
पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को शीर्ष अदालत के जजों सहित अन्य लोगों से जुड़े ऑडियो लीक की न्यायिक जांच पर रोक लगा दी. चीफ जस्टिस उमर अता बंदियाल, न्यायमूर्ति इजाजुल अहसन, न्यायमूर्ति मुनीब अख्तर, न्यायमूर्ति सैयद हसन अजहर रिजवी और न्यायमूर्ति शाहिद वहीद की पांच सदस्यीय पीठ ने अपना सुरक्षित फैसला सुनाया.
पीठ ने आदेश में न्यायिक पैनल के गठन पर सरकार की अधिसूचना के संचालन को भी निलंबित कर दिया.
शीर्ष अदालत ने कहा, 'परिस्थितियों में, सुनवाई की अगली तारीख तक, संघीय सरकार द्वारा जारी अधिसूचना नंबर एसआरओ.596(आई)/ 2023 दिनांक 19 मई 2023 के संचालन को निलंबित किया जाता है, जैसा कि 22 मई 2023 को सरकार द्वारा किया गया आदेश है. आयोग और उसके परिणामस्वरूप आयोग की कार्यवाही पर रोक लगा दी जाती है.'
पिछले हफ्ते ही सरकार ने बनाई थी जांच समिति
बता दें कि पिछले कुछ महीनों में सोशल मीडिया पर सामने आए ऑडियो लीक की जांच के लिए सरकार ने पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट के जज काजी फैज ईसा और हाई कोर्ट के दो जजों की अगुवाई में तीन सदस्यीय आयोग का गठन किया था और इसमें अदालत के एक सिटिंग जज के साथ-साथ मुख्य न्यायाधीश के रिश्तेदारों के ऑडियो भी शामिल थे.
इन लोगों ने समिति पर उठाए सवाल
सरकार के आदेश के बाद जैसे ही आयोग काम करने लगा, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के अध्यक्ष आबिद शाहिद जुबेरी, एससीबीए के सचिव मुक्तादिर अख्तर शब्बीर, पीटीआई के अध्यक्ष इमरान खान और अधिवक्ता रियाज हनीफ राही ने आयोग के गठन को गैरकानूनी घोषित करने की मांग करते हुए कई याचिकाएं दायर कीं.
जज बोले- सरकार हमारे काम में दे रही दखल
सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि सरकार ने न्यायपालिका के मामलों में हस्तक्षेप करने की कोशिश की थी, क्योंकि उसने मुख्य न्यायाधीश की अनुमति के बिना एक न्यायाधीश को आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया था. बता दें कि अटॉर्नी जनरल मंसूर अवान ने बंदियाल को बेंच में शामिल करने पर आपत्ति जताई थी लेकिन उनकी आपत्तियों को खारिज कर दिया गया था.
शहबाज सरकार को SC से लगा झटका
कोर्ट ने सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया, जो बाद में शाम को जारी किया गया. अदालत ने 31 मई को मामले की सुनवाई करने की भी घोषणा की. यह आदेश कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच चल रहे संघर्ष में सरकार के लिए एक झटका है, जो तब शुरू हुआ जब सरकार ने पंजाब प्रांत में चुनाव कराने के लिए धन उपलब्ध कराने से इनकार कर दिया.