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नेपाल में राजशाही समर्थकों के आंदोलन का चेहरा बना पूर्व माओवादी नेता, कभी ओली-प्रचंड के साथ थी गहरी दोस्ती

यह वही दुर्गा प्रसाई हैं जिनकी 2017 में पूर्व प्रधानमंत्रियों पुष्प कमल दहल प्रचंड और केपी शर्मा ओली को अपने आवास पर लंच कराने की तस्वीर वायरल हुई थी. ऐसा माना जाता है कि उन्होंने वामपंथी गठबंधन बनाने के लिए कम्युनिस्ट पार्टियों को एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई थी.

प्रसाई ने नेपाल को हिन्दू राष्ट्र बनाने की खाई कसम प्रसाई ने नेपाल को हिन्दू राष्ट्र बनाने की खाई कसम
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 31 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 7:48 PM IST

नेपाल में राजशाही समर्थकों का विरोध प्रदर्शन जारी है और सोमवार को भी काठमांडू की सड़कों पर जोरदार प्रदर्शन देखा गया. साल 2008 के बाद से राजा के समर्थन में यह सबसे बड़ा और सबसे लंबा चलने वाला आंदोलन है, जब आखिरी हिंदू राष्ट्र में राजशाही को खत्म कर दिया था. काठमांडू में शुक्रवार को राजशाही समर्थक प्रदर्शनकारियों की ओर से हुई हिंसा और आगजनी में तीन लोगों की मौत हो गई और सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया गया.

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आंदोलन को लीड कर रहे प्रसाई

इस आंदोलन के बारे में अब तक जानकारी थी कि नेपाल के पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह की अगुवाई में ये प्रदर्शन हो रहे हैं. यहां तक कि प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने संसद में ज्ञानेंद्र शाह को ही हिंसा भड़काने का जिम्मेदार ठहराया है. लेकिन आंदोलन में पूर्व माओवादी गुरिल्ला दुर्गा प्रसाई सबसे आगे हैं. कथित तौर पर चीन द्वारा समर्थित माओवादियों ने ही राजा ज्ञानेंद्र शाह को पद छोड़ने के लिए मजबूर किया था.

नेपाल में सियासी वादाखिलाफी और भ्रष्टाचार ने ही राजशाही के पक्ष में भावनाओं को बढ़ावा देने का काम किया है. राजशाही के खात्मे के बाद से इस हिमालयी देश ने 17 साल में 13 सरकारें देखी हैं. माओवादी नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड के नेतृत्व में विद्रोह और आंदोलन के बाद ही 2008 में राजशाही का अंत हुआ था. अब, 15 साल से ज़्यादा समय के बाद पूर्व माओवादी प्रसाई, राजा को संवैधानिक प्रमुख के रूप में वापस लाने और ज्ञानेंद्र शाह को नारायणहिती पैलेस में बैठाने के लिए आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं.

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हिन्दू राष्ट्र बनाने की खाई कसम

प्रसाई ने शुक्रवार को प्रदर्शन के दौरान पुलिस बैरिकेड तोड़ते हुए अपनी कार संसद भवन की ओर बढ़ाई थी. दुर्गा प्रसाई कारोबारी हैं जो फिलहाल फरार हैं. पुलिस द्वारा तलाश किये जाने पर पूर्व माओवादी ने साफ किया कि वह देश छोड़कर नहीं भागे और इस समय काठमांडू के एक मंदिर में हैं. देश के लोग अपनी सदियों पुरानी हिंदू राजशाही जड़ों की ओर लौटने के लिए आंदोलन कर रहे हैं. यह माओवादी नेता से ओली सरकार को उखाड़ फेंकने की धमकी देकर आंदोलन का नेतृत्व कर रहा है. उन्होंने राजशाही को बहाल करने और नेपाल को फिर हिंदू राष्ट्र बनाने की कसम खाई है.

