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रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन तालिबान को लेकर जल्द ही बड़ा फैसला लेने वाले हैं. बताया जा रहा है कि रूस जल्द ही तालिबान को आतंकी संगठन की लिस्ट से हटा सकता है. हालांकि, इस पर आखिरी फैसला होना अभी बाकी है.
माना जा रहा है कि पुतिन तालिबान के साथ अपने संबंध मजबूत करना चाहते हैं और उसे प्रतिबंधित आतंकी संगठनों की लिस्ट से हटाने पर विचार करना इसी बात का संकेत है. तालिबान से रूस इसलिए संबंध मजबूत करना चाहता है, क्योंकि वो एशिया में अमेरिकी प्रभाव को चुनौती दे रहा है.
रूस पहले भी तालिबान के साथ कई बार चर्चा कर चुका है. रूस के कजान शहर में मई में एक कार्यक्रम होने जा रहा है और तालिबान को इसका न्योता दिया गया है.
दोनों के बीच संबंध सुधारने की पहल इसी महीने की शुरुआत में उस वक्त ही शुरू हो गई थी, जब रूस ने तालिबान के नेताओं से बात की थी. रूस और तालिबान के बीच ये बातचीत मॉस्को के कंसर्ट हॉल में हुए कथित आतंकी हमले के कुछ हफ्तों बाद ही हुई थी. अमेरिका और पश्चिमी देशों ने मॉस्को के उस हमले के लिए इस्लामिक स्टेट-खुरासान (ISIS-K) पर आरोप लगाया था. इस्लामिक स्टेट-खुरासान अफगानिस्तान में एक्टिव है. हालांकि, रूस ने इस हमले के लिए यूक्रेन और अमेरिका को दोषी ठहराया था.
पुतिन ने ही लगाया था तालिबान पर बैन
अफगानिस्तान में तालिबान लगभग तीन दशकों से एक्टिव है. साल 1999 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) ने तालिबान को प्रतिबंधित आतंकी संगठनों की लिस्ट में डाला था. इसके कुछ महीने बाद ही रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने भी तालिबान को आतंकी लिस्ट में डालने वाली डिक्री पर दस्तखत कर दिए थे.
रूस की सुप्रीम कोर्ट ने 2003 में तालिबान को आतंकी संगठन घोषित करते हुए कहा था कि इसने चेचन्या में चरमपंथी गुटों के साथ संबंध बनाए रखे और उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान और किर्गिस्तान में सत्ता पर कब्जा करने की कोशिश की थी.
अब क्या हुआ?
विदेश नीति को लेकर कहा जाता है कि इस मामले में न दोस्त स्थायी होता है, न दुश्मन. कुछ स्थायी होता है तो वो हैं हित. और रूस और तालिबान के मामले में भी यही है.
अगस्त 2021 में अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबान ने कब्जा कर लिया था. लेकिन अब तक किसी भी विदेशी सरकार ने तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है. तालिबान चाहता है कि उसकी सरकार को मान्यता दी जाए और उस पर लगे प्रतिबंधों को हटाया जाए, ताकि अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट सके.
अगर रूस, तालिबान को आतंकी संगठन की लिस्ट से बाहर निकालता है, तो ये एक तरह से उसे अंतर्राष्ट्रीय मान्यता देने की ओर पहला कदम होगा.
वहीं, रूस के भी इसमें अपने हित जुड़े हैं. तालिबान अमेरिका का विरोधी रहा है और अफगानिस्तान में अस्थिरता के लिए उसे जिम्मेदार मानता है. जबकि, रूस अब खुद को यहां एक सिक्योरिटी प्रोवाइडर के तौर पर पेश करना चाहता है. रूस मध्य एशिया में अमेरिका के प्रभाव को कम करना चाहता और उसके लिए उसे तालिबान के सहयोग की जरूरत है.
पास आने की एक वजह ये भी
अफगानिस्तान में आईएसआईएस-के लगातार मजबूत होता जा रहा है. और तालिबान इससे निपटना चाहता है. मॉस्को के कंसर्ट हॉल में हमले से पहले आईएसआईएस-के ने कंधार में तीन अफगानी नागरिकों की हत्या कर दी थी.
जानकारों का मानना है कि मॉस्को हमले ने भी रूस और तालिबान को नजदीक आने की एक वजह दी. दोनों अगर साथ आते हैं तो न सिर्फ आईएसआईएस-के बल्कि अमेरिका से भी मिलकर लड़ेंगे. और इन दोनों को ही रूस और तालिबान अपने खतरे के रूप में देखते हैं.
कहां जाएगी ये दोस्ती?
तालिबान के साथ रूस की बढ़ती नजदीकियां इस्लामी दुनिया के लिए भी एक संकेत मानी जा रही है. जानकारों का मानना है कि रूस खुद को इस तरह दिखाने की कोशिश कर रहा है कि वो अमेरिका की तरह किसी भी मुल्क की अंदरूनी राजनीति में दखल नहीं करेगा. आर्थिक और राजनीतिक रूप से तालिबान को भी रूस की जरूरत है. हालांकि, अभी भी अफगानिस्तान को रूस पर बहुत ज्यादा भरोसा नहीं है, क्योंकि सोवियत संघ ने अफगानिस्तान में कई ऑपरेशन चलाए हैं. लेकिन मौजूदा समय में रूस और तालिबान, दोनों को ही एक-दूसरे के सहयोग की जरूरत है.