
बीते सितंबर में पाकिस्तान के कराची में हाल के दिनों का सबसे बड़ा शिया-विरोधी प्रदर्शन देखा गया. हजारों लोग सुन्नियों के समर्थन में झंडे लहराते हुए सड़कों पर उतरे और शियाओं को ‘काफिर’(unbelievers) कहा गया. ये लगातार दो दिनों तक चलता रहा.
प्रदर्शनों के दौरान कई लोगों के हाथ में सिपाह-ए-सहाबा पाकिस्तान’ के झंडे देखे गए. ये एक कट्टरपंथी सुन्नी संगठन है. पूर्व पाकिस्तानी सैन्य तानाशाह राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने इस संगठन को पहले 2002 में और फिर 2012 में प्रतिबंधित कर दिया था.
प्रतिबंध के बावजूद ये संगठन अहल-ए-सुन्नत-वल-जमात (ASWJ) के बैनर तले, अहमद लुधियानवी और औरंगजेब फारूकी के नेतृत्व में कार्य करता रहा और आगे बढ़ता रहा.
पाकिस्तान के कई दूसरे आतंकी संगठनों की तरह ये ग्रुप भी सभा करने की आजादी का फायदा उठाता है, नफरत फैलाने वाले भाषण देता है और अन्य समूहों के खिलाफ अपने कैडरों को उकसाता है. यहां तक कि संसदीय चुनावों सहित राजनीतिक पदों के लिए चुनाव भी लड़ता है.
आतंकी समूहों के खिलाफ दिखावटी कदम
विश्लेषकों का कहना है कि आधिकारिक तौर पर आतंकी समूहों पर प्रतिबंध लगाने, उनके बैंक खातों को फ्रीज करने जैसी दिखावटी कार्रवाई पाकिस्तानी सरकार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फाइनेंशियल एक्टन टास्क फोर्स (FATF) जैसी संस्थाओं के सामने अपने दावों की पुष्टि के लिए जरूरी दस्तावेज मुहैया कराती है कि उसने आतंक के खिलाफ क्या कदम उठाया. लेकिन सच्चाई ये है कि ये ग्रुप लगातार अपना काम करना जारी रखे हुए हैं.
इस तरह की एक बैठक फ्रांस के पेरिस में हो रही है, जहां FATF यह तय करने के लिए बैठक कर रहा है कि क्या पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में रखा जाए, क्योंकि पाकिस्तान ने टेरर फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई नहीं की है.
पाकिस्तान में अल्पसंख्यक विरोधी हिंसा और नफरत पर काम करने वाले शोधकर्ता जफर मिर्जा कहते हैं, “प्रतिबंधित ASWJ और अन्य चरमपंथी संगठन अलग-अलग नामों से रैलियां आयोजित करते रहते हैं. ASWJ के नेता औरंगज़ेब फारूकी को भी स्टेट प्रोटोकॉल प्राप्त है और वे सुरक्षा अधिकारियों के साथ घूमते हैं.”
मिर्जा के अनुसार, ये प्रतिबंध सिर्फ कागज पर हैं और ये सारी कार्रवाई अंतरराष्ट्रीय औपचारिकता भर है. उनके मुताबिक, “उन्हें घर पर कार्यक्रम आयोजित करने के लिए सरकार से अनापत्ति प्रमाण पत्र मिल रहे हैं. इससे पता चलता है कि वे किस तरह सरकारी संरक्षण का आनंद ले रहे हैं.”
कराची में इस शिया विरोधी नफरत को हवा देने वाला एक अन्य ग्रुप है तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी), ये एक बरेलवी ग्रुप है जो पाकिस्तान में काम करने वाले इस्लामी चरमपंथी समूहों के बीच अचानक उभरा है.
ऐतिहासिक रूप से बरेलवी हिंसक इस्लाम से कतराने लगे थे लेकिन हाल के वर्षों में स्थिति बदल गई है. विशेषज्ञों की मानें तो इसमें स्टेट यानी सरकार की भी मिलीभगत है.
मिर्जा समझाते हैं, “2017 में टीएलपी ने ईश निंदा के आरोपों को लेकर सरकार विरोधी हिंसक प्रदर्शन किया था. इसे पाकिस्तानी सेना का समर्थन प्राप्त था.”
उनके मुताबिक, “इस तरह के संरक्षण ने इन समूहों को निडर बना दिया है और अब वे अपने मकसद की ओर बढ़ रहे हैं. अब उनके निशाने पर शिया हैं जो देश का सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समूह है.”
पाकिस्तान से बाहर भी पहुंच
इससे भी अधिक डरावना ये है कि टीएलपी जैसे समूह अपने फॉलोवर्स को वैश्विक स्तर पर ईशनिंदा को लेकर कट्टरपंथी बना रहे हैं, जिससे न केवल पाकिस्तान बल्कि विदेशों में भी हिंसक घटनाओं को बढ़ावा मिल रहा है.
