
पौराणिक ग्रंथों में लंका का जब भी जिक्र होता है तो दो बातें दिमाग में जरूर आती हैं पहली सोने की लंका और दूसरी लंका दहन, लेकिन आज श्रीलंका जिन हालातों से गुजर रहा है उन्हें देखकर तमाम सवाल उठ रहे हैं. सबसे बड़ा यही सवाल कि आखिर श्रीलंका के दहन का गुनहगार कौन है? अंग्रेजों की 150 साल की हुकूमत के बाद साल 1948 में आजाद होने वाला श्रीलंका, आजादी के बाद के अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है. और अब सिविल वॉर यानी गृह युद्ध के मुहाने पर खड़ा है.
श्रीलंका में लागू कर्फ्यू को 12 मई की सुबह सात बजे तक के लिए बढ़ा दिया गया है. वहीं सड़कों पर जारी हिंसक प्रदर्शन को दबाने के लिए रक्षा मंत्रालय ने मंगलवार को शूट ऑन साइट (देखते ही गोली मार देना) का आदेश जारी कर दिया है. सोमवार हो हुई हिंसा में सांसद समेत पांच लोगों की मौत हो गई थी.
श्रीलंका में कर्फ्यू लागू होने के बाद भी हालात बेकाबू होते जा रहे हैं. भीड़ ने मंगलवार को कोलंबो में प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास के पास एक शीर्ष श्रीलंकाई पुलिस अधिकारी के साथ मारपीट की और उनके वाहन में आग लगा दी. वरिष्ठ उप महानिरीक्षक देशबंधु तेनाकून कोलंबो में सर्वोच्च पद के अधिकारी हैं, उन्हें तुरंत इलाज की जरूरत है, उन्हें घर भेज दिया गया है. उन्होंने बताया कि भीड़ को तितर-बितर करने के लिए अधिकारी ने हवाई फायरिंग की थी.
श्रीलंका की हालत का गुनहगार कौन?
महंगाई... बेरोजगारी...और भुखमरी की आग में जल रहे श्रीलंका के गुनहगार कौन हैं इसको लेकर जनता की नजर में राजपक्षे परिवार है. जिसकी सत्ता में श्रीलंका की ये हालत हो गई है कि वहां आम लोगों को पेट भरने तक के लाले पड़ गये हैं. राजपक्षे परिवार के 6 सदस्य श्रीलंकाई सरकार को चला रहे थे.
इनमें गोटबाया राजपक्षे श्रीलंका के राष्ट्रपति, उनके बड़े भाई महिंदा राजपक्षे प्रधानमंत्री जो राष्ट्रपति भी रह चुके हैं. उनके अलावा राष्ट्रपति गोटबाया के सबसे बड़े भाई चमल राजपक्षे जो कि श्रीलंका के गृहमंत्री, बासिल राजपक्षे श्रीलंका के वित्तमंत्री और राष्ट्रपति गोटबाया के भतीजे नमल राजपक्षे श्रीलंका के कृषि मंत्री का पद संभाल रहे थे.
राजपक्षे परिवार की अदूरदर्शी नीतियों ने बिगाड़ी हालत
आरोप है कि राजपक्षे परिवार के भ्रष्टाचार और अदूरदर्शी नीतियों की वजह से ही श्रीलंका की ये हालत हुई है. जिन्होंने अपनी सत्ता को कायम रखने के लिए टैक्स की दरें कम कर दीं. जिससे हालात बिगड़े. श्रीलंका के पूर्व प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को तो चीन का करीबी माना जाता है. उनके कार्यकाल में ही श्रीलंका ने बुनियादी ढांचे के विकास के लिए चीन से करीब 7 बिलियन डॉलर से ज्यादा का कर्ज लिया. जिसका नतीजा आज पूरा श्रीलंका भुगत रहा है. श्रीलंका की 2 करोड़ से ज्यादा की आबादी राजपक्षे परिवार के श्रीलंका कांड को झेल रही है.
राजपक्षे सरकार के खिलाफ जनता का गुस्सा
श्रीलंका पहले महंगाई और आर्थिक संकट की आग में जल रहा था. अब हिंसा और दंगों की आग में भी जल रहा है. जिसकी शुरुआत तब हुई जब 9 मई को इस्तीफा देने वाले प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के समर्थकों ने सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों पर हमला कर दिया. उसके बाद स्थिति इतनी ज्यादा बेकाबू हो गई कि प्रधानमंत्री राजपक्षे को जान बचाकर भागना पड़ा. नतीजन प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा भी देना पड़ा. हालांकि राजपक्षे सरकार ने भले ही विरोध को कुचलने के लिए कर्फ्यू लगा दिया है. सेना ने भी लोगों के विरोध प्रदर्शनों को काबू करने के लिए मोर्चा संभाल लिया है, लेकिन ये आम हिंसा नहीं है. ये राजपक्षे सरकार के खिलाफ श्रीलंका की आम जनता का गुस्सा है.
(आज तक ब्यूरो)