
तेल निर्यातक देशों के संगठन ओपेक प्लस के तेल उत्पादन में कटौती के फैसले के बाद से ही अमेरिका की नाराजगी साफ दिख रही है. अमेरिका चाहता था कि ओपेक प्लस में दबदबा रखने वाला सऊदी अरब तेल उत्पादन बढ़ाए ताकि तेल की कीमतों में बढ़ोतरी ना हों.
ओपेक प्लस के तेल उत्पादन घटाने के फैसले के बाद अमेरिका के कई सांसदों ने सऊदी अरब को हथियार सप्लाई रोकने और उसके साथ दोस्ती पर फिर से विचार करने की बात कही है. अमेरिका की तीखी प्रतिक्रिया के बाद अब सऊदी अरब ने सफाई पेश की है. सऊदी अरब ने ओपेक प्लस के तेल कटौती के फैसले को पूरी तरह से आर्थिक बताया है.
सऊदी अरब के विदेश विभाग ने इस बात को खारिज कर दिया कि सऊदी अरब अंतरराष्ट्रीय विवादों में पक्षपात कर रहा है और ओपेक प्लस का यह फैसला राजनीतिक है. सऊदी ने कहा कि यह सच नहीं है, क्योंकि ओपेक प्लस के इस फैसले की वजह पूरी तरह से आर्थिक थी.
सऊदी अरब ने कहा कि ओपेक प्लस का यह फैसला पूरी तरह आर्थिक विचारों पर था, जिसका लक्ष्य तेल बाजार में सप्लाई और डिमांड का बैलेंस बनाना और अस्थिरता को कम करना था. ये फैसला अमेरिका के खिलाफ नहीं लिया गया था.
सऊदी ने आगे कहा कि अगर अमेरिका की सलाह मानते हुए तेल उत्पादन के इस फैसले को एक महीने के लिए स्थगित कर दिया जाता तो इसके आर्थिक नतीजे बुरे होते.
बयान में ये भी कहा गया कि ओपेक प्लस संगठन में शामिल सभी सदस्य देशों की सहमति के बाद ही कोई फैसला किया जाता है. ओपेक प्लस में रूस समेत 24 देश सदस्य हैं.
रूस का साथ देने के आरोप पर भी जवाब
वहीं, रूस और यूक्रेन युद्ध में स्थिति को लेकर विदेश विभाग ने कहा कि सऊदी अरब के खिलाफ तोड़-मरोड़कर तथ्य पेश करना दुर्भाग्यपूर्ण है और इससे सऊदी का पक्ष नहीं बदल जाएगा.
सऊदी अरब ने आगे कहा कि यूक्रेन युद्ध में हमने शुरू से ही सिद्धांतवादी स्थिति रखी है. सऊदी अरब ने कहा कि किसी भी देश की संप्रभुता के उल्लंघन को वह पूरी तरह खारिज करता है.
वहीं सऊदी अरब ने कहा कि हम अमेरिका से अपने संबंधों को रणनीतिक रूप से देखते हैं, जो दोनों देशों के आम हितों के लिए काम करते हैं. सऊदी ने कहा कि पिछले आठ दशकों से जिन मजबूत स्तंभों पर सऊदी और अमेरिका के संबंध टिके हैं, उनकी अहमियत सऊदी अरब समझता है.
बाइडन ने दी नतीजा भुगतने की चेतावनी
दरअसल, अमेरिका नहीं चाहता था कि मौजूदा समय में तेल उत्पादन की कटौती से जुड़ा कोई फैसला लिया जाए. इसी वजह से अमेरिका लगातार सऊदी अरब से बात भी कर रहा था. इसी साल तेल उत्पादन को बढ़ाने को लेकर चर्चा के लिए खुद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन भी सऊदी दौरे पर पहुंचे थे.
सबसे खास बात है कि सऊदी में उनकी मेजबानी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने की थी, जिन पर सऊदी के पत्रकार जमाल खशोजी की हत्या का आरोप है. जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति कई मौकों पर सऊदी क्राउन प्रिंस को पत्रकार खशोजी की हत्या के लिए जिम्मेदार ठहरा चुके थे.
ऐसे में अचानक ओपेक प्लस के तेल उत्पादन में भारी कटौती के फैसले से अमेरिका काफी भड़क गया. इसी सप्ताह की शुरुआत में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने सऊदी अरब के लिए चेतावनी भरे लहजे में कहा कि ओपेक प्लस के इस फैसले के नतीजे भुगतने होंगे.
मालूम हो कि बीते पांच अक्टूबर को ओपेक प्लस ( पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन ) ने ऐलान किया था कि वह हर रोज तेल उत्पादन में 20 लाख बैरल की कटौती करेंगे. अमेरिका काफी कोशिश भी कर रहा था कि ऐसा न हो लेकिन ओपेक प्लस ने इस फैसले के साथ अमेरिका की चाहत पर भी पानी फेर दिया.
रूस भी है ओपेक प्लस का सदस्य
अब खास बात है कि यूक्रेन से जंग लड़ा रहा रूस भी इसी ओपेक प्लस संगठन का सदस्य है. ओपेक प्लस में कुल 24 सदस्य हैं, जिसमें 13 ओपेक देश शामिल हैं, जबकि 11 अन्य गैर-ओपेक देश शामिल हैं.
ओपेक प्लस ने इस फैसले को ऐसे समय पर लिया है, जब दुनिया में कच्चे तेल की कीमतें वैसे ही आसमान छू रही हैं. ऐसे में तेल के उत्पादन में इतनी भारी तादाद में कटौती तेल की कीमतों में और ज्यादा इजाफा कर सकती हैं, जिसका असर भारत जैसे देशों पर भी काफी पड़ सकता है.
सऊदी अरब, ओपेक प्लस संगठन का मुख्य सदस्य है. ऐसे में ओपेक प्लस के कटौती के फैसले के बाद ही यह कहा जा रहा था कि इससे अमेरिका और सऊदी अरब के रिश्तों के बीच खटास आ सकती है.
सऊदी अरब के खिलाफ अमेरिकी सांसद ने दिया तीखा बयान
हाल ही में अमेरिकी सांसद क्रिस मर्फी ने कहा था कि सऊदी अरब से अमेरिका को इतना सहयोग नहीं मिला, जितना चाहिए था. क्रिस मर्फी ने कहा कि अमेरिका सऊदी के साथ संबंधों पर विचार करेगा. मर्फी ने कहा था कि डेमोक्रेट पार्टी के अन्य मेंबर भी चाहते हैं कि गल्फ देशों के साथ संबंधों पर एक बार फिर विचार किया जाए.
वहीं क्रिस मर्फी ने कहा था कि सऊदी अरब का मकसद रूस की सहायता करना है. सऊदी अरब तेल की कीमतों में बढ़ोतरी से रूस की मदद कर रहा है. सऊदी का इस तरह से समर्थन हमारे यूक्रेन गठबंधन को कमजोर कर रहा है, सऊदी को इसका अंजाम भुगतना होगा.