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'800 डिग्री सेल्सियस का तापमान', रूस पर जिस बम के इस्तेमाल का आरोप, वो Phosphorous Bomb कितना खतरनाक?

What is Phosphorous Bomb: यूक्रेन ने रूस पर व्हाइट फॉस्फोरस बमों को इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है. ये बहुत खतरनाक बम होते हैं जिसकी चपेट में आने से इंसान बुरी तरह जल जाता है और उसकी मौत भी हो सकती है. इन बमों को युद्ध में इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन रिहायशी इलाकों में इस्तेमाल करने पर प्रतिबंध है.

रूसी बमबारी में तबाह यूक्रेन की इमारत. (फाइल फोटो-AP/PTI) रूसी बमबारी में तबाह यूक्रेन की इमारत. (फाइल फोटो-AP/PTI)
Priyank Dwivedi
  • नई दिल्ली,
  • 15 मार्च 2022,
  • अपडेटेड 7:02 AM IST
  • इंसान को बुरी तरह जला देते हैं फॉस्फोरस बम
  • शरीर के अंदरूनी अंग बुरी तरह झुलस जाते हैं
  • पहले भी जंग में हो चुका है इन बमों का इस्तेमाल

What is Phosphorous Bomb: रूस और यूक्रेन में जारी जंग को तीन हफ्ते पूरे हो गए हैं. इतने दिनों से जारी जंग अब तक किसी अंजाम पर नहीं पहुंच सकी है. इसी बीच यूक्रेन का आरोप है कि रूस ने उसके खिलाफ फॉस्फोरस बम का इस्तेमाल किया है. ये बहुत ही खतरनाक बम है और इसकी चपेट में आने के बाद किसी के बचने की गुंजाइश न के बराबर होती है. 

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न्यूज एजेंसी के मुताबिक, यूक्रेन की मानवाधिकार संस्था ने दावा किया है कि रूस ने पूर्वी लुहांस्क के पोपास्ना शहर में रात में व्हाइट फॉस्फोरस बम का इस्तेमाल किया है. उन्होंने कुछ तस्वीरें भी साझा की हैं. जंग में फॉस्फोरस बम का इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन रिहायशी इलाकों में इसके इस्तेमाल पर प्रतिबंध है.

क्या है फॉस्फोरस बम?

- फॉस्फोरस एक केमिकल होता है, लेकिन इसके इस्तेमाल पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया है. हालांकि, रिहायशी इलाकों में इस बम के इस्तेमाल पर प्रतिबंध है. 

- फॉस्फोरस का कोई रंग नहीं होता है, लेकिन कई मौकों पर ये हल्का पीला दिखता है. ये एक मोम जैसा पदार्थ होता है जिससे लहसुन जैसी गंध आती है. ये ऑक्सीजन के संपर्क में आने पर जलता है.

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कितने खतरनाक हैं फॉस्फोरस बम?

- इंटरनेशनल कमेटी ऑफ द रेड क्रॉस (ICRC) के मुताबिक, व्हाइट फॉस्फोरस हथियार जलते हुए फॉस्फोरस को फैलाते हैं. इन जलते हुए फॉस्फोरस का तापमान 800 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा होता है. अगर किसी खुली जगह पर फॉस्फोरस बम गिराया जाता है, तो ये सैकड़ों किलोमीटर के दायरे तक फैल सकता है.

- आईसीआरसी के अनुसार, ये फॉस्फोरस तब तक जलते रहते हैं जब तक ये खत्म नहीं हो जाता या वहां से ऑक्सीजन खत्म नहीं हो जाती. इसके संपर्क में आने पर जलन होती है और ये जलन इतनी तेज होती है कि इससे मौत भी हो जाती है. 

- एक रिपोर्ट के मुताबिक, व्हाइट फॉस्फोरस मांस से चिपक जाता है, जिससे इसकी जलन और ज्यादा गंभीर हो जाती है. इतना ही नहीं, ये त्वचा के संपर्क में आने पर और केमिकल बना सकता है जैसे फॉस्फोरिक पेंटोक्साइड. ये केमिकल स्किन के पानी से रिएक्शन करता है और फॉस्फोरिक एसिड बनाता है जो और खतरनाक है.

