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आतंकी हमले के बाद कोई न कोई आतंकी संगठन क्यों इसकी जिम्मेदारी लेता है, क्या होता है फायदा?

आतंकी हमलों के बाद अक्सर कोई आतंकी संगठन अटैक की जिम्मेदारी ले लेता है. हमले में जितना बड़ा नुकसान हुआ हो, संगठन उतनी ऐंठ से शेखी बघारता है. जैसे वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले के बाद अलकायदा ने पूरी धमक के साथ इसकी जिम्मेदारी ली थी. लेकिन सवाल ये है कि झूठ और हिंसा पर टिके संगठन आखिर क्यों हमले के बाद सच बोल पड़ते हैं?

आतंकी संगठन अलकायदा ने 9/11 में अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला किया था. (Pixabay) आतंकी संगठन अलकायदा ने 9/11 में अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला किया था. (Pixabay)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 31 जनवरी 2023,
  • अपडेटेड 10:20 PM IST

पाकिस्तान के पेशावर की मस्जिद में हुए बम धमाके में मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. बेहद सुरक्षित इलाके में बनी इस मस्जिद पर आत्मघाती हमले की जिम्मेदारी पहले तो तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने ली, लेकिन फिर इससे पलट भी गया. यहां सवाल ये उठता है कि इतने बड़े हमले में अपना हाथ बताकर आतंकी संगठन को आखिर क्या हासिल हुआ? बल्कि इससे तो संगठन पर बड़ी कार्रवाई हो सकती है. तो क्यों किसी हमले के बाद चरमपंथी समूह लगातार उसकी जिम्मेदारी लेते हैं? क्या इससे उनका कोई फायदा सिद्ध होता है?

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आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट यानी ISIS, जिसे दुनिया का सबसे खूंखार चरमपंथी ग्रुप माना जाता है, उसका एजेंडा साफ है. वो दुनिया में और खासकर सीरिया और इराक में पूरी तरह से इस्लामिक कानून लाना चाहता है. जो भी इसके रास्ते में आए, इस्लामिक स्टेट उसे खत्म कर देता है, फिर चाहे वो कोई ग्रुप हो, कोई सरकार या कोई शख्सियत. अपने खिलाफ बोलने वाले देशों पर भी वो कार्रवाई करता रहता है. 

ऐसे लेता है जिम्मेदारी
आतंकी हमले के बाद ये संगठन उसकी जिम्मेदारी भी लेता है. इसका खास तरीका है. ISIS की अपनी न्यूज एजेंसी है, जिसका नाम है अमाक. इसमें ब्रेकिंग न्यूज से लेकर इस्लामिक कायदों की भी बात होती है. वीडियो और लिखित में भी खबरें आती हैं. हालांकि ये टीवी पर नहीं आता और हर कोई इसे नहीं देख सकता, बल्कि इसके लिए संगठन ही पर्मिशन देता है. ये एक तरह से वैसा ही है, जैसे किसी खास ग्रुप में जोड़ा जाने पर ही आप वहां की एक्टिविटी देख सकें. हमले के बाद इसकी खबर और जिम्मेदारी अमाक न्यूज एजेंसी पर संगठन लेता है. 

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फेक न्यूज भी बनती है
आमतौर पर किसी आत्मघाती हमले के चौबीस घंटों के भीतर ISIS इसमें अपना हाथ बता देता है. दूसरे संगठन एक से दो दिनों का समय लेते हैं. आतंकी संगठनों की भी आपस में दुश्मनी होती है. ऐसे में कई बार ये भी होता है कि कोई दूसरा समूह उत्पात मचाकर दूसरे का नाम ले ले. कई बार ऐसी फेक न्यूज भी आती है. तो हर आतंकी संगठन ने अपना पैटर्न तय कर रखा है कि वो किस तरीके से अपने हमले की जिम्मेदारी लेगा, ताकि कोई उसके नाम से फेक बातें न फैलाए. 

इस्लामिक स्टेट अक्सर हमले के 24 घंटों के भीतर इसकी जिम्मेदारी ले लेता है. (AFP)

लेकिन जिम्मेदारी लेने से क्या होता है?
ये आतंकी संगठन हैं, जिनका काम ही झूठ और कत्लेआम मचाना है. फिर हमले के बाद ये लोग सच क्यों बोलते हैं? इसकी भी वजह है. फाउंडेशन फॉर डिफेंस ऑफ डेमोक्रेसीज के अनुसार टैररिस्ट ग्रुप्स के लिए ये वैसा ही है, जैसा किसी कंपनी के लिए साल के आखिर में अपना प्रॉफिट गिनाना. वे इसे अपनी उपलब्धि की तरह देखते हैं. अगर कोई समूह बताएगा कि उसने फलाने बड़े देश में बड़ा धमाका कर दिया, तो बाकी जगहों पर उसका खौफ बढ़ जाएगा. सरकारें भी उससे डरेंगी और चाहेंगी कि कहीं न कहीं नेगोशिएट हो जाए. 

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फंडिंग आसान हो जाती है
इससे उन्हें एक फायदा ये भी होता है कि एक जैसी सोच वाले छोटे समूह भी उससे मिल जाते हैं. इससे ताकत और बढ़ती है. फंडिंग मिलने में भी इससे आसानी होती है. समान एजेंडा वाले ग्रुप, जो बाहर से सफेदपोश होते हैं, वे ऐसे संगठनों को पैसे देते हैं. इससे ब्लैक मनी भी नहीं दिखती और काम भी बन जाता है. जैसे मान लीजिए कि इस्लामिक स्टेट को हथियार खरीदने या मिलिटेंट्स की ट्रेनिंग के लिए पैसे चाहिए, तो इसमें मदद तभी मिलेगी, जब वे खुद को आतंक की दुनिया में स्थापित कर लें. 

कई बार आतंकियों को भी सफाई देने की जरूरत पड़ जाती है
अमेरिका में 9/11 के दौरान वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में कई मुस्लिम भी मारे गए. इसपर एक पाकिस्तानी पत्रकार को इंटरव्यू देते हुए अलकायदा के चीफ ओसामा बिन लादेन ने कहा था कि अफसोस तो है लेकिन इस्लामिक कानून के मुताबिक मुस्लिमों को काफिरों की जमीन पर ज्यादा दिनों तक नहीं रहना चाहिए था. वे रहे, इसी की सजा उन्हें भी मिली. 

बहुत से ऐसे आतंकी हमले होते हैं, जिनकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेता
ये या तो किसी आतंकी संगठन की सोच से प्रेरित एक या दो व्यक्ति होते हैं, या फिर संगठन खुद ही होता है. लेकिन कुछ खास हालातों में वो जिम्मेदारी नहीं लेता. जैसे अगर मुस्लिम चरमपंथी संगठन है, और हमले में उनका ही नुकसान हो जाए, तब वे लोगों के गुस्से से बचने के लिए चुप्पी साधे रहते हैं. कई बार उन्हें ये डर भी होता है कि कहीं उनके ही मिलिटेंट उनसे बगावत न कर बैठें, तब भी नुकसान के बाद वे जिम्मेदारी लिए बिना बैठे रहते हैं. 

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