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अमेरिका के इस बिल से पूरे पाकिस्तान में मची खलबली, नेता बोले- 'बहुत हुआ अपमान'

अफगानिस्तान में दो दशक बिताने के बाद अमेरिकी सेना की वापसी हो चुकी है और अब तालिबान अफगानिस्तान में अपनी सरकार बना चुका है लेकिन अमेरिका अब भी तालिबान को घेरने की कोशिश कर रहा है और अब पाकिस्तान भी इस मामले में बुरी तरह फंस चुका है. हाल ही में अमेरिका की रिपब्लिकन पार्टी के 22 सांसदों ने अमेरिकी सीनेट में एक विधेयक पेश किया है. दरअसल इस विधेयक में तालिबान को तो बैन करने की बात हो ही रही है साथ ही तालिबान के समर्थक देशों पर भी शिकंजा कसने की तैयारी है. पाकिस्तान में इस बिल को लेकर खलबली मची हुई है. 

इमरान खान फोटो क्रेडिट: रॉयटर्स इमरान खान फोटो क्रेडिट: रॉयटर्स
aajtak.in
  • नई दिल्ली ,
  • 30 सितंबर 2021,
  • अपडेटेड 12:03 PM IST
  • अमेरिका के एंटी तालिबान बिल की पाकिस्तान ने की जमकर आलोचना
  • पाक मंत्री ने कहा- हम अपने देश को सशक्त बनाने के लिए क्या कर रहे हैं?

अफगानिस्तान में दो दशक बिताने के बाद अमेरिकी सेना की वापसी हो चुकी है. अब तालिबान अफगानिस्तान में अपनी सरकार बना चुका है लेकिन अमेरिका तालिबान और उसके सहयोगियों को बख्शने के मूड में नहीं है. बुधवार को अमेरिका की रिपब्लिकन पार्टी के 22 सांसदों ने अमेरिकी सीनेट में एक विधेयक पेश किया है. एंटी-तालिबान इस विधेयक को लेकर पाकिस्तान में भी काफी नाराजगी देखने को मिल रही है. दरअसल इस विधेयक में तालिबान को तो बैन करने की बात हो ही रही है, साथ ही तालिबान के समर्थक देशों पर भी शिकंजा कसने की तैयारी है. इस बिल को लेकर पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने भी आपत्ति जाहिर की है और इसे गैर-जरूरी बताया है.

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तालिबान को पाकिस्तान ने दिया समर्थन? अमेरिका करेगा जांच

इस ड्राफ्ट बिल में लिखा है कि साल 2001 से लेकर साल 2020 तक तालिबान के समर्थन में सरकारी या गैर-सरकारी संस्थाओं का समर्थन का आकलन किया जाएगा. इसके अलावा आर्थिक सहायता, खुफिया सहायता, जमीनी सहायता, लॉजिस्टिक और मेडिकल सपोर्ट, ऑपरेशनल और रणनीतिक ट्रेनिंग को लेकर पाकिस्तानी सरकार की भूमिका को भी परखा जाएगा.  

इस ड्राफ्ट बिल में ये भी लिखा था कि काबुल में सरकार गिराने के लिए तालिबान के हमले का समर्थन करने में सरकारी या गैर सरकारी संस्थाओं के साथ-साथ पाकिस्तान सरकार की भूमिका के बारे में भी आकलन किया जाएगा. रिपब्लिकन सीनेटर्स ने इसके अलावा बाइडेन प्रशासन से ये भी कहा है कि पंजशीर घाटी में अहमद मसूद के लड़ाकों के खिलाफ तालिबान के सपोर्ट में पाकिस्तान की क्या भूमिका रही थी, उसका भी आकलन करना चाहिए. 

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57 पेजों के इस बिल का नाम अफगानिस्तान काउंटर टेररिज्म, ओवरसाइट एंड अकाउंटबिलिटी एक्ट है और इस विधेयक का मकसद तालिबान और तालिबान समर्थक देशों को दंडित करना और उन पर प्रतिबंध लगाना है. पाकिस्तान की मानवाधिकर मंत्री इस विधेयक को लेकर अमेरिका की जबरदस्त आलोचना कर चुकी हैं और ये भी कह चुकी हैं कि अमेरिका का साथ निभाने के चलते पाकिस्तान को बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है.

