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ऑस्ट्रेलिया के समंदर में मिले मलबे का खुला राज, भारतीय स्पेस एजेंसी ने कही ये बात

जुलाई के मध्य में ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी तट पर एक गुंबदनुमा रहस्यमयी वस्तु मिली थी. इसको लेकर कहा जा रहा था कि इस वस्तु का संबंध भारत से है. लेकिन भारतीय स्पेस एजेंसी ने इसे खारिज कर दिया था. वहीं, अब भारत ने इस बात की पुष्टि की है कि यह वस्तु उसके रॉकेट PSLV का पार्ट है.

ऑस्ट्रेलिया के तट पर मिली वस्तु (Photo-Australian Space Agency/Twitter) ऑस्ट्रेलिया के तट पर मिली वस्तु (Photo-Australian Space Agency/Twitter)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 01 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 6:07 PM IST

14 जुलाई को हुई चंद्रयान-3 की सफलतापूर्वक लॉन्चिंग के कुछ दिन बाद ही (17 जुलाई) पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के तट पर एक रहस्यमयी वस्तु मिली थी. कांस्य रंग के इस बड़े गुंबदनामा ऑब्जेक्ट के बारे में कहा जा रहा था कि यह भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी के अभियान चंद्रयान-3 से जुड़ी हो सकती है. हालांकि, भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ने इसे सिरे से खारिज कर दिया था.

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वहीं, अब भारतीय अंतिरक्ष एजेंसी ने इस बात की पुष्टि की है कि हाल ही में पश्चिमी ऑस्ट्रेलियाई समुद्री तट पर जो वस्तु मिली है, वह उसके रॉकेट PSLV का पार्ट है. पीएसएलवी इसरो का सबसे भरोसेमंद रॉकेट है. इसकी मदद से इसरो 58 प्रक्षेपण मिशन को अंजाम दे चुका है.

कांस्य रंग का यह गुंबदनुमा ऑब्जेक्ट पश्चिमी ऑस्ट्रेलियाई शहर पर्थ के उत्तर में लगभग 250 किमी (155 मील) दूर ग्रीन हेड समुद्र तट पर मिला था. इस रहस्यमय वस्तु के मिलने के बाद से ही आम लोगों के साथ-साथ वैज्ञानिकों के बीच भी यह चर्चा का विषय बन गया था.

भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी के प्रवक्ता सुधीर कुमार ने सोमवार को ब्रिटिश ब्रॉडकास्टर बीबीसी से बात करते हुए इस बात की पुष्टि की है कि यह मलबा उसके पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV) में से एक है. उन्होंने आगे कहा कि अब यह ऑस्ट्रेलिया पर निर्भर करता है कि वह उस वस्तु के साथ क्या करेगा. 

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भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी की ओर से यह बयान ऐसे समय में आया है जब बुधवार को ही ऑस्ट्रेलियाई अंतरिक्ष एजेंसी (एएसए) ने कहा था कि तट पर मिली वस्तु संभवतः पीएसएलवी का तीसरा चरण है जिसका उपयोग भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी अपने उपग्रहों को कक्षा में लॉन्च करने के लिए करती है. 

मलबा कैसे पहुंचा होगा ऑस्ट्रेलिया?

लोगों और संपत्ति को नुकसान पहुंचाने से रोकने के लिए अंतरिक्ष एजेंसियां अक्सर प्रक्षेपणों से निकलने वाले मलबे को महासागरों में डाल देते हैं. अंतरिक्ष पुरातत्वविद और ऑस्ट्रेलिया के फ्लिंडर्स विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. एलिस गोर्मन का कहना है कि प्रक्षेपण में इस्तेमाल किए जाने वाले कंपोनेंट पर अक्सर सीरियल नंबर होते हैं. कई बार कंपोनेंट की अपेरिएंस के आधार पर भी मलबे की पहचान की जाती है. 

यह पहली बार नहीं है जब अंतरिक्ष का मलबा ऑस्ट्रेलिया में मिला है. पिछले साल एलन मस्क के स्पेस एक्स मिशन का भी एक हिस्सा न्यू साउथ वेल्स स्टेट के एक पैडॉक में मिला था. 

क्या मलबा वापस भारत को मिलेगा?

ऑस्ट्रेलियाई अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा कि इस वस्तु को लेकर क्या कदम उठाया जा सकता है, इसको लेकर हम भारत की अंतरिक्ष एजेंसी के साथ काम कर रहे हैं. साथ ही हम संयुक्त राष्ट्र के अंतरिक्ष संधियों के तहत अपने दायित्वों पर भी विचार कर रहे हैं.

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संयुक्त राष्ट्र के बाह्य अंतरिक्ष मामलों के अनुसार, अगर किसी भी देश में किसी अन्य देश का अंतरिक्ष वस्तु मिलती है, तो उसे मूल देश को वापस लौटाना होता है. यानी संयुक्त राष्ट्र की अंतरिक्ष संधियों के तहत ऑस्ट्रेलिया को यह वस्तु भारत को वापस करनी होगी. यह समझौता 1968 में हुआ था.

क्या भारत को वापस देगा ऑस्ट्रेलिया?

प्रोफेसर डॉ. एलिस गोर्मन का भी कहना है कि मिशन एनालिसिस जैसे कई कारण हैं जिस वजह से कोई भी देश मलबा वापस लेना चाहता है. हालांकि, उन्होंने इस वस्तु के परिप्रेक्ष्य में कहा कि भारत को इस वस्तु को वापस लेने से कोई लाभ नहीं होगा. पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया राज्य ने भी इसे ऑस्ट्रेलिया में ही रखने की इच्छा जताई है.

पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के प्रीमियर रोजर कुक ने स्थानीय मीडिया से बात करते हुए संकेत दिया है कि इस वस्तु को राज्य संग्रहालय में नासा के स्काईलैब स्टेशन के मलबे के साथ संग्रहित किया जा सकता है. नासा के स्काईलैब स्टेशन के मलबे को 1979 में खोजा गया था.

ऑस्ट्रेलियन ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन (एबीसी) के अनुसार, स्थानीय लोगों का कहना है कि वे इसे स्थानीय पर्यटक आकर्षण में बदलना चाहते हैं. 
 

 

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