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ग्वादर को 'दुबई' बनाने चला था पाकिस्तान, गले की फांस बनकर रह गए चीनी प्रोजेक्ट्स

चाइना पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर जब शुरू किया गया था तब बलूचिस्तान के लोगों को यह लालच दिया गया कि उनके प्रांत को दुबई जैसा बनाया जाएगा. लेकिन अब जबकि चीन के कुछ बड़े प्रोजेक्ट्स ऑपरेशनल हो गए हैं, स्थानीय लोगों को अपना ही प्रांत किसी जेल सा लगता है. मछुआरों की शिकायत है कि वो अपने ही समुद्री इलाकों मे चोरों की तरह जाते हैं.

ग्वादर में चीनी प्रोजेक्ट्स के खिलाफ विरोध प्रदर्शन आम हैं (Photo- Reuters/X) ग्वादर में चीनी प्रोजेक्ट्स के खिलाफ विरोध प्रदर्शन आम हैं (Photo- Reuters/X)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 27 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 4:51 PM IST

चीन और पाकिस्तान ने 2015 में चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) समझौता किया था. इस समझौते में तय हुआ कि चीन की मदद से शहर में एयरपोर्ट बनेगा, ग्वादर बंदरगाह को चीन आधुनिक तरीके से बनाएगा और एक आर्थिक गलियारा तैयार किया जाएगा. ग्वादर को CPEC के मुकुट में एक रत्न के रूप में प्रचारित किया गया. पाकिस्तान की सरकार ने ग्वादर को 'पाकिस्तान का दुबई' बनाने का सपना देखा लेकिन अब लगभग एक दशक बाद यह सपना टूटता दिख रहा है.

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चीन की मदद से तैयार हुआ ग्वादर एयरपोर्ट हाल ही में ऑपरेशनल हुआ है जहां 20 जनवरी को पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस (PIA) का एक विमान उतरा. पाकिस्तान की सरकार ने इसे 'प्रगति और समृद्धि की ओर एक कदम' बताया. पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा मुहम्मद आसिफ ने कहा कि देश का सबसे बड़ा एयरपोर्ट ग्वादर एयरपोर्ट पाकिस्तान और चीन के बीच सहयोग का प्रतीक है.

ग्वादर एयरपोर्ट पर विमान की लैंडिंग को पाकिस्तानी सरकार अपनी उपलब्धि बता रही है लेकिन जमीन पर कहानी कुछ और ही है. पाकिस्तान के अस्थिर प्रांत बलूचिस्तान में बने एयरपोर्ट पर जब पहली बार किसी विमान ने लैंड किया तो ग्वादर और आस-पास के शहरों में सुरक्षा के लिहाज से लॉकडाउन लगा दिया गया, आम लोगों की आवाजाही पर पाबंदी लगा दी गई.

विमान की लैंडिंग के दौरान पाकिस्तानी सरकार और सेना के कई वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे लेकिन हवाई अड्डे के निर्माण में लगे 23 करोड़ डॉलर चुकाने वाले चीन का एक भी अधिकारी वहां मौजूद नहीं था.

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अरबों का निवेश लेकिन चीन को हाथ लगी निराशा

ग्वादर इंटरनेशनल एयरपोर्ट की आधारशिला पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने मार्च 2019 में रखी थी और इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने अक्टूबर 2024 में किया.

उद्घाटन के महीनों बाद भी एयरपोर्ट पर विमानों की आवाजाही रुकी रही. पाकिस्तान के अखबार 'डॉन' की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एयरपोर्ट महीनों तक निष्क्रिय रहा क्योंकि ग्वादर का विमानन और बंदरगाह प्राधिकरण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एयरपोर्ट का व्यावसायीकरण कराने के लिए सलाहकारों को नियुक्त नहीं कर पाया था.

एयरपोर्ट ग्वादर के दक्षिण-पश्चिम मकरान तट पर बना है जो चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर का एक टर्मिनल प्वॉइंट है.

बलूचिस्तान के ग्वादर में ही चीन ने अपने पश्चिमी हिस्से को अरब सागर से जोड़ने के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण गहरे समुद्र के बंदरगाह का निर्माण किया है. इसे सिंगापुर के मलक्का स्ट्रेट के चोकप्वॉइंट को बायपास करने की चीन की कोशिश के रूप में देखा गया.

दरअसल, चीन अपनी जरूरतों के एक बड़े हिस्से के लिए मध्य-पूर्व से ऊर्जा निर्यात करता है. उसे चिंता थी कि आने वाले समय में सिंगापुर के पास से मलक्का स्ट्रेट से ऊर्जा निर्यात में उसे परेशानी हो सकती है. इसलिए उसने विकल्प के रूप में ग्वादर बंदरगाह को चुना. चीन इसके जरिए अफ्रीका और यूरोप के लिए भी चीन के व्यापार मार्ग को छोटा करना चाहता था.

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चीन के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट 'बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव' (BRI) के तहत आने वाले CPEC प्रोजेक्ट में एक बंदरगाह और एक हवाई अड्डे के अलावा, रेलवे, राजमार्गों और पावर प्लांट्स का निर्माण भी शामिल था. इस पूरे इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के लिए चीन ने लगभग 62 अरब डॉलर खर्च करने का वादा किया था. BRI के एक प्रमुख प्रोजेक्ट के रूप में शुरू हुए CPEC का मकसद चीन को एशिया और अफ्रीका में व्यापार मार्गों तक पहुंच और प्रभाव प्रदान करना है.

