
भारत जी-20 शिखर सम्मलेन की मेजबानी के लिए पूरी तरह तैयार है. सम्मेलन में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, ब्रिटेन के राष्ट्रपति ऋषि सुनक, सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान समेत दुनिया के तमाम बड़े राष्ट्राध्यक्ष शामिल हो रहे हैं. 9-10 सितंबर के बीच आयोजित हो रहे शिखर सम्मेलन को लेकर उम्मीद थी कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी इसमें हिस्सा लेंगे लेकिन अब चीन ने कह दिया है कि जिनपिंग बैठक में शामिल होने के लिए भारत नहीं आ रहे हैं.
सोमवार को चीनी विदेश मंत्रालय ने जानकारी दी कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग की जगह चीन के प्रीमियर ली कियांग जी-20 में हिस्सा लेने के लिए भारत आएंगे.
रूस की तरफ से पहले ही स्पष्ट हो चुका है कि राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने नहीं आ रहे हैं. राष्ट्रपति पुतिन के प्रेस सचिव दिमित्री पेस्कोव ने कहा कि पुतिन के लिए अभी यूक्रेन में 'विशेष सैन्य अभियान' ही सबसे महत्वपूर्ण है.
दुनिया के दो प्रभावशाली नेताओं का जी-20 शिखर सम्मेलन में हिस्सा न लेना क्या भारत के लिए झटका है? विश्लेषकों का कहना है कि इससे विश्व शक्ति बनने के भारत के प्रयासों को धक्का लग सकता है. जी-20 विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों का संगठन है जिसमें रूस, अमेरिका, चीन, भारत, ब्रिटेन आदि देशों समेत यूरोपीय यूनियन के देश शामिल हैं.
चीनी राष्ट्रपति के जी-20 बैठक में हिस्सा न लेने के क्या हैं मायने?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग हाल ही में दक्षिण अफ्रीका में आयोजित BRICS शिखर सम्मेलन के दौरान मिले थे जहां दोनों नेताओं के बीच सीमा विवाद के मुद्दे पर बात हुई. विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने मुलाकात को लेकर कहा कि पीएम मोदी ने चीनी राष्ट्रपति से मुलाकात के दौरान लद्दाख में भारत-चीन के सीमाई क्षेत्र में एलएसी पर विवादित मामलों पर अपनी चिंता से अवगत कराया.
इस मुलाकात के बाद दोनों देशों ने एलएसी पर अपने सैनिकों को पीछे हटाने और सीमा पर तनाव कम करने की कोशिशें तेज करने का फैसला किया. लेकिन हाल ही में चीन ने अपना 'स्टैंडर्ड मैप' जारी किया जिसमें भारत के अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन को अपना हिस्सा दिखाया. भारत ने चीन से राजनयिक स्तर पर विरोध जताया और विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि बेतुके दावे करने से किसी दूसरे का क्षेत्र अपना नहीं हो जाता.
इसके बाद चीन ने पलटवार करते हुए कहा कि संबंधित पक्ष इस मुद्दे की जरूरत से ज्यादा व्याख्या करने से बचे.
स्टैंडर्ड मैप विवाद के बाद दोनों देशों के रिश्तों में तनाव बढ़ गया है और इसी बीच खबर आई है कि चीनी राष्ट्रपति जी-20 शिखर सम्मेलन में हिस्सा नहीं लेंगे. 2013 में सत्ता में आने के बाद से यह पहली बार है जब चीनी राष्ट्रपति जी-20 शिखर सम्मलेन में हिस्सा नहीं लेंगे.
विश्लेषकों का कहना है कि भारत-चीन तनाव को देखते हुए चीन को यह लगता है कि जी-20 शिखर सम्मेलन में शी जिनपिंग का स्वागत गर्मजोशी से नहीं किया जाएगा. कुछ विश्लेषक यह भी मानते हैं कि बैठक में जिनपिंग का शामिल न होना पश्चिमी नेतृत्व वाले संगठनों से दूर होने का चीन का एक तरीका है. साथ ही चीन इसके जरिए भारत को भी कहीं न कहीं नीचा दिखाने की कोशिश कर रहे हैं जो इस बार पूरी तैयारी के साथ शिखर सम्मेलन की मेजबानी कर रहा है.
विश्लेषकों का यह भी कहना है कि चीन जानता है कि जी-20 को सफल बनाने के लिए विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था (चीन) का बैठक में शामिल होना जरूरी है. अगर शी बैठक में शामिल होते हैं तो भारत की मेजबानी में जी-20 शिखर सम्मेलन को सफल माना जाएगा. भारत इसे अपनी बड़ी सफलता के तौर पर दिखाएगा जो कि चीन बिल्कुल नहीं चाहता. इसलिए शी जिनपिंग ने भारत न आने का फैसला किया है.
