
अमेरिका में ट्रंप प्रशासन आने के बाद वहां से लगातार अवैध प्रवासियों को उनके मुल्क वापस भेजा रहा है. इस कड़ी में बीती 5 फरवरी को 104 भारतीयों को लेकर अमेरिकी वायुसेना के विमान ने टेक्सास से सीधे अमृतसर की उड़ान भरी. अमृतसर उतरने वाले अवैध प्रवासियों में 31 अकेले पंजाब से थे और वापस लौटे भारतीय के बयानों के आधार पर अमेरिका जाने के डंकी रूट का पता लगाया गया है. साथ ही ये भी पता चला कि वे किन मुश्किलों से होकर अवैध तरीके से अमेरिका में दाखिल हुए थे.
डंकी रूट पर मौत से सामना!
'अमेरिकन ड्रीम' को पूरा करने के लिए इन भारतीयों ने घने जंगलों, बर्फीले मौसम, नकाबपोश लुटेरों, बलात्कारियों, जहरीले सांप, जख्म, भूख और हत्या की धमकियों का सामना किया. यह सब उन्होंने सिर्फ अमेरिकन ड्रीम की चाहत में किया. लेकिन उनके सपने ज़्यादा दिन नहीं टिके. अमेरिका पहुंचने के कुछ ही हफ़्तों के भीतर अधिकारियों ने उन्हें पकड़ लिया और 5 फरवरी को हथकड़ी लगाकर सैन्य विमान से वापस भारत भेज दिया.
पंजाब से 31 में से कम से कम 29 लोगों ने पुलिस को दिए बयान में अपनी आपबीती बताई है, जिसमें मैक्सिको के रास्ते अमेरिका पहुंचने के लिए अपनाई गई प्रक्रिया का ब्यौरा दिया गया है. उनके बयानों से पता चलता है कि वे सभी आवश्यक दस्तावेजों के साथ कानूनी तरीके से भारत से निकले थे.
अमेरिका जाने वाले भारतीयों की संख्या में इजाफा
दक्षिण अमेरिका पहुंचने के लिए उनका पहला पड़ाव आसान वीजा नियमों वाले देश थे. उनमें से कम से कम आठ दुबई में उतरे, आठ स्पेन में, पांच इटली में, चार ब्रिटेन में और एक-एक ब्राज़ील, गुयाना, फ़्रांस और सूरीनाम में. 'डंकी रूट', जो बेहद खतरनाक यात्राओं के लिए कुख्यात है. ये रूट दशकों से अस्तित्व में है, लेकिन 2023 में आई शाहरुख खान की फिल्म डंकी की रिलीज और अमेरिका पहुंचने के लिए इस रूट का इस्तेमाल करने वाले कई भारतीयों को वापस भेजने के बाद इस पर ज्यादा चर्चा हो रही है.
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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से अवैध प्रवासियों को देश से निकालने के बाद अमेरिका जाने का यह जोखिम भरा रूट सुर्खियों में आ गया है. प्यू रिसर्च सेंटर के आंकड़ों से पता चला है कि सिर्फ चार साल में, अवैध रूप से अमेरिका में दाखिल होने वाले भारतीय नागरिकों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है. साल 2018-2019 की अवधि में ये आंकड़ा 8,027 से बढ़कर 2022-2023 में 725,000 हो गया है.
आखिर कैसे शुरू होता है ये सफर
लैटिन अमेरिका के बाहर भारत ऐसा एकमात्र देश हैं जहां से सबसे ज्यादा अवैध प्रवासी अमेरिका पहुंचते हैं. साल 2011 से अमेरिका में अवैध रूप से दाखिल भारतीयों की संख्या में 70 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. यूएस कस्टम्स एंड बॉर्डर प्रोटेक्शन के आंकड़े बताते हैं कि 2020 और 2023 के बीच बिना दस्तावेजों के अमेरिका गए भारतीयों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई है.
इस महीने अमेरिका से निर्वासित भारतीयों के लिए अमेरिका जाने का सफर सबसे पहले एक एजेंट तक पहुंचने से शुरू होता है, जो आपको अमेरिका पहुंचाने का वादा करता है. अमेरिका जाने का सपना पूरा करने के लिए इन प्रवासियों को इन एजेंटों को 40 लाख रुपये से लेकर एक करोड़ रुपये तक देने पड़ते हैं. एक बार कॉन्ट्रैक्ट सेफ हो जाने के बाद उम्मीदवारों को अपेक्षाकृत अनुकूल वीजा जरूरतों वाले देश में ले जाया जाता था, इनमें लैटिन अमेरिका में उतरने से पहले- ब्राजील, इक्वाडोर, बोलीविया या गुयाना जैसे देशों में एंट्री दी जाती है. कुछ मामलों में एजेंटों ने दुबई से मैक्सिको के लिए सीधे वीज़ा का इंतजाम भी किया.