CPEC के लगभग एक दशक पूरे होने के बाद चीनी प्रोजेक्ट के भविष्य को लेकर सवाल उठ रहे हैं. ग्वादर में चीन के प्रोजेक्ट्स आए दिन बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) जैसे अलगाववादी संगठनों के निशाने पर रहते हैं. ये संगठन चीनी नागरिकों और उनकी संपत्तियों पर हमले करते रहे हैं. अपने नागरिकों और प्रोजेक्ट्स पर हो रहे हमलों को लेकर चीन पाकिस्तान में और अधिक निवेश को लेकर अनिच्छुक रहा है. 

चीनी प्रोजेक्ट्स और नागरिकों पर हमले क्यों करते हैं बलोच विद्रोही?

बलूचिस्तान में पाकिस्तान के अल्पसंख्यक बलोच रहते हैं. बलोच लोगों का कहना है कि पाकिस्तान की सरकार उनके साथ भेदभाव करती है और प्रांत के संसाधनों से होने वाला लाभ उनके साथ नहीं बांटा जाता. बलूचिस्तान में सरकार से नाराज बलोचों के कई विद्रोही समूह बन गए हैं जो प्रांत की आजादी के मकसद से पाकिस्तानी सरकार से लड़ रहे हैं.

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बलोच चरमपंथी आंदोलन में तेजी तब आई 2002 में बलूचिस्तान में ग्वादर बंदरगाह का निर्माण शुरू हुआ. उसी दौरान साल 2005 में सुई गैस प्लांट में 31 साल की महिला डॉक्टर के साथ रेप का एक मामला सामने आया. इस घटना के सामने आने के बाद बलूचिस्तान सुलग उठा और पाकिस्तान में गृहयुद्ध का खतरा पैदा हो गया.
 
बलोच नेता नवाब अकबर बुगती ने इंसाफ की आवाज उठाई और वो विरोध का चेहरा बन गए. साल 2006 में उन्हें एक सैन्य ऑपरेशन में मार दिया गया जिसके बाद बलूचिस्तान में पाकिस्तान विरोधी भावना बढ़ती गई.

अप्रैल 2015 में पाकिस्तान ने चीन के साथ CPEC समझौता किया और चीन को ग्वादर बंदरगाह दे दिया. इसके बाद चीन ने ग्वादर में औद्योगिकीकरण शुरू किया जिस कारण वहां काम कर रहे चीनी नागरिक भी बलोच चरमपंथियों के निशाने पर आ गए.

पिछले साल 6 अक्टूबर को कराची एयरपोर्ट के पास हुए हमले में दो चीनी नागरिक मारे गए थे. बीएलए ने हमले की जिम्मेदारी ली थी. बचोल चरमपंथियों का आरोप है कि चीन उनके संसाधनों का दोहन केवल और केवल अपने फायदे के लिए कर रहा है. बलोच विद्रोहियों के हमले से पाकिस्तान और चीन को भारी आर्थिक नुकसान होता है.

'चीन ने ग्वादर को दुबई बनाने का सपना दिखा जेल में बदल दिया है'

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जब CPEC समझौता हुआ था तब बलूचिस्तान को "पाकिस्तान का दुबई" बनाने का वादा किया गया था. लेकिन स्थानीय लोगों में पाकिस्तानी सरकार और चीनी प्रोजेक्ट्स को लेकर भारी गुस्सा है. इन लोगों का चीन पर आरोप है कि "पाकिस्तान का दुबई" बनाने का वादा कर शहर को हाई सिक्योरिटी वाली जेल में बदल दिया गया है. शहर में ऊंचे बांड़ लगाए गए हैं, चीनी श्रमिकों के लिए अलग जगह बनाई गई है, सुरक्षा चौकियां बनाई गई हैं और सड़कों पर भारी पुलिस और सैन्य उपस्थिति है.

ग्वादर में जिन प्रोजेक्ट्स का स्थानीय लोग विरोध कर रहे हैं, उनमें से एक गधों को काटने वाली फैक्टरी भी शामिल है. यह फैक्टरी अभी चालू नहीं हुई है. फैक्टरी में अफ्रीका से खरीदे गए लाखों गधों को मारकर प्रोडक्ट्स तैयार किए जाने हैं. गधों को मारकर चीन की पारंपरिक दवा में इस्तेमाल होने वाला प्रोडक्ट भी निकाला जाएगा.

'हमारे समुद्र हमारे नहीं, चीनियों के हैं'

स्थानीय लोगों को ग्वादर के गहरे पानी वाले बंदरगाह के आसपास के समुद्र तक जाने की भी मनाही है. बंदरगाह के कुल मुनाफे का 90% चीनी ऑपरेटर को जाता है और इसका 10% मुनाफा ही पाकिस्तान को मिलता है. स्थानीय मछुआरों की शिकायत है कि उनके ही क्षेत्र में उन्हें आजाद होकर मछली पकड़ने की अनुमति नहीं है. मछली पकड़ने के दौरान उनकी नावों पर सैनिक पहुंच जाते हैं और छापेमारी करते हैं.

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70 साल के मछुआरे दाद करीम ने ब्रिटिश अखबार 'द गार्डियन' से बात करते हुए कहा, 'हमने पूरा समुद्र खो दिया है. जब हम मछली पकड़ने जाते हैं, तो ऐसा लगता है कि हम चोर बनकर वहां जा रहे हैं और खुद को छिपा रहे हैं. समुद्र या महासागर अब मछुआरों का नहीं है - यह चीनियों का है.'

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