ये भी पढ़ें: नेपाल में फिर से राजशाही समर्थकों का प्रदर्शन, संसद में पीएम ओली बोले- पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह ने भड़काई हिंसा

प्रसाई के साथ ओली और प्रचंड (फाइल फोटो)

यह वही प्रसाई हैं जिनकी 2017 में पूर्व प्रधानमंत्रियों पुष्प कमल दहल प्रचंड और केपी शर्मा ओली को अपने आवास पर लंच कराने की तस्वीर वायरल हुई थी. ऐसा माना जाता है कि उन्होंने वामपंथी गठबंधन बनाने के लिए कम्युनिस्ट पार्टियों को एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई थी. यह वही प्रसाई हैं जो सियासी उलटफेर झेल रहे नेपाल में सबसे प्रमुख व्यक्ति के रूप में उभरे थे.

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नेपाल में क्यों उठी राजशाही की मांग

नेपाल 2008 में सदियों पुरानी हिंदू राजशाही से धर्मनिरपेक्ष गणराज्य में बदल गया. हाल ही में पूरे देश में राजशाही के समर्थन में प्रदर्शन हुए हैं, जिसमें लोग राष्ट्रीय ध्वज लहरा रहे हैं और नारे लगा रहे हैं कि 'राजा वापस आओ, देश बचाओ!' ये नारे मार्च की शुरुआत में 4 लाख लोगों की रैली में गूंजे थे, जब पूर्व राजा ज्ञानेंद्र दो महीने तक पवित्र तीर्थस्थलों का दौरा करने के बाद काठमांडू लौटे थे. नेपाल की राजशाही, जो विश्व के अंतिम हिन्दू राज्य के रूप में अपनी पहचान से जुड़ी हुई थी, पुष्प कमल दहल प्रचंड के नेतृत्व में माओवादी विद्रोहियों के नेतृत्व में एक दशक तक चले गृहयुद्ध के बाद खत्म हुई थी, जो बाद में प्रधानमंत्री भी बने.

चीन से वैचारिक और सैन्य समर्थन हासिल कर माओवादियों ने एक अभियान चलाया जिसमें 16,000 से ज्यादा लोगों की जान चली गई. यह संघर्ष 2006 के व्यापक शांति समझौते के साथ खत्म हो गया, जिससे 2008 में राजशाही हटाने का रास्ता साफ हुआ. दशक बाद बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और आर्थिक निराशा से लोगों की हताशा राजशाही के पक्ष में भावनाओं को हवा दे रही है. राजा, सत्ता और स्थिरता का केंद्र था, जिसकी कमी नेपाल में 2008 से है, जब उसने गणतंत्र बनने के लिए मतदान किया था.

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राजशाही समर्थक दुर्गा प्रसाई कौन हैं?

विद्रोह के दौरान प्रचंड के साथी रहे दुर्गा प्रसाई अब बढ़ते राजशाही समर्थक आंदोलन का चेहरा बन गए हैं. सोशल मीडिया पर अपने बेबाक और उग्र भाषणों और इंटरव्यू की वजह से पूरे नेपाल में प्रसाई एक चर्चित व्यक्ति बन गए हैं. झापा में एक किसान परिवार में जन्मे प्रसाई का प्रारंभिक जीवन आर्थिक संघर्षों से भरा रहा और उन्होंने आठवीं कक्षा तक पढ़ाई की. भैंस पालन जैसे व्यवसाय में उनका पहला प्रयास कर्ज के कारण असफल हो गया और इससे वे राजनीति की ओर मुड़ गए.

शुरुआत में वह नेपाली कांग्रेस के साथ जुड़े रहे और बाद में विद्रोह के दौरान अंडरग्राउंड सीपीएन माओवादी गुट में शामिल हो गए. इस बदलाव ने प्रसाई के लिए आगे बढ़ने का आधार तैयार किया. विद्रोह के दौरान प्रसाई ने माओवादियों का समर्थन किया, यहां तक कि लड़ाकों को शरण भी दी. युद्ध के बाद वह प्रचंड के माओवादी केंद्र के साथ जुड़ गए और बाद में केपी ओली के नेतृत्व वाली नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) में शामिल हो गए.

