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'भारत के मुसलमानों को...', भारत आए सऊदी के इस्लामिक नेता ने अजित डोभाल के सामने क्या कहा?

भारत पहुंचे सऊदी अरब के इस्लामिक नेता और मुस्लिम वर्ल्ड लीग के महासचिव अल-ईसा ने भारत की खूब तारीफ की है. उन्होंने कहा है कि भारत दुनिया में सह-अस्तित्व का सबसे बेहतरीन उदाहरण है. अल-ईसा ने भारत के मुस्लिमों और इस्लाम पर भी अपनी राय जाहिर की है.

मुस्लिम वर्ल्ड लीग के महासचिव अल-ईसा (Photo- WOJTEK RADWANSKI/AFP VIA GETTY IMAGES) मुस्लिम वर्ल्ड लीग के महासचिव अल-ईसा (Photo- WOJTEK RADWANSKI/AFP VIA GETTY IMAGES)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 11 जुलाई 2023,
  • अपडेटेड 8:56 PM IST

छह दिवसीय भारत दौरे पर आए सऊदी अरब के पूर्व न्याय मंत्री और मक्का स्थित मुसलमानों के प्रभावशाली संगठन मुस्लिम वर्ल्ड लीग (MWL) के महासचिव मोहम्मद बिन अब्दुलकरीम अल-ईसा ने मंगलवार को कहा है कि भारत के मुसलमानों को भारतीय होने पर गर्व है. उन्होंने कहा है कि भारत दुनिया में सह-अस्तित्व का सबसे बेहतरीन उदाहरण है.

इस्लामिक कल्चरल सेंटर के इवेंट में अल-ईसा के साथ भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल भी मौजूद थे.

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इस्लामिक कल्चरल सेंटर में एक इवेंट के दौरान बोलते हुए अल-ईसा ने कहा, 'हम जानते हैं कि मुस्लिम भारत की विविधता का एक अहम हिस्सा हैं. भारत के मुस्लिमों को अपने भारतीय होने पर गर्व है. धर्म सहयोग का एक जरिया हो सकता है. हम समझ विकसित करने के लिए हर किसी से बात करने को तैयार हैं. भारत ने मानवता के लिए बहुत कुछ किया है. भारत सह-अस्तित्व का दुनिया में सबसे बेहतरीन उदाहरण है.'

'भारत हिंदू बहुल राष्ट्र लेकिन संविधान धर्मनिरपेक्ष'

समाचार एजेंसी एएनआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मुस्लिम वर्ल्ड लीग के महासचिव ने भारत के गौरवशाली इतिहास की तारीफ करते हुए कहा कि संस्कृतियों के बीच संवाद स्थापित करना समय की मांग है.

उन्होंने कहा, 'हम भारत के इतिहास और विविधता की तारीफ करते हैं. संस्कृतियों के बीच संवाद स्थापित करना समय की मांग है. विविधता संस्कृतियों के बीच बेहतर रिश्ते कायम करती है. MWL दुनिया की विभिन्न संस्कृतियों से जुड़ा हुआ है. विविधता में एकता एक बेहतर रास्ता है. हिंदू समुदाय में मेरे बहुत से दोस्त हैं.'

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उन्होंने भारत के संविधान की तारीफ करते हुए आगे कहा, 'सहिष्णुता हमारे जीवन का अंग होना चाहिए. भारत एक हिंदू बहुल राष्ट्र है बावजूद इसके इसका संविधान धर्मनिरपेक्ष है. हम धर्मों के बीच में समझ को मजबूत करना चाहते हैं. विश्व में नकारात्मक विचार फैलाए जा रहे हैं और हमें एकसमान मूल्यों को मजबूत करने के लिए काम करना चाहिए.'

'इस्लाम दूसरों को माफ करना भी सिखाता है'

अल-ईसा ने आगे कहा कि मुस्लिम वर्ल्ड लीग सबके साथ बातचीत के लिए तैयार रहता है. इस्लाम में बस सहिष्णुता की बातें नहीं बताई गई हैं बल्कि इस्लाम दूसरों को माफ करना भी सिखाता है.

उन्होंने कहा, 'भारत पूरी दुनिया के लिए एक प्रेरणा है क्योंकि यह हर किसी से बातचीत के लिए तैयार रहता है. भारत के साथ हमारी साझेदारी पूरी दुनिया के लिए एक संदेश है.'

भारत क्यों आए हैं अल-ईसा?

डॉ. अल-इस्सा की छह दिवसीय भारत यात्रा जो सोमवार को शुरू हुई. उनकी इस यात्रा का उद्देश्य धर्मों के बीच सद्भाव और भारत की राजनीतिक और धार्मिक नेताओं को इस्लामी दुनिया के अग्रणी संस्था से जोड़ना है. उनके इस दौरे को Peace Diplomacy (शांति के लिए कूटनीति) के तौर पर भी देखा जा रहा है क्योंकि मुस्लिम वर्ल्ड लीग को सऊदी अरब फंडिंग करता है. मुस्लिम वर्ल्ड लीग मुस्लिम दुनिया का सबसे बड़ा एनजीओ है जिसकी मुस्लिमों के बीच गहरी पकड़ है. 

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ईसा उदार इस्लाम के समर्थक माने जाते हैं. सऊदी अरब का न्याय मंत्री रहते हुए उन्होंने महिला अधिकारों के लिए कई काम किए. उन्होंने पारिवारिक मामलों, मानवीय मामलों पर भी काम किया. पद पर रहते हुए उन्होंने विभिन्न समुदायों, धर्मों और देशों के बीच के संबंधों को मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए.

अल-ईसा अपनी इस यात्रा के दौरान विदेश मंत्री एस जयशंकर और अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री स्मृति ईरानी से मिलेंगे. ऐसी रिपोर्ट्स हैं कि वो राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से भी मिल सकते हैं.

UCC को लागू करने की कोशिशों के बीच ईसा का भारत आना

मुस्लिम वर्ल्ड लीग का दुनियाभर के मुसलमानों के बीच बहुत प्रभाव है और अल-ईसा भी विश्व के मुसलमानों के बीच काफी लोकप्रिय हैं. यूसीसी पर बहस के बीच उदार इस्लाम के समर्थक ईसा का भारत आना और बड़े नेताओं से मिलना ऐसे में बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है.

एक समान नागरिक संहिता (UCC) के तहत नरेंद्र मोदी सरकार पूरे देश के लिए एक कानून लाना चाहती हैं जो सभी धार्मिक और आदिवासी समुदायों पर उनके व्यक्तिगत मामलों जैसे संपत्ति, विवाह, विरासत, गोद लेने आदि पर लागू होगी.

इसके आलोचकों का कहना है कि यूसीसी भारत जैसे विविधतापूर्ण देश की विविधता के लिए एक चुनौती है क्योंकि यह सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून की बात करता है. उनका कहना है कि सरकार इसके जरिए व्यक्तिगत धार्मिक कानूनों को बदलना चाहती है. आलोचकों का तर्क है कि इस तरह का कदम देश के सांस्कृतिक ताने-बाने को कमजोर कर सकता है और नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता पर चोट पहुंचा सकता है.

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