
पाकिस्तान में आठ फरवरी को हुए आम चुनाव के बाद लगभग महीने भर की राजनीतिक अस्थिरता के बीच शहबाज शरीफ (Shahbaz Sharif) सोमवार को दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं. उन्हें राष्ट्रपति आरिफ अल्वी पद की शपथ दिलाएंगे. नवाज शरीफ के प्रधानमंत्री बनने की अटकलों के बीच शहबाज शरीफ अचानक ही पीएम की कुर्सी तक पहुंच गए हैं. ऐसे में उनके सियासी सफर पर गौर करना जरूरी हो जाता है.
पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (PML-N) के अध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के छोटे भाई 72 साल के शहबाज ने ताउम्र नवाज के विश्वासपात्र की भूमिका निभाई है. शहबाज को कुशल और सख्त प्रशासक के तौर पर जाना जाता है, जो राजनीति और सेना में तालमेल बैठाना बखूबी जानते हैं.
पंजाब के मुख्यमंत्री से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री तक का सफर
शहबाज का जन्म सितंबर 1951 में लाहौर में कश्मीरी परिवार में हुआ था. उन्होंने अपना ग्रैजुएशन लाहौर के गवर्मेंट कॉलेज यूनिवर्सिटी से किया. उनका परिवार 20वीं सदी की शुरुआत में कारोबार के लिए कश्मीर के अनंतनाग से पंजाब के अमृतसर पहुंचा था. परिवार का कारोबार संभालने के बाद वह 1980 के दशक में राजनीति में आए .
शहबाज शरीफ काफी सोच-समझकर राजनीति में आए थे. उन्होंने 1988 के चुनाव से राजनीति में कदम रखा. पंजाब असेंबली के बाद वो 1990 में नेशनल असेंबली के लिए चुने गए. लेकिन 1993 में वह दोबारा पंजाब असेंबली लौटे.
1997 में वह पहली बार पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री चुने गए. वह 2008 से 2018 और 2013 से 2018 के बीच भी वह पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री रहे. इस दौरान उन्हें एक सख्त प्रशासक के तौर पर पहचाना गया. कई बड़े डेवलपमेंटल प्रोजेक्ट्स पर उनकी अगुवाई में धड़ल्ले से काम हुआ. शहबाज की राजनीति में पंजाब की सियासत की अहम भूमिका रही है. उन्हें मेगा प्रोजेक्ट्स को तेज गति से पूरी करने के लिए जाना जाता है. इस वजह से उन्हें 'शहबाज शरीफ स्पीड' के नाम से भी जाना जाता है.
नवाज के पीएम बनते-बनते शहबाज कैसे प्रधानमंत्री बने?
आठ फरवरी को देश में हुए चुनाव में पीएमएल-एन ने 336 सदस्यीय नेशनल असेंबली में सिर्फ 75 सीटों पर जीत दर्ज की थी. जबकि जेल में बंद पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के निर्दलीय उम्मीदवारों ने सबसे ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज की थी, जिसके बाद त्रिशंकु संसद के आसार बन रहे थे. ऐसे में पीएमएल-एन के लिए इमरान खान की पार्टी को सत्ता में आने से रोकने के लिए गठबंधन सरकार बनाने का ही विकल्प बचा था. इस गठबंधन सरकार की रूपरेखा तैयार करने का जिम्मा शहबाज शरीफ को सौंपा गया.
दरअसल पीएमएल-एन पार्टी को जल्द ही अहसास हो गया था कि प्रधानमंत्री के लिए नवाज शरीफ के नाम पर कई लोगों को एतराज है. ऐसे में नवाज ने अपने छोटे भाई शहबाज को पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाने का ऐलान किया.
पार्टी सूत्रों का कहना है कि नवाज शरीफ गठबंधन सरकार की अगुवाई करने में सहज नहीं थे. इस वजह से उन्होंने अपने छोटे भाई शहबाज के लिए प्रधानमंत्री पद छोड़ दिया.
भाई का भरोसेमंद और सेना की पसंद
कहा जाता है कि पाकिस्तानी सेना नवाज की तुलना में शहबाज को अधिक पसंद करती है. नवाज शरीफ की तुलना में शहबाज शरीफ के पाकिस्तानी सेना के साथ बेहतर संबंध रहे हैं. कई रिपोर्ट्स में कहा गया है कि सेना ने कई बार नवाज की तुलना में शहबाज से प्रधानमंत्री बनने की पेशकश की थी, जिसे शहबाज खारिज करते रहे.
मुशर्रफ के साथ वो डील...
1999 में जनरल परवेज मुशर्रफ ने नवाज शरीफ सरकार का तख्तापलट कर दिया था. इसके बाद शहबाज अपने परिवार के साथ आठ साल के लिए सऊदी अरब निर्वासित हो गए. इसके लिए बकायदा शहबाज शरीफ की मुशर्रफ के साथ डील हुई थी.
शहबाज शरीफ का परिवार 2008 में पाकिस्तान लौटा. शहबाज 2008 में दूसरी बार पंजाब के मुख्यमंत्री बने और 2013 में तीसरी बार इस कुर्सी पर बैठे. पनामा पेपर्स मामले में 2017 में नवाज शरीफ को प्रधानमंत्री पद से अयोग्य करार दिया गया. तब नवाज ने शहबाज को पार्टी का अध्यक्ष नियुक्त किया. 2018 के चुनाव में इमरान खान की पार्टी से हार के बाद शहबाज ने एक मजबूत विपक्षी नेता की भूमिका भी निभाई.
शहबाज के खिलाफ हत्या मामले में FIR
शहबाज का परवार 2008 में पाकिस्तान लौटा. उसी साल देश में आम चुनाव थे. लेकिन 1998 के हत्या के एक मामले की वजह से वह चुनावों में हिस्सा नहीं ले सके. दरअसल लाहौर में उनके खिलाफ हत्या का एक मामला दर्ज कराया गया था. इस एफआईआर में शहबाज पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने पंजाब के मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए एक पुलिस मुठभेड़ का आदेश दिया था, जिसमें कुछ लोगों की मौत हुई थी. शहबाज पर भ्रष्टाचार के भी कई मामले दर्ज हुए, जिसमें वह महीनों जेल में भी बंद रहे.
शहबाज ऐसे समय में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने हैं, जब पाकिस्तान चौतरफा मार से जूझ रहा है. गरीबी, बेरोजगारी, चौपट अर्थव्यवस्था और कर्ज की मार से पाकिस्तान बेहाल है. ऐसे में प्रधानमंत्री का ये पद उनके लिए कांटो भरा ताज साबित हो सकता है.