- इसकी चपेट में आने में इलाज में काफी समय लग जाता है, क्योंकि ये अंदरूनी टिशू को डैमेज कर देता है जिससे ठीक होने में समय लगता है. इसके अलावा फॉस्फोरस इंसान के अंदरूनी अंगों को भी डैमेज कर देता है. ये इसलिए भी बेहद खतरनाक है क्योंकि इसमें मौत का खतरा बहुत होता है और अगर मौत नहीं भी हो तो इंसान बुरी तरह जल जाता है.

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बम के इस्तेमाल पर क्या कहता है कानून?

- 1977 में स्विट्जरलैंड के जेनेवा में कन्वेंशन हुआ, जिसमें आम नागरिकों के खतरा होने की स्थिति में इस व्हाइट फॉस्फोरस के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया गया. हालांकि, जंग में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है.

- 1997 में केमिकल वेपन (Chemical Weapons) के इस्तेमाल को लेकर एक कानून बना था, जिसमें तय हुआ कि अगर रिहायशी इलाकों में इसका इस्तेमाल होता है तो व्हाइट फॉस्फोरस को केमिकल वेपन माना जाएगा. इस कानून पर रूस ने भी हस्ताक्षर किए थे.

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कब-कब हुआ व्हाइट फॉस्फोरस का इस्तेमाल?

- विश्व युद्ध : व्हाइट फॉस्फोरस बम का इस्तेमाल पहले और दूसरे विश्व युद्ध के दौरान हुआ था. पहले विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सेना ने रॉकेट, ग्रेनेड और बमों के जरिए जापान के खिलाफ इसका इस्तेमाल किया था. दूसरे विश्व युद्ध में भी जब नाजी सेना ने ब्रिटेन पर हमला किया तो कांच की बोतल में फॉस्फोरस को भरकर इसका इस्तेमाल किया गया. ये पेट्रोल बम की तरह था, जिसे हाथ से फेंका जा सकता था.

- इराक युद्ध : अमेरिका ने इराक युद्ध के दौरान इन बमों का इस्तेमाल किया. रिपोर्ट्स के मुताबिक, अप्रैल 2004 में अमेरिकी सेना ने इराक में विद्रोहियों को टारगेट करते हुए फॉस्फोरस बम का इस्तेमाल किया था. इन बमों का इस्तेमाल इराक के फलूजा में किया गया था. इस युद्ध के दौरान कई बार अमेरिकी सेना पर फॉस्फोरस बमों के इस्तेमाल का आरोप लगा.

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- अरब-इजरायल संघर्ष : 2006 में इजरायल और लेबनान के बीच संघर्ष हुआ. इस दौरान इजरायल ने फॉस्फोरस बम का इस्तेमाल किया. इजरायल ने कहा कि उसने सैन्य ठिकानों को निशाना बनाने के लिए बम गिराए थे. हालांकि, लेबनाना का दावा था कि ये बम रिहायशी इलाकों में बरसाए गए. इसके बाद 2008-09 में फिलिस्तीन में गाजा युद्ध के दौरान भी इजरायल पर फॉस्फोरस बम के इस्तेमाल का आरोप लगा.

- अमेरिका-तालिबान : अफगानिस्तान में अमेरिका और तालिबान के बीच चले संघर्ष में भी फॉस्फोरस बमों का इस्तेमाल हुआ. अमेरिका ने तालिबानियों पर 44 से ज्यादा इलाकों पर व्हाइट फॉस्फोरस बम गिराने का आरोप लगाया. इसके बाद अमेरिकी सेना ने भी तालिबानियों के ठिकानों पर बम बरसाए. 

- नागोर्नो-काराबाख संघर्ष : अजरबैजान और अर्मेनिया के बीच नागोर्नो-काराबाख को लेकर सालों से संघर्ष है. 2016 में भी दोनों के बीच इन इलाकों को लेकर संघर्ष हुआ. इस दौरान अजरबैजान ने अर्मेनिया पर व्हाइट फॉस्फोरस बमों के इस्तेमाल करने का आरोप लगाया.

- सीरिया गृह युद्ध : सीरिया में बशर अल-असद की सरकार के खिलाफ बगावत शुरू हो गई, जो बाद में गृह युद्ध में तब्दील हो गई. इस गृह युद्ध में अमेरिका, रूस और तुर्की भी शामिल हो गए. इस गृह युद्ध के दौरान भी फॉस्फोरस बमों के इस्तेमाल का आरोप लगा.

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