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Russia vs Ukraine War: तेल-गैस बेचने के लिए अमेरिका ने यूक्रेन को बनाया 'बलि का बकरा'?

रूसी हमले से यूक्रेन में तबाही मची है. एक्सपर्ट बताते हैं कि अमेरिका ने यूक्रेन को 'बलि का बकरा' बना दिया. अपने स्वार्थ के लिए अमेरिका ने यूक्रेन का इस्तेमाल किया. फिर अकेला छोड़ दिया.

Joe Biden and Volodymyr Zelensky Joe Biden and Volodymyr Zelensky
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 25 फरवरी 2022,
  • अपडेटेड 9:47 PM IST
  • अमेरिका ने समय-समय पर इस हमले के लिए रूस को उकसाने का काम किया
  • प्रतिबंधों के बाद तो रूस और चीन को फायदा ही हुआ
  • अमेरिका चाहता है कि उसका तेल और गैस जर्मनी खरीदे

रूसी हमले ने यूक्रेन में तबाही मचा दी है. यूक्रेन पूरी दुनिया से मदद की गुहार लगा रहा है. लेकिन वास्तविक तौर से कोई भी देश यूक्रेन की मदद के लिए सामने नहीं आया है. यूक्रेन का साथ देने के नाम पर रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं. लेकिन रूस बिना रुके अपने मकसद में लगभग कामयाब होता दिख रहा है. ऐसे में बड़ा सवाल अमेरिका के रोल पर उठ रहे हैं. एक्सपर्ट कहते हैं कि अमेरिका ने समय-समय पर इस हमले के लिए रूस को उकसाने का काम किया. हालांकि, अमेरिका यूक्रेन के साथ खड़ा होने का भरोसा भी दिलाता रहा है. लेकिन अब ये भरोसा खोखला नजर आ रहा है. 

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अमेरिका पर आरोप क्यों लग रहे हैं
एक्सपर्ट का मनना है कि इसके पीछे अमेरिका का तेल और गैस व्यापार वजह है. पूर्व राजनयिक राजीव डोगरा ने आज तक से बातचीत में कहा कि पहले तो अमेरिका ने रूस को प्रोत्साहित किया. उनका इशारा था कि आप अटैक कर लीजिए. लेकिन कीव तक मत जाइएगा. वहीं पिछले कुछ दिनों से लगातार अमेरिका युद्ध की भविष्यवाणी कर रहा था. जो कि रूस को उकसाने के काम आया. और फिर अटैक होने के बाद अमेरिका और पश्चिमी देशों ने हाथ खड़े कर दिए.

आर्थिक प्रतिबंध का असर नहीं होगा
2014 में भी रूस पर कई आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए थे. लेकिन रूस पर इसका कोई नुकसान नहीं हुआ. राजीव डोगरा ने बताया कि प्रतिबंधों के बाद तो रूस और चीन को फायदा ही हुआ. प्रतिबंध से पहले दोनों देशों का व्यापार सिर्फ 45 से 50 बिलियन डॉलर का था. जो कि बाद में बढ़कर 145 बिलियन डॉलर तक हो गया. इसके अलावा तेल की कीमतों में भी बढ़ोतरी हुई थी. इसका भी फायदा रूस को ही हुआ.

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हालिया प्रतिबंधों की बात करें तो अमेरिका रूस को स्विफ्ट से निकालना चाहता है. लेकिन इटली और जर्मनी इसका विरोध कर रहे हैं. वो कह रहे हैं कि ऐसे कदम न उठाएं जिससे उनका भी नुकसान हो. बता दें कि SWIFT का मतलब सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन है. इसका इस्तेमाल 200 से अधिक देशों के 11,000 से अधिक वित्तीय संस्थानों करते हैं. सुरक्षित मैसेज और पेमेंट ऑर्डर भेजने के लिए. विश्वस्तर पर इसका कोई दूसरा विकल्प नहीं है. ऐसे में यह ग्लोबल फाइनेंस के लिए एक जरूरी पाइपलाइन माना जाता है. इस संगठन से बाहर किए जाने के बाद रूस के साथ व्यापार करना मुश्किल हो जाएगा.

बता दें कि अमेरिका के पास भारी मात्रा में तेल और गैस का भंडार है. पूर्व राजनयिक राजीव डोगरा बताते हैं कि अमेरिका चाहता है कि उसका तेल और गैस जर्मनी समेत दूसरे यूरोपीय देश खरीदें. लेकिन ट्रांसपोर्टेशन में आने वाले खर्चें के कारण जमर्नी को ये बहुत महंगा पड़ेगा. वहीं रूस के नॉर्ड स्ट्रीम 2 पाइपलाइन प्रोजेक्ट के पूरा हो जाने के बाद जर्मनी सहित ज्यादातर यूरोपीय देशों को काफी फायदा होगा. पाइपलाइन शुरू हो जाने के बाद ट्रांसपोर्टेशन चार्ज काफी कम हो जाएगा. जिससे कि उन्हें कम कीमत पर तेल और गैस मिलने लगेगा.

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