दोस्तों को बताया था धोखेबाज

सीपीएन-यूएमएल के केंद्रीय समिति के सदस्य के रूप में प्रसाई का प्रभाव था. लेकिन बी एंड सी मेडिकल कॉलेज बनाने की इजाजत न मिलने की वजह से ओली के साथ उनके मतभेद हो गए. साल 2022 में चुनाव में टिकट न मिलने के बाद उन्हें यूएमएल से बाहर कर दिया गया. माओवादी लड़ाके से विवादित कारोबारी बने प्रसाई का दावा है कि नेपाल में गणतंत्र प्रणाली विफल रही है. हालांकि भ्रष्टाचार और आर्थिक ठहराव से निराश होकर प्रसाई ने दोनों ही बड़े नेताओं से नाता तोड़ लिया और इनपर जनता को धोखा देने का आरोप लगाया.

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पूर्व राजा ज्ञानेंद्र से मिलाया हाथ

फरवरी 2023 तक प्रसाई ने पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह के साथ गठबंधन कर लिया और राजशाही को बहाल करने और नेपाल को हिंदू राष्ट्र के रूप में फिर से स्थापित करने के लिए अभियान शुरू किया. उनकी जुझारू बयानबाजी, सामूहिक रैलियां और सोशल मीडिया पर दबदबे ने उन्हें राजशाही खेमे में सबसे आगे लाकर खड़ा किया है. पिछले दो साल से सड़कों पर विरोध प्रदर्शनों के ज़रिए राजशाही की भावनाओं को जगाने वाले प्रसाई को पहले भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था.

ये भी पढ़ें: बड़े भाई के परिवार को खत्म कराने के आरोप, अकूत संपत्ति के मालिक... कौन हैं पूर्व राजा ज्ञानेंद्र जिनकी वजह से मचा नेपाल में बवाल

मार्च 2025 में संयुक्त जन आंदोलन समिति द्वारा उन्हें 'पब्लिक कमांडर' का नाम दिया गया था. उनके राष्ट्र, राष्ट्रवाद, धर्म, संस्कृति और नागरिकों की रक्षा के लिए अभियान ने हजारों लोगों को एकजुट किया है, जो राजशाही की बहाली और नेपाल को हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग कर रहे हैं. राजशाही पर उनके रुख ने पूर्व सहयोगियों को भी उलझन में डाल दिया है, हाल ही में प्रचंड ने संसद में चेतावनी दी थी कि गणतंत्र खतरे में हैं. प्रसाई अब ओली के निशाने पर भी हैं.

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पुलिस को प्रसाई की तलाश

काठमांडू में शुक्रवार को हुई हिंसा के बाद प्रसाई के कई समर्थकों को गिरफ्तार कर लिया गया है और अब वह खुद भी पुलिस के रडार पर हैं. अब तक कमल थापा के नेतृत्व वाली दक्षिणपंथी, रूढ़िवादी पार्टी, राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी नेपाल (RPPN) राजशाही समर्थक प्रदर्शनकारियों की अगुआई कर रही है. शुक्रवार के विरोध प्रदर्शन के बाद हिंसा भड़काने के आरोप में RPPN के दो वरिष्ठ नेताओं को भी पुलिस ने गिरफ़्तार किया है.

हालांकि प्रसाई के नेतृत्व ने आंदोलन को गति दी है, लेकिन उन्हें कट्टर गणतंत्र के समर्थकों से चुनौतियों मिल रही हैं. पूर्व गुरिल्ला प्रसाई नेपाल के इतिहास को फिर से लिख पाएंगे या नहीं, यह अनिश्चित है, लेकिन उनके अभियान ने फिर से एक बार सुलझ चुकी बहस को हवा देने का काम जरूर किया है.

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