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रूस ने अपने अहम फैसले में 'भारतीय अधिकारी' का नाम लेकर चौंकाया

यूक्रेन के डोनबास इलाके को अपने देश में शामिल करने के लिए हाल में ही वहां जनमत संग्रह करवाया है. वहां की मीडिया ने व्यापक रूप से साझा किए गए रूस के आधिकारिक संदेश में कहा कि ग्रेट ब्रिटेन, जर्मनी, सीरिया, टोगो, स्पेन, कोलंबिया, दक्षिण अफ्रीका, घाना, सर्बिया, भारत, आइसलैंड के प्रतिनिधि और लातविया के प्रतिनिधि डोनेट्स्क और मेकेवका में मतदान केंद्रों पर पर्यवेक्षक के तौर पर मौजूद थे.

aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 30 सितंबर 2022,
  • अपडेटेड 12:45 PM IST

यूक्रेन के डोनबास इलाके में हुए जनमत संग्रह में एक भारतीय अधिकारी की कथित मौजूदगी पर विवाद शुरू हो गया है.

रूसी मीडिया की तरफ से कहा गया कि डोनबास में जनमत संग्रह के दौरान पर्यवेक्षक के तौर पर भारत का एक अधिकारी भी मौजूद था.

रूस ने यूक्रेन के इस इलाके को अपने देश में शामिल करने के लिए हाल में ही वहां जनमत संग्रह करवाया है.

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वहां की मीडिया ने व्यापक रूप से साझा किए गए रूस के आधिकारिक संदेश में कहा कि ग्रेट ब्रिटेन, जर्मनी, सीरिया, टोगो, स्पेन, कोलंबिया, दक्षिण अफ्रीका, घाना, सर्बिया, भारत, आइसलैंड के प्रतिनिधि और लातविया के प्रतिनिधि डोनेत्सक और मेकेवका में मतदान केंद्रों पर पर्यवेक्षक के तौर पर मौजूद थे.

रूस और यूक्रेन की जंग शुरू होने के बाद से भारत लगातार रूस और यूक्रेन एक-दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करने का आग्रह करता रहा. ऐसे में भारत के एक अधिकारी की जनमत संग्रह में मौजूदगी ने नए विवाद को जन्म दे दिया है.

भारत का हालांकि इस जनमत संग्रह पर फिलहाल तटस्थ रुख है. रूस ने अपने बयान में पूर्णिमा आनंद नाम की एक अधिकारी का नाम लिया है और कहा है कि वह जनमत संग्रह के दौरान भारत से एक पर्यवेक्षक के रूप में वहां मौजूद थीं.

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रूस ने अपने बयान में पूर्णिमा आनंद को ब्रिक्स इंटरनेशनल फोरम का अध्यक्ष बताया है.

वहीं, भारत में छपी मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, भारत सरकार ने जनमत संग्रह में किसी भी अधिकारी को प्रतिनिधि या पर्यवेक्षक के तौर पर वहां नहीं भेजा था. एक भारतीय अधिकारी ने 'द हिंदू' को बताया कि ब्रिक्स के तहत ब्रिक्स इंटरनेशनल फोरम (ब्रिक्स-आईएफ) के रूप में कोई संगठन नहीं है. ब्रिक्स के तहत सभी संगठन अंतर-सरकारी संगठन हैं और ब्रिक्स-आईएफ ब्रिक्स पहल के तहत सूचीबद्ध नहीं है.

पूर्णिमा आनंद ने हालांकि बाद में इस मुद्दे पर भारतीय मीडिया को बताया कि ब्रिक्स इंटरनेशनल फोरम एक सिविल सोसाइटी इनिशिएटिव है जिसे 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार के बनने के बाद शुरू किया गया था और उनका फोरम 2015 ऊफा ब्रिक्स घोषणा का पालन कर रहा है  उन्होंने स्वीकार किया कि उनका संगठन फिलहाल ब्रिक्स के एक हिस्से के रूप में रजिस्टर नहीं है.

उन्होंने कहा कि हम ब्रिक्स के तहत पंजीकरण करना चाहते हैं लेकिन ब्रिक्स का कोई सचिवालय नहीं है जहां हम उस प्रक्रिया के लिए आवेदन कर सकें. मैं लंबे समय से एशिया और अफ्रीका में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नागरिक समाज का प्रतिनिधित्व कर रही हूं. उन्होंने ये भी कहा कि भारत को जनमत संग्रह में उनकी मौजूदगी पर आपत्ति नहीं करनी चाहिए क्योंकि रूस उनका एक रणनीतिक साझेदार है और भारत का पुराना दोस्त है.

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वो आगे कहती हैं,  ''यूरोप, अफ्रीका, एशिया के 90 देशों के प्रतिनिधि इस जनमत संग्रह में मौजूद थे और पर्यवेक्षकों के रूप में हमने देखा कि मतदान की प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी थी और कई क्षेत्रों को ने रूस में शामिल करने के लिए वहां के लोगों ने बड़ी संख्या में मतदान किया था.'' पूर्णिमा आनंद ने बताया कि वो इससे पहले वर्ल्ड बैंक के लिए कंसल्टेंट के तौर पर काम कर चुकी हैं.

 

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