जंगलों में 100 किमी की पैदल यात्रा
हालांकि, लैटिन अमेरिका के किसी भी देश में पहुंचना पहला और वास्तव में सबसे आसान कदम था. यहीं से प्रवासियों ने खतरनाक जंगलों से होते हुए अमेरिका-मेक्सिको सीमा तक की यात्रा शुरू की. प्रवासी कोलंबिया से पनामा सिटी तक पहुंचने के लिए घने जंगलों से होकर करीब 100 किलोमीटर की यात्रा करते हैं. पिछले साल, लगभग 250,000 लोगों ने डेरियन गैप को पार किया. कोलंबिया-पनामा बॉर्डर पर फैला जंगल बहुत बड़ा है. इनमें से कई अमेरिका पहुंचने की तलाश में थे. यात्रा मार्ग के बारे में विस्तार से बताते हुए निर्वासितों में से एक गुरविंदर सिंह ने बताया कि उन्हें गुयाना से ब्राज़ील तक कार से ले जाया गया. वहां से वे बोलिविया, पेरू और इक्वाडोर से होते हुए बस से कोलंबिया पहुंचे.
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डेरियन गैप का नाम दक्षिण और मध्य अमेरिका को जोड़ने वाले पैन-अमेरिकन हाईवे में बने 'गैप' से पड़ा है. इसकी ऊबड़-खाबड़ ज़मीन यहां किसी भी तरह के निर्माण को असंभव बनाती है. प्रवासी आम तौर पर जंगलों से होते हुए 106 किलोमीटर के मार्ग पर पैदल यात्रा करने में यहां पांच से नौ दिन बिताते हैं, जो कोलंबिया से शुरू होकर पनामा बॉर्डर के पार पश्चिम की ओर बढ़ते हुए बाजो चिकीटो तक जाता है. जहां प्रवासियों को एक रिसेप्शन सेंटर में रखा जाता है. वहां से वे उत्तर की ओर अपनी यात्रा जारी रखने से पहले सैन विसेंट या लाजस ब्लैंकास जैसे अन्य सेंटर्स पर जाते हैं.
गिरफ्तारी का डर और घुसपैठ
कोलंबिया से कैपुरगना द्वीप तक की यात्रा, जो डेरियन ट्रेक का शुरुआती पॉइंट है, नाव से की गई थी. वहां से वे प्रवासी वेलकम सेंटर तक पहुंचने से पहले डेरियन गैप के घने और खतरनाक जंगलों में कई दिनों तक पैदल चले. डंकर्स, जैसा कि डंकी रूट को अपनाने वाले लोगों को कहा जाता है, को फिर सब्जी की गाड़ियों में लादकर पनामा सिटी ले जाया गया. वहां से कोस्टा रिका, निकारागुआ, होंडुरास और ग्वाटेमाला से होते हुए बस से यात्रा करते हुए आखिर में मैक्सिको-यूएस सीमा पर पहुंचे.
गुरविंदर सिंह ने बताया कि एजेंट की ओर से दिए गए फर्जी पहचान पत्र का इस्तेमाल करके उसे मूसा के रास्ते मैक्सिकन सीमा पार कराई गई. इसके बाद वह बस से मैक्सिकन शहर सैनकोबा और तिजुआना पहुंचा और फिर अमेरिकी सीमा पार कर गया. कई निर्वासित लोगों की यात्रा को अमेरिका-मैक्सिको सीमा पर गश्ती दल द्वारा रोक दिया गया, जिसके बाद उन्हें सैन डिएगो सेंटर में हिरासत में ले लिया गया.
वापस लौटे लोगों की आपबीती
हरियाणा के खानपुर खुर्द के निशांत मोर पिछले साल अपना फोन और एक प्लान लेकर अमेरिका के लिए निकले थे. मकसद था कि वह डेरियन गैप नाम के खतरनाक जंगल से होकर अपनी यात्रा को रिकॉर्ड करेंगे और उसे यूट्यूब पर पोस्ट करेंगे. अपनी छह एपिसोड की सीरीज में, जिसे पूरी तरह से अपने फोन पर एडिट किया है, वह एक बैगपैक के साथ उत्तर की ओर बढ़ते हैं और अपने व्यूअर्स को नदियां, कीचड़ भरे जंगलों और मौत की पहाड़ी के तौर पर पहचाने जाने वाले मार्ग का एक-एक वीडियो और सेल्फी दिखाते हैं.
वह आखिर में अमेरिका पहुंचने में सफल रहे, लेकिन 5 फरवरी को उन्हें निर्वासित कर दिया गया. उनके इंस्टाग्राम और यूट्यूब अकाउंट पर हरियाणा से न्यूयॉर्क तक की उनकी यात्रा की पूरी डिटेल है. उन्होंने इंडिया टुडे से कहा कि अमेरिका सपने बेचता है, मेरे पास ऐसा दर्शक वर्ग है जो इस सपने को जीना चाहते हैं. निशांत के पोस्ट, फोटो, वीडियो और मीम्स सिर्फ हिंदी में ही नहीं हैं, बल्कि दुनिया भर से अमेरिका की दक्षिणी सीमा पर आने वाले प्रवासियों द्वारा बोली जाने वाली विभिन्न भाषाओं में भी उपलब्ध हैं.