस्तेमाल किया. इससे नेपाल में वामपंथियों का आंदोलन और भी भड़क गया और लंबी हिंसा के बाद आखिरकार 2008 में नेपाल से राजशाही का खात्मा हो गया.

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