
भारत की अध्यक्षता में मंगलवार को शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के नेताओं का शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया. सम्मेलन के अंत में जारी घोषणापत्र (New Delhi declaration) में भारत ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI Project) का समर्थन करने वाले पैराग्राफ पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया. हालांकि, चीन के इस प्रोजेक्ट को लेकर रूस और पाकिस्तान समेत कई देशों ने अपना समर्थन दिया है.
साल 2022 में समरकंद घोषणा में भी चीनी प्रोजेक्ट का समर्थन करने वाला एक पैराग्राफ शामिल था और उस दौरान भी भारत ने उस पैराग्राफ पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था.
2023 के एससीओ घोषणापत्र में बीआरआई को लेकर एक पैराग्राफ में लिखा है, 'चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) को कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान अपने समर्थन की पुष्टि करते हैं. ये देश परियोजना को संयुक्त रूप से लागू करने के लिए चल रहे काम का समर्थन करते हैं, जिसमें यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन (बेलारूस, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान का आर्थिक संघ) और बीआरआई को जोड़ने के प्रयास भी शामिल हैं.'
भारत हमेशा से चीन के BRI प्रोजेक्ट का विरोध करता रहा है. इस प्रोजेक्ट के जरिए चीन मध्य-पूर्व, अफ्रीका और यूरोप से जमीन और समुद्र के जरिए संपर्क बढ़ाने के लिए कई प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहा है. इसे आज के समय का सिल्क रोड भी कहा जाता है.
चीन इसी प्रोजेक्ट के तहत पाकिस्तान में चाइना-पाकिस्तान इकॉनोमिक कॉरिडोर पर काम कर रहा है जिसे लेकर भारत का कहना है कि यह भारत की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का उल्लंघन करता है.
2022 के समरकंद घोषणा में BRI प्रोजेक्ट को लेकर क्या कहा गया था?
2022 की एससीओ समरकंद घोषणा में भी यही बात कही गई थी जो इस बार के घोषणापत्र में कही गई है. उस दौरान कहा गया था, 'कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (बीआरआई) के लिए अपने समर्थन की पुष्टि करते हैं और इसे संयुक्त रूप से लागू करने के लिए चल रहे काम पर नजर बनाए हैं जिसमें यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन और बीआरआई को जोड़ने का प्रयास शामिल है.'
आतंकवाद पर दिल्ली घोषणापत्र में क्या कहा गया?
आतंकवाद को लेकर दिल्ली घोषणापत्र में उन्हीं शब्दों का इस्तेमाल किया गया है जो समरकंद घोषणापत्र में किया गया था. बस एक शब्द 'अतिराष्ट्रवाद' की जगह 'उग्र राष्ट्रवाद' का इस्तेमाल किया गया है.
दिल्ली घोषणापत्र में कहा गया है, 'सदस्य देश आतंकवादी, अलगाववादी और चरमपंथी समूहों की गतिविधियों का मुकाबला करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय की तरफ से संयुक्त प्रयासों किए जाने को महत्वपूर्ण मानते हैं. साथ ही धार्मिक असहिष्णुता, आक्रामक राष्ट्रवाद, जातीय और नस्लीय भेदभाव, दूसरे देशों के लोगों के प्रति घृणा, फासीवाद और उग्र राष्ट्रवाद के प्रसार को रोकने पर विशेष ध्यान देने की मांग करते हैं.'
दिल्ली घोषणापत्र में आतंकवाद को संबोधित एक पैराग्राफ में कहा गया, 'आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद से लड़ने के लिए अपनी मजबूत प्रतिबद्धता की पुष्टि करते हुए, सदस्य देश आतंकवाद को रोकने के लिए उपाय करना जारी रखने के लिए दृढ़ हैं. आतंकवादियों की फंडिंग रोकना, उनकी भर्ती पर लगाम लगाना और आतंकवादियों की सीमा पार आवाजाही को रोकना, उग्रवाद और युवाओं को कट्टरपंथी बनने से रोकना, आतंकवादी विचारधारा के प्रसार को रोकना साथ ही "स्लीपर सेल" और आतंकवादियों के सुरक्षित पनाहगाह के रूप में उपयोग किए जाने वाली जगहों को खत्म करने के लिए भी अपनी प्रतिबद्धता जताते हैं.'
पिछली बार की तरह, इस बार भी इस घोषणपत्र में कहा गया, 'अपने देश के कानूनों और सर्वसम्मति के आधार पर सदस्य देश एससीओ देशों में प्रतिबंधित आतंकवादी, अलगाववादी और चरमपंथी संगठनों की एक सूची बनाने के लिए सामान्य सिद्धांत और दृष्टिकोण बनाने की कोशिश करेंगे.'
घोषणापत्र में यूक्रेन के लिए 'संघर्ष' शब्द का उल्लेख नहीं
इस बार के घोषणापत्र में भी यूक्रेन के लिए 'संघर्ष' शब्द का कोई जिक्र नहीं है जबकि समरकंद घोषणापत्र में इसका जिक्र था. नई दिल्ली घोषणापत्र में असहमति शब्द का इस्तेमाल किया गया है जबकि समरकंद घोषणापत्र में संघर्ष शब्द का इस्तेमाल किया गया था.
नई दिल्ली घोषणापत्र में कहा गया, 'सदस्य देश लोगों के राजनीतिक और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए स्वतंत्र और लोकतांत्रिक पसंद के अधिकार के सम्मान की वकालत करते हैं. सभी सदस्य देश इस पर जोर देते हैं कि संप्रभुता, स्वतंत्रता, देशों की क्षेत्रीय अखंडता, समानता, पारस्परिक लाभ, आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना और बल का उपयोग न करना या बल के उपयोग की धमकी न देना अंतरराष्ट्रीय संबंधों में सतत विकास का आधार है. सदस्य देश बातचीत और परामर्श के माध्यम से देशों के बीच असहमति और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान के लिए अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करते हैं.'
घोषणापत्र में सदस्य देश इस बात पर भी सहमत हुए कि आतंकवाद और चरमपंथ का मुकाबला करने के नाम पर देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं किया जा सकता.
एससीओ भाषण में पीएम मोदी ने किन बातों पर किया फोकस
पीएम मोदी ने अपने भाषण में खाद्य संकट, आंतकवाद और ऊर्जा संकट पर फोकस रखा. आतंकवाद की बात करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि आंतकवाद वैश्विक शांति के लिए एक खतरा बना हुआ है. आंतकवाद चाहे किसी भी रूप में हो, इसके खिलाफ देशों को मिलकर लड़ना होगा.
पाकिस्तान पर निशाना साधते हुए पीएम मोदी ने कहा, 'कुछ देश सीमा पार आतंकवाद को अपनी एक नीति मानते हैं, आतंकवादियों को पनाह देते हैं. एससीओ को ऐसे देशों की आलोचना से हिचकना नहीं चाहिए. ऐसे गंभीर विषय पर दोहरे मापदंड के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए.' पीएम मोदी ने ईरान के एससीओ का नया सदस्य देश बनने पर राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी को बधाई भी दी.
चीन के नेतृत्व वाला संगठन एससीओ दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्रीय संगठन है. संगठन का उद्देश्य नस्लीट और धार्मिक चरमपंथ का मुकाबला करने और व्यापार-निवेश को बढ़ावा देना है. इस अमेरिका के प्रभाव वाले संगठन नेटो का जवाब भी माना जाता है.