
सऊदी अरब के प्रधानमंत्री और क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान जी-20 शिखर सम्मलेन के बाद सोमवार को एक दिवसीय राजकीय दौरे पर भारत में थे. सोमवार को ही भारत और सऊदी अरब के रिश्तों में एक बड़ी प्रगति देखने को मिली जिसके तहत दोनों देश अपने रिश्ते को तेल से आगे बढ़ाते हुए ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग बढ़ाएंगे. दोनों देश अपने इलेक्ट्रिक ग्रिड, नवीकरणीय ऊर्जा और ग्रीन हाइड्रोजन ग्रिड को जोड़ने के लिए एक समुद्री केबल बिछाने पर सहमत हुए हैं.
सोमवार को भारत के नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह और सऊदी के नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री सलमान अल-सऊद के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुआ. इससे भारत को बड़ा फायदा हो सकता है. सऊदी अरब भारत का तीसरा सबसे बड़ा तेल और गैस आपूर्तिकर्ता देश है. भारत तेल और गैस (LPG) के लिए सऊदी अरब पर निर्भर है. लेकिन इस समझौते के बाद भारत की छवि एक ऊर्जा निर्यातक देश की बन सकती है जो हरित ऊर्जा और हाइड्रोजन ऊर्जा का निर्यात करेगा.
समझौते को लेकर सरकार ने एक बयान में कहा, 'इस समझौते ज्ञापन से भारत के उन प्रयासों को बल मिलेगा जिसके तहत वह जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए वैश्विक ऊर्जा सिस्टम में बदलाव लाने की कोशिश कर रहा है.'
पीएम मोदी का 'वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड' विजन
दोनों देशों के बीच समुद्री केबल के जरिए ऊर्जा का आदान-प्रदान का यह महत्वाकांक्षी फैसला तकनीकी चुनौतियों से भरा होने वाला है. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पूरे विश्व में अभी 485 समुद्री केबल काम कर रहे हैं. सबसे लंबा समुद्री केबल ब्रिटेन और डेनमार्क के बीच है जिसकी लंबाई 764 किलोमीटर है.
अगर भारत और सऊदी अरब के बीच समुद्री केबल स्थापित हो जाता है तो यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड' विजन के तहत स्थापित किया जाने वाला पहला समुद्री केबल होगा. मोदी सरकार के इस विजन का मकसद विश्वभर में हरित ऊर्जा को बढ़ावा देना है.
भारत की रणनीतिक तेल स्टोरेज क्षमता बढ़ाने में सऊदी कर सकता है निवेश
दोनों देशों के बीच के समझौते ज्ञापन में पेट्रोलियम रिजर्व के क्षेत्र में सहयोग पर की भी बात कही गई है. इससे भारत के रणनीतिक तेल और गैस स्टोरेज क्षमता को बढ़ाने में सऊदी अरब के निवेश का रास्ता खुल सकता है. रणनीतिक तेल के स्टोरेज की भारत की क्षमता अभी बेहद कम है. भारत केवल 50 लाख टन तेल ही स्टोर कर सकता है.
साल 2008 में भी भारत ने समुद्री केबल को लेकर एक कोशिश की थी. भारत ने मन्नार की खाड़ी के जरिए श्रीलंका तक 500 मेगावाट क्षमता का समुद्री केबल बिछाने का प्रस्ताव दिया था. भारत की सरकारी ऊर्जा कंपनी पावर ग्रिड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया ने तब इसकी कीमत 2,292 करोड़ आंकी थी और कहा था कि इसे बिछाने में 42 महीनों का वक्त लगेगा. लेकिन श्रीलंका ने इसमें अपनी दिलचस्पी नहीं दिखाई जिसके बाद बात आगे नहीं बढ़ सकी थी.
हरित ऊर्जा हब बनने का भारत का सपना
भारत वर्तमान में बांग्लादेश और नेपाल को ऊर्जा निर्यात करता है, भूटान से यह ऊर्जा का आयात करता है. भारत अपने पावर ग्रिड को म्यांमार और बाकी देशों से भी जोड़ना चाहता है ताकि वो उन देशों को भी नवीकरणीय ऊर्जा का निर्यात कर पाए.
सऊदी के साथ इस समझौते से भारत की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता तो बढ़ेगी ही, साथ ही भारत के पास यह अवसर है कि वो सऊदी अरब को ग्रीन हाइड्रोजन ऊर्जा का निर्यात कर सके. इसके बाद भारत यूएई के जरिए प्रस्तावित आर्थिक गलियारे से अपने ग्रीन हाइड्रोजन ऊर्जा को यूरोपीय देशों में भी निर्यात कर सकता है.
भारत ने साल 2030 तक अपने ग्रीन हाइड्रोजन क्षमता को 50 लाख टन तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है. इस लक्ष्य को पूरा कर भारत हरित ऊर्जा, जिसे भविष्य की ऊर्जा कहा जाता है, का वैश्विक निर्यातक हब बनना चाहता है.