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भारत-चीन के रिश्तों की असहज कड़ी है एनएसजी, सीपीईसी, मसूद अजहर का मामला

इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस रिसर्च एंड एनालिसिस (आईडीएसए) से जुड़े एक सुरक्षा विशेषज्ञ पी सतोब्दन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जेईएम सरगना मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र वैश्विक आतंकवादी घोषित करने, परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में भारत के प्रवेश के मुद्दे पर संदेह गहरा हो रहा है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ शी जिनपिंग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ शी जिनपिंग
नंदलाल शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 14 मई 2017,
  • अपडेटेड 10:23 PM IST

भारत और चीन के दिन प्रति दिन जटिल होते रिश्तों को रेखांकित करते हुए एक रिपोर्ट में कहा गया है कि हाल के सामरिक स्तर की बातचीत के बावजूद जैश ए मोहम्मद सरगना मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र वैश्विक आतंकवादी घोषित करने, एनएसजी में भारत के प्रवेश के मुद्दे के साथ चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) के मुद्दे पर अभी भी दोनों देशों के रिश्ते असहज बने हुए हैं.

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रिपोर्ट में भारत के राजनयिक तौर तरीकों में बदलाव की हिमायत की गई है. इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस रिसर्च एंड एनालिसिस (आईडीएसए) से जुड़े एक सुरक्षा विशेषज्ञ पी सतोब्दन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जेईएम सरगना मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र वैश्विक आतंकवादी घोषित करने, परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में भारत के प्रवेश के मुद्दे पर संदेह गहरा हो रहा है.

कश्मीर से गुजरता है चीन-पाक आर्थिक गलियारा
बता दें कि मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने और एनएसजी में भारत के प्रवेश के मुद्दे पर चीन बाधा बना हुआ है. इसमें कहा गया है कि चीन की बेल्ट एंड रोड पहल के तहत चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा भी दोनों देशों के बीच एक महत्वपूर्ण मुद्दा बना हुआ है.

चीन की ओर से करीब 50 अरब डॉलर के निवेश से निर्मित होने वाला यह गलियारा पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से होकर गुजर रहा है, जिसे भारत अपना क्षेत्र मानता है.

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राजनयिक तौर तरीकों में बदलाव करें भारत
रिपोर्ट में कहा गया है कि इन मुद्दों से स्पष्ट है कि पिछले ढाई वर्ष में ऐसे द्विपक्षीय मुद्दों से निपटने में वर्तमान तंत्र की उपयोगिता नहीं रह गई है. संवाद की पहल और बेहतर आर्थिक संबंध दोनों देशों के बीच विश्वास का निर्माण करने में मदद नहीं पहुंचा रहा है. विवाद से निपटने के तरीके संघर्ष के बिन्दु पैदा कर रहे हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि इस स्थिति में भारत को अपने राजनयिक तौर तरीकों में बदलाव करने की जरूरत है. तिब्बत और ताइवान का शीत युद्ध काल का कार्ड मौजूदा स्थिति में चीन के खिलाफ कारगर नहीं प्रतीत हो रहा है. आईडीएसए से जुड़े एक अन्य विशेषज्ञ जैनब अख्तर ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सीपीईसी को लेकर स्थानीय लोगों में असंतोष भी हैं, क्योंकि पाकिस्तान सरकार द्वारा इस परियोजना को लेकर कोई स्पष्ट खाका और नीति पेश नहीं की गई है.

बड़े कर्ज के जाल में फंस सकता है पाकिस्तान
विभिन्न आकलनों और पूर्वानुमानों से स्पष्ट हो रहा है कि इस परियोजना के लिए करीब 50 अरब डॉलर के अनुमानित निवेश की बात कहे जाने के बावजूद इस क्षेत्र को इसकी तुलना में काफी कम लाभ होगा.

रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसी बातें भी सामने आ रही हैं कि इस परियोजना के संबंध में निवेश का बड़ा हिस्सा पंजाब प्रांत से लगे क्षेत्रों में किये जाने की योजना है. विशेषज्ञों के अनुसार, अनेक अर्थशास्त्रियों और विश्लेषकों का कहना है कि पाकिस्तान के पास इतने बड़े आधारभूत संरचना विकास की जरूरतों को समाहित करने की क्षमता ही नहीं है और वह अनजाने में बड़े कर्ज के जाल में फंस सकता है.

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रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान को इस बारे में भी सचेत रहने की जरूरत है क्योंकि चीनी लोग कोई भी काम धर्मार्थ नहीं करते और इस ऋण की ब्याज दर काफी उच्च हो सकती है. पाकिस्तान को इस निवेश के एवज में कई तरह का भार करदाताओं पर डालना पड़ सकता है.

गिलगित-बाल्टिस्तान में विरोध की लहर
ऐसे में यह देखना भी महत्वपूर्ण है कि गिलगित-बाल्टिस्तान के लोग पाकिस्तान की ओर से दशकों से किए जा रहे सौतेले व्यवहार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं. कुछ लोग अधिक अधिकारों और प्रतिनिधित्व की मांग कर रहे हैं, जबकि कुछ स्वतंत्रता की मांग भी कर रहे हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र में बेरोजगारी तेजी से बढ़ रही है. इसके कारण इस क्षेत्र से युवाओं का पलायन तेजी से हो रहा है और वे पाकिस्तान के विभिन्न क्षेत्रों और फारस की खाड़ी से लगे क्षेत्रों में पलायन कर रहे हैं.

इस बीच, सरकार ने पाकिस्तान की ओर से सीमापार से उत्पन्न आतंकवाद के खतरे के मामलों को चीन के साथ दृढ़तापूर्वक और लगातार उठाया है और चीन इस बात पर सहमत हुआ है कि आतंकवाद को किसी भी तरह से सही नहीं ठहराया जा सकता.

मसूद अजहर पर टांग अड़ाता है चीन
विदेश राज्य मंत्री वी के सिंह ने लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित जवाब में स्वीकार किया कि जैश ए मोहम्मद के मुख्य सरगना, वित्तपोषक और प्रेरक मसूद अजहर की नामजदगी पर लगातार तकनीकी अड़चन पैदा की जा रही है. चीन ने दिसंबर 2016 के अंत में मसूद अजहर का नाम आतंकवादियों की सूची में डाले जाने के प्रस्ताव पर रोक लगाने का निर्णय लिया.

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उन्होंने कहा कि भारत के अनुरोध को 1267 प्रतिबंध समिति सहित अंतरराष्ट्रीय व्यापक अंतरराष्ट्रीय समर्थन मिला है. हालांकि चीन ने भारत के अनुरोध का समर्थन नहीं किया और इस मामले में तकनीकी अड़चनें पैदा करते हुए 1267 समिति की कार्रवाई में प्रतिरोध उत्पन्न किया है.

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