रूसी राष्ट्रपति पुतिन भी नहीं होंगे बैठक में शामिल
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भी शामिल नहीं हुए थे. जब वो शिखर सम्मेलन के लिए दक्षिण अफ्रीका नहीं गए तब यह निष्कर्ष निकाला गया कि उन्होंने दक्षिण अफ्रीका को धर्मसंकट की स्थिति से बचाने के लिए ऐसा किया.
दक्षिण अफ्रीका अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय (ICC) का सदस्य है और पुतिन के खिलाफ आईसीसी ने गिरफ्तारी वारंट जारी किया है. ये वारंट यूक्रेन के बच्चों को अवैध रूप से रूस लाने के आरोप में जारी किया गया है. पुतिन अगर ब्रिक्स बैठक के लिए जाते तो दक्षिण अफ्रीका को मजबूरन पुतिन की गिरफ्तारी में सहयोग करना पड़ता.
लेकिन भारत के मामले में ऐसा नहीं है. भारत आईसीसी का सदस्य नहीं है तो पुतिन को भारत में गिरफ्तारी का कोई खतरा नहीं है. हालांकि, फिर भी पुतिन जी-20 बैठक के लिए भारत नहीं आ रहे. इसे लेकर विश्लेषकों का कहना है कि पुतिन की हालत ऐसी है कि वो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग पड़ गए हैं.
जी-20 की पिछली बैठकों में भी यूक्रेन का मुद्दा उठ चुका है और पुतिन जानते हैं कि शिखर सम्मेलन में भी यूक्रेन मुद्दा उठेगा और उनकी आलोचना होगी. रूस को लगता है कि अमेरिका और यूरोपीय देशों के नेताओं की मौजूदगी में उनकी बात नहीं सुनी जाएगी और वो इसलिए भारत नहीं आना चाहते हैं.
भारत पर है बड़ी जिम्मेदारी
जी-20 की पिछली अहम बैठकों में भारत को सदस्य देशों के बीच आम सहमति बनाने को लेकर काफी मशक्कत करनी पड़ी है. भारत के यह कहने के बावजूद कि जी-20 संघर्ष सुलझाने का मंच नहीं बल्कि आर्थिक मंच है, जी-20 की पिछली बैठकों में रूस-यूक्रेन युद्ध का मुद्दा उठता रहा है और सदस्य देशों के बीच इसे लेकर काफी मतभेद देखने को मिला है.
इसी मतभेद के कारण भारत जी-20 वित्त मंत्रियों और विदेश मंत्रियों की बैठकों के बाद कोई संयुक्त बयान जारी नहीं करा पाया था. बैठकों में संयुक्त बयान के आखिरी पैरा में यूक्रेन में युद्ध के लिए रूस की आलोचना की गई थी जिस पर चीन और रूस ने सख्त आपत्ति जताई थी जिस कारण संयुक्त बयान जारी नहीं हो पाया था.
भारत के सामने अब बड़ी चुनौती सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों के बीच आम सहमति बनाने और एक संयुक्त बयान जारी कर जी-20 शिखर सम्मेलन को सफल बनाने की है.
भारत ने जी-20 बैठक में सदस्य देशों के अलावा 9 ऑब्जर्वर देशों, स्पेन, मॉरिशस, मिस्र. बांग्लादेश, नीदरलैंड्स, सिंगापुर, ओमान और यूएई को बुलाया है लेकिन यूक्रेन को आमंत्रित नहीं किया जिसे लेकर कनाडा सहित कई सदस्य देश नाराज हैं. कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कहा है कि वो इस बात से नाखुश हैं कि यूक्रेन को जी-20 शिखर सम्मेलन में नहीं बुलाया जा रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि यूक्रेन की अनुपस्थिति में वो यह सुनिश्चित करेंगे कि यूक्रेन पर बात हो.
वहीं, भारत रूस-यूक्रेन युद्ध में अपने तटस्थ रुख के कारण नहीं चाहता कि यूक्रेन मुद्दा उठाया जाए. लेकिन बहुत संभावना है कि जी-20 शिखर सम्मेलन में यूक्रेन मुद्दे पर सदस्य देशों के बीच तनातनी की स्थिति बने. ऐसे में भारत के ऊपर यह जिम्मेदारी रहेगी कि वो शिखर सम्मेलन के माहौल को तनावमुक्त बनाए रखे.