
पिछले साल रूस में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में ब्रिक्स करेंसी पर काफी बात हुई थी. ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों के इस संगठन में ब्रिक्स करेंसी लाने पर कोई फैसला तो नहीं हुआ लेकिन एक नया भुगतान तंत्र बनाने पर सहमति जरूर बनी. ब्रिक्स देशों ने अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व वाली पश्चिमी भुगतान प्रणाली स्विफ्ट नेटवर्क से इतर नई भुगतान प्रणाली बनाए जाने पर बात की जिससे डॉलर के मुकाबले उनकी करेंसी में उतार-चढ़ाव के खतरे को कम किया जा सके.
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने रूस के कजान शहर में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में नए भुगतान तंत्र को लेकर कहा था कि रूस डॉलर को छोड़ना या उसे हराना नहीं चाहता बल्कि उनके देश को डॉलर के साथ काम करने से रोका जा रहा है. पुतिन ने कहा था, 'इसलिए हमें दूसरे विकल्प की तरफ देखने पर मजबूर होना पड़ रहा है.'
नवंबर में अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रिक्स देशों को नई करेंसी लाने के खिलाफ धमकी दी थी. ट्रंप ने कहा था कि अगर ब्रिक्स देश कोई नई करेंसी बनाते हैं या फिर डॉलर की जगह लेने के लिए किसी दूसरी करेंसी का समर्थन करते हैं तो उन्हें 100 प्रतिशत टैरिफ का सामना करना पड़ेगा. ट्रंप ने धमकी दी थी कि ब्रिक्स देश अमेरिकी बाजार में व्यापार नहीं कर पाएंगे.
20 जनवरी को राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के तुरंत बाद ट्रंप ने एक बार फिर ब्रिक्स देशों को चेतावनी दी. ट्रंप ने कहा, 'अगर ब्रिक्स देश ऐसा करना चाहते हैं, तो ठीक है लेकिन इसके बाद अमेरिका से व्यापार पर उन्हें कम से कम 100 प्रतिशत टैरिफ देना होगा. वैश्विक व्यापार में डॉलर के इस्तेमाल को कम करने की अगर वो सोचते भी हैं तो उन पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगेगा.'
ट्रंप की धमकी पर क्या बोले अर्थशास्त्री?
मंगलवार को स्विटजरलैंड के दावोस में आयोजित विश्व आर्थिक मंच पर चर्चा के दौरान कई अर्थशास्त्रियों ने कहा कि ब्रिक्स देशों को ट्रंप की धमकी डॉलर से उन्हें और दूर ही करेगी.
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर केनेथ रोगॉफ ने एक पैनल चर्चा के दौरान कहा, 'आप चाहते हैं कि लोग आपकी करेंसी का इस्तेमाल करें क्योंकि यह स्थिर है और भुगतान का साधन बनी हुई है. लेकिन अगर आप इसके इस्तेमाल को लेकर दूसरे देशों को धमका रहे हैं तो मुझे लगता है कि इससे वो देश वैश्विक व्यापार के लिए इस्तेमाल करेंसी में विविधता लाने के लिए और आगे बढ़ेंगे.' उन्होंने कहा कि इससे ट्रंप खुद अपने ही देश का नुकसान कर रहे हैं.
अमेरिकी डॉलर दशकों से वैश्विक व्यापार में एक प्रमुख करेंसी रही है. दुनिया भर के केंद्रीय बैंक फॉरेन रिजर्व के रूप में भी डॉलर को ही रखते हैं. लेकिन हाल के सालों में डॉलर के प्रभुत्व को लगातार चुनौती मिल रही है क्योंकि चीन जैसे देश डॉलर पर अपनी निर्भरता कम करने और अपनी करेंसी के अंतरराष्ट्रीयकरण पर जोर दे रहे हैं.
रूस-यूक्रेन छिड़ने के बाद से डॉलर की जगह दूसरी करेंसी के इस्तेमाल बढ़ाने की प्रवृति और बढ़ गई है. युद्ध को लेकर अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देशों ने रूस के कड़े प्रतिबंध लगाए हैं. उसे स्विफ्ट बैंकिंग सिस्टम से भी अलग कर दिया है जिससे वैश्विक व्यापार में उसे काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा है. यह देखकर दुनिया के बाकी देश समझ गए हैं कि किसी एक करेंसी पर निर्भरता कितनी खतरनाक है. किसी भी तरह के तनाव या संघर्ष के समय अमेरिका किसी देश को वैश्विक वित्तिय प्रणाली से अलग सकता है.
रघुराम राजन ने क्या कहा?
चर्चा के दौरान भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर अर्थशास्त्री रघुराम राजन ने कहा कि ट्रंप प्रतिक्रिया देने में बहुत जल्दबाजी कर रहे हैं क्योंकि ब्रिक्स की करेंसी आने वाले कुछ सालों में नहीं आने वाली है.
फिलहाल शिकागो विश्वविद्यालय में फाइनेंस पढ़ा रहे प्रोफेसर रघुराम राजन ने कहा कि करेंसी को हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है जिससे दुनिया भर के केंद्रीय बैंकर चिंतित हो गए हैं.
उन्होंने कहा, 'ब्रिक्स देशों के बीच भू-राजनीतिक तनाव को देखते हुए एक साझा ब्रिक्स मुद्रा की संभावना कम है. सदस्य देश भारत और चीन के बीच का सीमा विवाद भी एक बड़ा तनाव है. मुझे लगता है कि राष्ट्रपति ट्रंप उस चीज पर बहुत जल्दी प्रतिक्रिया दे रहे हैं जो होने वाली नहीं है.'
अमेरिकी डॉलर में आएगी धीमी गिरावट
हांगकांग विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के बिजनेस एवं मैनेजमेंट स्कूल के प्रोफेसर जिन केयू ने कहा कि आने वाले दशकों में ग्लोबल करेंसी के रूप में अमेरिकी डॉलर का इस्तेमाल खत्म नहीं होगा, लेकिन इसमें धीमी गिरावट आने की संभावना है.
जिन ने कहा कि चीन भले ही अपनी करेंसी के अंतरराष्ट्रीयकरण की कोशिश कर रहा है, उसने पिछले कुछ दशकों में वैश्विक व्यापार भुगतान में युआन के इस्तेमाल को काफी बढ़ा दिया है लेकिन ग्लोबल रिजर्व करेंसी बनने के लिए अभी भी युआन को लंबा सफर तय करना है.
स्विफ्ट के आंकड़ों के अनुसार, युआन 2024 के दौरान बैंक से बैंक पेमेंट के लिए इस्तेमाल होने वाली चौथी सबसे लोकप्रिय मुद्रा थी. वैश्विक लेनदेन में इसकी हिस्सेदारी औसतन 4 प्रतिशत से कुछ अधिक थी जबकि 2011 में इसकी हिस्सेदारी शून्य थी.
वैश्विक व्यापार में युआन को बढ़ावा देने के साथ-साथ चीन एक इंटर बैंक पेमेंट सिस्टम भी विकसित कर रहा है, जो स्विफ्ट के विकल्प के रूप में काम कर सकती है. चीन ने इसे क्रॉस-बॉर्डर इंटरबैंक पेमेंट सिस्टम (CIPS) नाम दिया है.
जिन ने कहा, 'इस समय पश्चिमी देश इसे खारिज कर रहे हैं लेकिन मुझे लगता है कि अमेरिकी डॉलर के विकल्प तैयार होंगे और इसका इस्तेमाल कम होगा.'