
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सत्ता संभालने के बाद से लगातार बड़े फैसले ले रहे हैं. कनाडा, पनामा, मेक्सिको और ग्रीनलैंड जैसे देशों को वह अमेरिका में शामिल करने की इच्छा भी जता चुके हैं. पिछले दिनों पद संभालने के बाद उन्होंने डेनमार्क से ग्रीनलैंड पर कंट्रोल छोड़ने को कहा था और इस छोटे से द्वीप देश को अमेरिका के लिए रणनीतिक तौर पर अहम बताया था. हालांकि अब ट्रंप के इरादों को झटका लगा है क्योंकि बुधवार को ग्रीनलैंड में हुए एक 'जनमत संग्रह' में वहां के 85 फीसदी लोगों ने अमेरिका के साथ जाने से इनकार कर दिया है.
अमेरिका के साथ जाने को तैयार 6% लोग
इस सर्वे से साफ है कि ग्रीनलैंड अपनी स्वायत्ता नहीं खोना चाहता और आजाद देश के तौर पर ही पहचान चाहता है. डेनमार्क के न्यूजपेपर बर्लिंग्सके की ओर से यह सर्वे पोलस्टर वेरियन ने किया है, जो बताता है कि सिर्फ 6 फीसदी लोग ऐसे हैं जो अमेरिका के साथ जाने को तैयार हैं. वहीं सर्वे में 9 फीसदी लोगों ने अमेरिका के साथ जाने को लेकर अपनी राय देने से इनकार किया है.
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उधर, ग्रीनलैंड की आजादी बचाए रखने के लिए डेनमार्क की प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिकसेन पूरी तैयारी कर रही हैं और मंगलवार को उन्होंने कहा कि वह अंतरराष्ट्रीय सीमाओं की सुरक्षा के सिद्धांत का सम्मान करती हैं. इसके लिए उन्हें फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, जर्मन चांसलर ओलाफ स्कोल्ज और नाटो के सेक्रेटरी जनरल मार्क नट का समर्थन भी हासिल है.
नतीजों पर डेनमार्क ने जताई खुशी
सर्वे के नतीजों पर खुशी जताते हुए प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिकसेन ने कहा कि ग्रीनलैंड की जनता डेनमार्क के साथ चले आ रहे करीबी संबंधों को आगे बढ़ाना चाहती है लेकिन शायद समय के साथ इसके तरीके बदल गए हैं. डेनमार्क ने सोमवार को कहा कि आर्कटिक में अपनी सेनाओं की मौजूदगी बढ़ाने के लिए वह दो बिलियन डॉलर से ज्यादा खर्च करेगा. इससे पहले ट्रंप यह दावा कर चुके हैं कि ग्रीनलैंड के लोग अमेरिका के साथ आने को तैयार हैं और हम इसे आसानी के हासिल कर लेंगे.
करीब 60 हजार की आबादी वाले ग्रीनलैंड को साल 2009 में स्वायत्त सरकार चलाने का अधिकार हासिल हुआ था, जिसमें एक रेफरेंडम के जरिए डेनमार्क से आजाद होने का अधिकार भी शामिल था. ग्रीनलैंड के प्रधानमंत्री म्यूट एगेडे लगातार देश की आजादी पर जोर देते आए हैं और साफ कर चुके हैं कि उनका द्वीप बिक्री के लिए नहीं है. एगेडे का कहना है कि यहां के लोगों पर निर्भर करेगा कि वह अपना भविष्य कैसे तय करना चाहते हैं.
अमेरिका के लिए अहम है ग्रीनलैंड
ग्रीनलैंड के नॉर्थ-वेस्ट में स्थित पिटफिक बेस पर अमेरिकी सेना की स्थाई मौजूदगी है, जो इसके बैलिस्टिक मिसाइल अर्ली अलार्म सिस्टम के लिए एक अहम ठिकाना है. यहां से होते हुए यूरोप और नॉर्थ अमेरिका के बीच की दूरी सबसे कम हो जाती है. अमेरिकी की ओर से आए बयानों के बाद फ्रांस अपनी सेना ग्रीनलैंड भेजने पर विचार कर रहा है, हालांकि डेनमार्क इसके लिए अभी राजी नहीं है.
बर्फ से ढका छोटे सा देश ग्रीनलैंड 1953 तक डेनमार्क का उपनिवेश था. अब भी इस द्वीप देश पर डेनमार्क का कंट्रोल है लेकिन 2009 से वहां पर सेमी-ऑटोनोमस सरकार है. घरेलू नीतियों से लेकर बाकी मामलों में ग्रीनलैंड की सरकार ही फैसले करती है. लेकिन रक्षा और विदेश मामलों में फैसले लेने का अधिकार डेनमार्क के पास है. ग्रीनलैंड को अपनी बुनियादी जरुरतों को पूरा करने के लिए भी मशक्कत करती पड़ती है. लेकिन ग्रीनलैंड के बहाने अमेरिका पूरे आर्कटिक क्षेत्र में अपनी दखल बढ़ाना चाहता है. इसी मकसद से वह बार-बार इसे अमेरिका में शामिल करने की इच्छा जताता रहा है.