हाल ही में फ्रांस में एक 25 वर्षीय पाकिस्तानी, जो कुछ साल पहले पेरिस आया था, ने फ्रांसीसी पत्रिका चार्ली हेब्दो के पुराने दफ्तर के सामने दो लोगों को चाकू मार दिया. पत्रिका ने इस्लाम के संस्थापक मोहम्मद साहब का कैरिकेचर छापा था.
इससे पहले उसने एक वीडियो जारी किया था जिसमें कहा गया कि वह इस्लाम और मोहम्मद के अपमान का बदला लेने के लिए ऐसा कर रहा है. हमलावर कथित तौर पर टीएलपी की विचारधारा के प्रभाव में था.
पंजाब में उग्रवाद के बारे में शोध कर रहीं पाकिस्तानी विश्लेषक मरवी सरमद का कहना है, “बरेलवी उग्रवाद का यह नया चलन काफी चिंताजनक है और पश्चिम को इसका एहसास होना चाहिए. पश्चिमी ताकतों का मानना है कि समस्या सिर्फ जिहादी हैं, लेकिन पाकिस्तानियों के बीच और विश्व स्तर पर इस नए ब्रांड के इस्लामी चरमपंथ की पहुंच कहीं ज्यादा है, जैसा कि हमने पेरिस में छुरा घोंपने के मामले में देखा था.”
‘फिर से सिर उठा रहे कश्मीर में आतंकवादी और पाकिस्तान में तालिबानी समूह’
जांच से पता चलता है कि पाकिस्तान में कई जगहों पर कश्मीरी आतंकवादी और पाकिस्तानी तालिबान भी फिर से इकट्ठा हो रहे हैं और कुछ मामलों में वे पाकिस्तानी स्टेट से संरक्षण भी पा रहे हैं.
पिछले साल ये सामने आया कि संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के स्थायी मिशन ने जमात-उद-दावा (या लश्कर-ए-तैयबा) के पांच शीर्ष लीडर्स के परिवारों से जुड़े बैंक खातों को डी-फ्रीज करने के लिए आवेदन पेश किए. ये घटना इस आतंकी समूह के प्रति पाकिस्तानी सरकार के नरम रवैये को स्पष्ट करती है जो दक्षिण एशिया में कई हमलों, खासकर 2008 में भारत में मुंबई हमलों के लिए जिम्मेदार है.
जमात-उद-दावा (JuD) ने हाल के वर्षों में पाकिस्तान के सियासी गलियारे में भी अपनी जगह बनाई है और मिल्ली मुस्लिम लीग (MML) के बैनर तले 2018 के चुनावों में हिस्सा लिया.
सरमद का कहना है, “JuD और उनके जैसे दूसरे आतंकवादी कभी खत्म नहीं हुए. दरअसल, उन्हें बताया गया था कि उन्हें मुख्यधारा में रहने के लिए लो प्रोफाइल बने रहना चाहिए. हमने देखा कि कैसे उन्होंने हाल ही में एक राजनीतिक पार्टी एमएमएल का गठन किया और चुनाव लड़े. और जैसा कि 2017 में एक इंटरव्यू में जनरल अमजद शोएब (रिटायर्ड) ने खुलासा किया था कि इसके पीछे सेना भी है.”
जमीन पर JuD का मुख्य नेतृत्व लो प्रोफ़ाइल रहता है, जबकि कुछ लोग फिर से सार्वजनिक रूप से सामने आ रहे हैं, खासकर JuD का दूसरे स्तर का कैडर.
जारी हैं फंड जुटाने की गतिविधियां
हालिया जांच से यह पुष्टि हुई कि JuD निर्बाध रूप से पाकिस्तानी प्रांतों में फंड जुटाने की गतिविधियां जारी रखे हुए है, जिसमें JuD के टॉप लीडर शुक्रवार को भाषण देते हैं.
हाल ही में फलाह-ए-इंसानियत फाउंडेशन (JuD की विंग FIF-a) के चेयरमैन हाफिज अब्दुल रऊफ का पोस्टर सोशल मीडिया पर वायरल हुआ. इसमें लोगों को गुजरांवाला जिले में शुक्रवार के भाषण में आमंत्रित किया गया था. ये इलाका जमात-उद-दावा की गतिविधियों का गढ़ है.
दिलचस्प बात ये है कि इन पोस्टरों में अब उनके आतंकवादी संगठनों के निशान नहीं दिखते. ये दिखाता है कि ऐसा मीडिया से अपना जुड़ाव छिपाने के प्रयास के तहत किया जाता है.