"पाकिस्तान ने नहीं दिया तालिबान को मिलिट्री सपोर्ट"

पाकिस्तान के विदेश कार्यालय के प्रवक्ता असीम इफ्तिखार ने इस मामले में कहा है कि हम देख रहे हैं कि वॉशिंगटन में मीडिया और कैपिटल हिल में एक बहस चल रही है जिसमें अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी की परिस्थितियों को लेकर मंथन किया जा रहा है. ऐसा जान पड़ता है कि अमेरिकी सीनेट में कुछ सीनेट रिपब्लिकन्स द्वारा तैयार किया गया नया ड्राफ्ट बिल इसी दिशा में एक कदम है. इस कानून में पाकिस्तान को कुछ जगहों पर इस्तेमाल किया है जो पूरी तरह से गैर-जरूरी था. वहीं, पाकिस्तान के मंत्री शेख राशिद ने कहा पाकिस्तान ने तालिबान को सैन्य सुरक्षा प्रदान नहीं की है.

"पाकिस्तान के साथ जो अब हो रहा है, वो पहले से भी बदतर है"

इस बिल को लेकर पाकिस्तान पीपुल पार्टी की नेता शेरी रहमान ने इमरान खान की सरकार को निशाने पर लिया है. शेरी रहमान ने कहा कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की आनन-फानन में वापसी के चलते पाकिस्तान को गंभीर संकट का सामना करना पड़ा है. उन्होंने इस एक्ट का जिक्र करते हुए कहा है कि अमेरिका ने अफगानिस्तान को एक समझौते के तहत छोड़ा था जो उसने सीधे तालिबान के साथ किया था लेकिन अफगानिस्तान में जो कुछ भी हो रहा था उसकी जिम्मेदारी लेने के लिए पाकिस्तान पर दबाव बनाया जा रहा था. सही मायनों में कहा जाए तो पाकिस्तान के साथ जो हो रहा है, वो वास्तव में पहले की तुलना में ज्यादा बदतर है. 

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"पाकिस्तान अपने आपको सशक्त बनाने के लिए आखिर क्या कर रहा है?"

उन्होंने कहा कि यह बेहद निराशाजनक है कि संसद में इस बेहद हानिकारक दुष्प्रचार को लेकर अब तक कोई कदम नहीं उठाए गए हैं. ये जरूरी है कि आप सभी देशों के साथ आत्म-सम्मान के साथ जुड़ें खासतौर पर अमेरिका जैसी 'नाराज महाशक्तियों' के साथ जो खुद अफगानिस्तान में 20 सालों के राज के बाद इस देश को उथल-पुथल के हालातों में छोड़ चुका है. लेकिन हम लोग अपने आपको सशक्त बनाने के लिए क्या कर रहे हैं? एक बेहतरीन विदेशी पॉलिसी के इर्द-गिर्द संसद को एकजुट होने के बजाय हमारी संसद इस मसले पर कुछ नहीं कर रही है. पूरी दुनिया में अफगानिस्तान को लेकर संयुक्त बैठकें हो रही हैं लेकिन पाकिस्तानी सरकार का रवैया ठीक नहीं है. 

उन्होंने इमरान खान पर निशाना साधते हुए कहा कि अगर हम पाकिस्तान की मदद करने की भी कोशिश करते हैं, तो हमें बताया जाता है कि हमारे नेता भ्रष्ट हैं. आखिर इससे पाकिस्तान की मदद कैसे हो रही है? हमारे राष्ट्रपति जरदारी ने वॉशिंगटन पोस्ट में एडिटोरियल पोस्ट लिखा. उन्होंने अपनी पार्टी ही नहीं बल्कि पूरे पाकिस्तान का बचाव किया. ओपिनियन एडीटोरियल पढ़ें और इस बात को समझें कि कैसे संकट के क्षणों में एकजुट होने के लिए संसद का संचालन किया गया जाता है. आपको केवल अमेरिकी सीनेट ही नहीं, बल्कि पाकिस्तानी सीनेट में क्या हो रहा है, इस पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है. पाकिस्तान के पीएम को संसद का सम्मान करना चाहिए और आरोप-प्रत्यारोप का खेल खेलने और एकता को भंग करने के बजाय स्थिति पर चर्चा करनी चाहिए कि हम कैसे अपने देश की रक्षा कर सकते हैं. 

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