
ब्रिटेन के प्रिंस हैरी ने अपनी आत्मकथा 'स्पेयर' में कई सनसनीखेज बातें लिखीं. किताब 10 जनवरी को रिलीज हुई, लेकिन इससे पहले ही उसके कई हिस्से लीक हो गए. इसमें प्रिंस ने परिवार के कई सदस्यों को लेकर बेहद निजी बातें लिखी हैं. यहां तक कि उन्होंने ये भी कबूला कि खुद उनके पिता मजाक में उन्हें किसी और का बेटा कहते थे. इस सबका उनके बचपन और लोगों के उनसे व्यवहार पर गहरा असर पड़ा. कहना न होगा कि किताब में वो सबकुछ है, जिन्हें हम डीप सीक्रेट कहते हैं. राजघराने के राज जानने की लोगों की इच्छा का अंदाजा इसी से लग सकता है कि इसके इस साल की बेस्ट सेलर बुक होने का अंदाजा लगाया जा रहा है.
ऐसे में सवाल उठता है कि लोग दूसरों की जिंदगी में क्यों रुचि लेते हैं? ब्रिटिश मानव विज्ञानी रॉबिन डन्बर ने सालों की स्टडी के बाद एक मैजिक नंबर दिया था- 150. डन्बर के मुताबिक इंसान का सोशल दायरा चाहे जितना भी बड़ा हो, वो पूरी जिंदगी में सिर्फ डेढ़ सौ लोगों से ही लगाव रख पाता है. इसे डन्बर थ्योरी कहा गया, जिसमें बताया गया कि किसी के भी सबसे करीबी लोगों में सिर्फ 5 लोग होते हैं. यही वे लोग हैं, जिनके होने या न होने से हमें फर्क पड़ता है.
दायरा बढ़ाने पर इसमें 15 लोग आ जाते हैं, जिसमें परिवार, प्रेमी, दोस्त भी शामिल हैं. सर्कल और बढ़ाया जाए तो कुल 150 लोग होते हैं, जिन्हें हम पसंद करते या किसी किस्म का लगाव रखते हैं. इसके अलावा कुल 15 सौ लोग ऐसे होते हैं, जिन्हें हम पहचानने का दावा कर सकते हैं. इसके अलावा रोजमर्रा की जिंदगी में हम चाहे कितने ही बड़े पार्टीबाज क्यों न हों, कितनों से ही क्यों न मिलें, हमें किसी से खास मतलब नहीं होता. तब क्या वजह है जो हम दूसरों, और यहां तक कि अनजान लोगों का भी दरवाजा खुला होने पर झांकने लगते हैं!
एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ सोशल एंड बिहेवियरल साइंसेज ने इसपर एक स्टडी की, जिसके नतीजे जर्नल ऑफ पर्सनैलिटी एंड सोशल साइकोलॉजी में छपे. इसके अनुसार लोगों में दूसरों के सीक्रेट जानने की इच्छा हमेशा ही होती है. चाहे फिर वो चुपके से डायरी पढ़ना हो, या फिर छिपकर बातें सुनना. इससे एक किस्म की खुशी मिलती है, जो बिल्कुल वैसा ही है जैसे डोपामाइन हार्मोन का बढ़ना.
इस खुशी की कई वजहें भी बताई गईं. जैसे इंसान अगर अपने सीक्रेट दुख की बात करे तो सुनने वाले को एक किस्म का संतोष मिलता है कि वही अकेला दुखी नहीं. या फिर कोई अगर अपने किसी डार्क सीक्रेट की बात करे तो अगला ये सोचकर खुश होता है कि मैं ही अकेला नैतिक तौर पर कमजोर नहीं.
अध्ययन में यह भी देखा गया कि कई सीक्रेट आमतौर पर एक से दूसरे तक फैलते जाते हैं. जैसे शादी में तनाव, अफेयर या यौन कमजोरी जैसे राज 30 प्रतिशत मामलों में राज नहीं रह पाते. यानी अगर आप भरोसा करके किसी एक व्यक्ति को ये बात बताएंगे तो बहुत मुमकिन है कि बात कई लोगों तक पहुंच जाए.
ये तो हुई आम लोगों की बात, लेकिन सवाल ये है कि हम उन लोगों के प्यार या घरेलू झगड़ों के बारे में क्यों जानना चाहते हैं जो हमारी पहुंच से बहुत दूर हैं. जैसे सेलिब्रिटीज का अफेयर या उनकी नाकामयाबी के किस्से जानना हमें क्यों अच्छा लगता है! इस प्रवृत्ति को वॉयेरिज्म कहते हैं. हॉलीवुड या बॉलीवुड में कौन किस हाल में है, किसका रिश्ता टूटा, या कौन किस तरह के ऊटपटांग कपड़े पहनकर आया, ये इसी मनोविज्ञान का हिस्सा है.
भारत की बात करें तो फिलहाल खूब देखा जा रहा बिग बॉस भी इसी का एक नमूना है, जिसमें हम अपनी पसंद और नापसंद के लोगों को करीब से देखते हैं. उनके बारे में जानते हैं और यहां तक कि उन्हें गलत भी ठहरा पाते हैं. ये एक तरह का सेंस ऑफ पावर देता है कि हम सेलिब्रिटीज को भी जज कर सकते हैं.
गॉसिप करना भी एक किस्म की ताकझांक ही है. मई 2019 में सोशल साइकोलॉजिकल एंड पर्सनैलिटी साइंस में आई स्टडी दावा करती है कि एक आम शख्स रोज लगभग 52 मिनट गॉसिप में बिताता है. ऐसा करते हुए वो जानता तक नहीं है कि वो गॉसिप कर रहा है, बल्कि वो इसे इंफॉर्मेशन-शेयरिंग की तरह देखता है. ये किसी सहकर्मी के बारे में भी हो सकता है, बॉस या उसके परिवार पर भी, यहां तक कि किसी अनजान शख्स के बारे में भी. यहां तक कि लोग खुद अपने बारे में गॉसिप करते हैं, जिससे उन्हें सेंस ऑफ आइडेंटिटी मिल सके.