
शारदीय नवरात्र का समय है और देशभर में शक्ति पूजा के साथ-साथ रामलीलाओं का दौर भी जारी है. मंच सजे हुए हैं, लोगों का हुजूम उमड़ा हुआ है, मेला लगा हुआ है और जगमग रौशनी, सुंदर सजावट के बीच कहीं रामलला मंचों पर बाल लीला कर रहे हैं, कहीं वे धनुष भंग के लिए तैयार हैं, कहीं राक्षसों का वध हो रहा है, कहीं वन गमन तो कहीं भाई से भाई के प्रेम की अनूठी मिसाल देख रही है.
सीमाओं से परे श्रीराम
श्रीराम और रामलीला इतनी व्यापक है कि यह सीमाओं और ग्लोब से परे है और भारत में ही नहीं विश्व के तमाम देशों में संस्कृति, सभ्यता और मर्यादा की कोई सीख सीखनी होती है तो आज भी इसका पहला और सटीक उपाय-उदाहरण रामकथा ही है. यही वजह है कि विश्व के तमाम देशों में रामलीला के मंचन हो रहे हैं और मजे की बात, इनमें भाग लेने वाले कलाकार जरूरी नहीं कि भारतीय ही हों, बल्कि वहीं के स्थानीय निवासी हैं.
दुनिया के कई हिस्सों में रामलीलाओं ने बनाई पहचान
प्राचीन भारतीय महाकाव्य रामायण ने दुनिया के कई हिस्सों में अपनी अलग पहचान बनाई है. म्यांमार में इसे 'थिरी रामा', थाईलैंड में 'रमाकियेन' और इंडोनेशिया में 'काकविन रामायण' के नाम से जाना जाता है. यह भारतीय संस्कृति का विश्न में महज फैलाव भर नहीं है, बल्कि एक वैश्विक सांस्कृतिक पुनर्सृजन है. रूस से लेकर अमेरिका तक, रामायण ने विभिन्न मंचों पर नए रूप धारण किए हैं.
रूस में रामायण की प्रस्तुति: मास्को में थिएटर कलाकार बारीश्निकोव इवेंजि, जो रामलीला प्रस्तुतियों का हिस्सा रहे हैं, कहते हैं कि रामायण के पात्र उन्हें रूस के नायकों जैसे इलिया मुरोमेट्स की याद दिलाते हैं. उन्होंने कहा, "राम के रूप में मुझे हमारे रूसी नायकों की झलक मिलती है. भारतीय पौराणिक कथाओं और रूसी लोककथाओं में अच्छाई और बुराई के संघर्ष और मातृभूमि के प्रति प्रेम जैसे समान विषय हैं."
सोवियत संघ में रामायण की पहली मंचीय प्रस्तुति 1960 में मॉस्को के चिल्ड्रन थिएटर में हुई थी. रूसी अभिनेता गेन्नडी मिखाइलोविच पेचनिकोव ने इस रूसी अनुवाद का सह-निर्देशन किया और राम की भूमिका निभाई. वे इस भूमिका को 40 वर्षों तक निभाते रहे और अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की. पेचनिकोव ने 2018 में निधन से पहले राम की भूमिका निभाने के लिए शाकाहारी जीवन अपना लिया था. उनके निधन के बाद, रूस-भारत मैत्री समाज 'दिशा' ने सांस्कृतिक संबंधों को पुनर्जीवित करने के लिए 'रामायण' की प्रस्तुतियों का आयोजन किया. 'दिशा रामलीला' पिछले साल अयोध्या में भी प्रदर्शित की गई थी.
कैरेबियन में रामलीला: गयाना, त्रिनिदाद और टोबैगो और सूरीनाम में रामलीला आज भी सांस्कृतिक और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण घटना है. यह परंपरा 1838 से 1917 के बीच भारतीय अनुबंधित श्रमिकों द्वारा कैरेबियन क्षेत्र में लाई गई थी. त्रिनिदाद की चौथी पीढ़ी की भारतीय और रामायण परंपराओं की विद्वान इंद्राणी रामप्रसाद दो प्रकार की रामलीला – 'लोकधर्मी' और 'नाट्य' के बीच अंतर बताती हैं.
त्रिनिदाद और अन्य कैरेबियन देशों में प्रस्तुत की जाने वाली रामलीला मुख्य रूप से 'लीला' या लोकधर्मी शैली में होती है, जो भक्ति परंपराओं से प्रेरित एक सामुदायिक और खुले वातावरण में होने वाली कथा-कहानी पर आधारित होती है. इंद्राणी कहती हैं, "ब्लैक और मुस्लिम समुदाय के लोग भी इन रामलीलाओं का हिस्सा होते हैं. यह केवल एक नाट्य मंचन नहीं, बल्कि एक पवित्र स्थान है. दर्शक बाहर रहते हैं और टिकट की कोई व्यवस्था नहीं होती."
दक्षिण पूर्व एशिया में रामायण: इंडोनेशिया और थाईलैंड जैसे देशों में रामायण की प्रस्तुतियां सिर्फ नवरात्रि तक सीमित नहीं हैं. बाली के उबुद और उडवाटु मंदिरों में रामायण का प्रदर्शन रोज किया जाता है, जहां दुनिया भर से पर्यटक आते हैं. हिन्दू यूनिवर्सिटी ऑफ इंडोनेशिया के प्रोफेसर चोकर्दा पुत्रा, जो खुद भी एक प्रशिक्षित नर्तक भी हैं, बताते हैं कि थाईलैंड में रामायण को 'रमाकियेन' के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, और यह थाई शाही दरबार की कला परंपरा से जुड़ा है. थाई राजा चक्री वंश के नाम 'राम' से जाने जाते हैं.
श्रीलंका में रामायण: श्रीलंका में रामलीला दुर्लभ है, यहां की अधिकांश आबादी बौद्ध धर्म का पालन करती है, लेकिन सरकार-प्रायोजित समूहों ने भारत में रामायण के प्रदर्शन किए हैं. श्रीलंका में रावण को एक नायक के रूप में देखा जाता है और रामायण की कहानियाँ उनके समृद्ध शासनकाल से शुरू होती हैं. कोलंबो की काल्पी जयरत्ने, जो अक्सर 'सीता' की भूमिका निभाती हैं, कहती हैं कि वह मंडोदरी की भूमिका निभाना पसंद करती हैं क्योंकि वह शक्तिशाली और संतुलित चरित्र है.