जमात-उद-दावा चीफ हाफिज मुहम्मद सईद के बेटे हाफिज तल्हा सईद का भी एक पोस्टर इंटरनेट पर घूम रहा था जिसमें वह धार्मिक उपदेश दे रहा था. पूरे पाकिस्तान में उनका फंड जुटाने का कार्यक्रम भी जारी है. स्थानीय सूत्रों के मुताबिक, पूरे पाकिस्तान में कई मस्जिदों से जमात-उद-दावा अब भी जुड़ा हुआ है.
इन मस्जिदों के जमात-उद-दावा की मैगजीन ‘नूर-ए-बसीरत’ फ्री में बांटी जाती है, जिसे कोई भी प्राप्त कर सकता है. इस पत्रिका में ऐसे लेख होते हैं जो इस्लाम और जिहाद पर "ट्रेनिंग कोर्स" में शामिल होने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करते हैं.
महामारी के दौरान फिर सक्रिय हुए आतंकी समूह
स्थानीय खबरों से ये भी पता चलता है कि जैश-ए-मोहम्मद (JeM) मौजूदा कोरोना महामारी के दौरान फिर से सक्रिय हो गया है.
JeM के प्रमुख सदस्य शुक्रवार की सभाओं में और हाल ही में ईद-उल-अजहा पर भी सभाओं में भाग लेते और संबोधित करते दिखे हैं. कुछ JeM लीडर्स ने धार्मिक सम्मेलनों में भी भाग लिया है.
JeM नेता मौलाना तल्हा अल-सैफ नियमित रूप से शुक्रवार को भाषण देते रहे हैं, जो “IslamiVoices Official” नाम के एक यूट्यूब चैनल पर अपलोड किए जाते हैं. इनमें से कुछ भाषणों में अमेरिकी और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के अधिकारियों की हत्या की वकालत की गई है. अपने यूट्यूब वीडियो में वह लगातार कश्मीर में जिहाद छेड़ने के लिए दान मांगता है.
लेकिन जैसा कि पहले बताया गया है, इस तरह का पुनरुत्थान केवल सुन्नी चरमपंथियों और कश्मीर केंद्रित आतंकवादियों तक सीमित नहीं है. जांच में इस ओर इशारा किया गया है कि पाकिस्तान में तालिबान एक बार फिर से सक्रिय हो रहा है.
पाकिस्तानी तालिबान को आमतौर पर तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) के रूप में जाना जाता है. 2014 में सेना के अभियानों के चलते इसे ट्राइबल इलाकों से खदेड़ दिया गया था, लेकिन स्थानीय नेताओं का कहना है कि अब ये उन्हीं इलाकों में फिर से जड़ें जमा रहा है.
नॉर्थ वजीरिस्तान के पार्लियामेंट मेंबर मोहसिन दावर ने हाल में एक इंटरव्यू में कहा, “उग्रवादियों का फिर से खतरनाक स्तर पर उभार हो रहा है... हम ऐसा नहीं देख रहे हैं कि स्टेट इस क्षेत्र में स्थायी शांति के लिए प्रयास कर रहा हो.”
दिलचस्प बात यह है कि इधर पाकिस्तानी तालिबान का उभार हो रहा है और उधर पाकिस्तान और अफगानिस्तान को विभाजित करने वाली डूरंड रेखा के दूसरी तरफ अफगान तालिबान का उदय हो रहा है.
पाकिस्तानी पोलिटीशियन और सीनेटर अफरासियाब खटक का कहना है, “अफगान तालिबान के सत्ता में आने के बाद यहां पाकिस्तानी तालिबान को भी फ्री हैंड दिया जा रहा है, ताकि उन्हें सीमा क्षेत्रों में अधिक नियंत्रण दिया जा सके.”
खट्टक के अनुसार, पाकिस्तानी तालिबान अफगानी तालिबान की ही एक शाखा है और 2014 में अफगानिस्तान में अमेरिकी और नाटो बलों में कटौती की घोषणा के बाद अफगान तालिबान को समर्थन देने के लिए इसे सिर्फ अस्थायी रूप से खत्म किया गया था.
लेकिन इन सीमावर्ती क्षेत्रों में एक बार फिर से हिंसा बढ़ी है और नियमित रूप से प्रमुख स्थानीय नेताओं की टॉरगेटेड हत्याएं की जा रही हैं.
खटक का कहना है कि इन टॉरगेटेड हत्याओं का नापाक एजेंडा स्थानीय प्रभाव को खत्म करने से कहीं ज्यादा है. उनके मुताबिक, “यह पश्तून तहफ्फुज मूवमेंट (PTM) के लिए एक संदेश भी है. पीटीएम पाकिस्तान में सबसे मुखर समूहों में से एक है, जो आतंकवादियों के साथ पाकिस्तानी सेना के संबंधों को भी उजागर करता है.”
(तहा सिद्दीकी पाकिस्तान से निर्वासित पत्रकार हैं जो पेरिस, फ्रांस में रहते हैं.)