
अमेरिका ने आशा व्यक्त की है कि यूक्रेन पर रूस के हमला करने की सूरत में भारत अमेरिका के साथ खड़ा होगा न कि रूस का समर्थन देगा. एक तरफ जहां रूस दावा कर रहा है कि उसके कुछ सैनिक यूक्रेन की सीमा से युद्ध अभ्यास खत्म कर वापस लौट रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ अमेरिका का कहना है कि रूस का ये दावा झूठा है और सैनिक कम करने के बजाय रूस ने यूक्रेन की सीमा पर 7 हजार अतिरिक्त सैनिकों की तैनाती कर दी है.
अब अमेरिका को उम्मीद है कि अगर रूस यूक्रेन पर हमला करता है तो भारत अमेरिका का समर्थन करेगा. समाचार एजेंसी पीटीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने बुधवार को कहा कि मेलबर्न में हाल ही में संपन्न क्वॉड मंत्रिस्तरीय बैठक के दौरान रूस और यूक्रेन पर चर्चा हुई जिसमें ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका के विदेश मंत्री शामिल थे.
उन्होंने कहा कि बैठक में शामिल देशों के बीच मजबूत सहमति बनी कि यूक्रेन संकट के एक राजनयिक और शांतिपूर्ण समाधान की आवश्यकता है.
नेड प्राइस ने भारत को लेकर जताई ये उम्मीद
नेड प्राइस ने एक सवाल के जवाब में कहा, 'क्वॉड के मुख्य सिद्धांतों में नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को सुदृढ़ करना शामिल है. ये नियम-आधारित व्यवस्था यूरोप की तरह ही इंडो-पैसिफिक और विश्व में कही भी समान रूप से लागू होता है. हम जानते हैं कि हमारे भारतीय सहयोगी उस नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के लिए प्रतिबद्ध हैं. इसमें एक सिद्धांत ये भी है कि सीमाओं को बल प्रयोग द्वारा फिर से नहीं खींचा जा सकता है.'
उन्होंने भारत सहित अपने पड़ोसियों के खिलाफ चीन के आक्रामक व्यवहार के एक संदर्भ में कहा, 'बड़े देश छोटे देशों को धमका नहीं सकते. किसी भी देश के पास अपनी विदेश नीति, भागीदार, गठबंधन, अपने समूह को चुनने का अधिकार है. ये सिद्धांत इंडो-पेसिफिक क्षेत्र में समान रूप से लागू होते हैं जैसा कि यूरोप में लागू है.'
भारत, अमेरिका और कई अन्य विश्व शक्तियां इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन की बढ़ती सैन्य ताकत को देखते हुए एक स्वतंत्र, खुले और संपन्न हिंद-प्रशांत क्षेत्र की आवश्यकता के बारे में बात कर रही हैं.
चीन लगभग सभी विवादित दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा करता है. ताइवान, फिलीपींस, ब्रुनेई, मलेशिया और वियतनाम भी इसके कुछ हिस्सों पर दावा करते हैं. बीजिंग ने दक्षिण चीन सागर में कृत्रिम द्वीप और सैन्य प्रतिष्ठान बना रखे हैं.
रूस से रक्षा खरीद को लेकर भारत पर प्रतिबंध लगाने के सवाल को टाल गए प्राइस
प्राइस ने कहा कि क्वॉड मीटिंग के दौरान अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने रक्षा मुद्दों पर चर्चा की. लेकिन जब उनसे CAATSA के तहत भारत पर प्रतिबंध लगाने को लेकर सवाल किया गया तो वो जवाब देने से परहेज करते दिखे.
दरअसल, अमेरिका साल 2017 में एक कानून CAATSA लेकर आया था. इस कानून के तहत अमेरिका उन देशों पर कार्रवाई करता है जो रूस के साथ रक्षा और खुफिया सौदा करते हैं. इसे लेकर जब प्राइस से सवाल किया गया तो उन्होंने कहा, 'हमने व्यापक रक्षा संबंधों पर चर्चा की लेकिन मैं इससे आगे नहीं बताना चाहता.'
ट्रंप प्रशासन के प्रतिबंधों को लेकर चेतावनी के बावजूद अक्टूबर 2018 में भारत ने पांच एस-400 मिसाइल सिस्टम को खरीदने के लिए रूस के साथ 5 अरब अमेरिकी डॉलर के रक्षा सौदे पर हस्ताक्षर किया था.
भारत ने 2019 में मिसाइल सिस्टम के लिए रूस को लगभग 80 करोड़ अमेरिकी डॉलर की पहली किश्त दी थी. S-400 को रूस की सबसे उन्नत लंबी दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल रक्षा प्रणाली के रूप में जाना जाता है.
रूस के दावे पर अमेरिका को नहीं है भरोसा
नेड प्राइस के बयान के एक दिन पहले अमेरिकी विदेश मंत्री ब्लिंकन ने कहा था कि रूस संकट के शांतिपूर्ण समाधान के लिए अमेरिका सभी रास्ते तलाश रहा है. उनके बयान का जिक्र करते हुए प्राइस ने कहा, 'लेकिन हमारे प्रयास केवल तभी प्रभावी होंगे जब रूस पीछे हटने के लिए तैयार हो.'
रूस जहां एक तरफ दावा कर रहा है कि वो अपने कुछ सैनिकों को यूक्रेन सीमा से वापस बुला रहा है वहीं, अमेरिकी प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, पश्चिमी देशों ने पाया है कि रूस ने सीमा पर 7 हजार अतिरिक्त सैनिकों की तैनाती कर दी है.
इसे लेकर प्राइस ने कहा, 'रूस के सैनिकों के वापस लौटने से जुड़े सबूत हमें नहीं मिले हैं. सच तो ये है कि हमने हाल के दिनों में इसका उल्टा ही देखा है. रूसी सेनाएं कम नहीं हुए हैं बल्कि और बढ़ी हैं और वो युद्ध के लिए आगे बढ़ रहे हैं. यह गहरी चिंता का विषय है.'
रूस बार-बार इनकार करता रहा है कि उसकी यूक्रेन पर हमला करने की योजना है. लेकिन यूक्रेन के नेटो में शामिल होने की बात को वो स्वीकार भी नहीं कर सकता.