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श्रीलंका में सियासी संकट, दो गुटों के बीच फायरिंग में एक मौत

स्पीकर कारु जयसूर्या ने राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना को लिखे पत्र में 16 नवंबर तक सदन को निलंबित करने के उनके फैसले पर सवाल उठाया. उन्होंने कहा कि इससे देश को "गंभीर और अवांछनीय" परिणाम भुगतने पड़ेंगे. जयसूर्या ने अपील की और कहा कि राष्ट्रपति को विक्रमसिंघे को सरकार के नेता के तौर पर मिले विशेषाधिकार फिर से बहाल करना चाहिए.

संघर्ष के दौरान लोग (फोटो-AP) संघर्ष के दौरान लोग (फोटो-AP)
पन्ना लाल
  • नई दिल्ली,
  • 28 अक्टूबर 2018,
  • अपडेटेड 12:05 AM IST

श्रीलंका में गहराते राजनीतिक संकट के बीच राजधानी कोलंबो में फायरिंग हुई है. इस घटना में एक शख्स की मौत हो गई है और दो लोग घायल हो गये हैं. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक राजधानी कोलंबो में बर्खास्त प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे के समर्थकों और पेट्रोलियम मंत्री अर्जुन रणतुंगा के अंगरक्षकों की नव नियुक्त प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के समर्थकों के साथ भिडंत हो गई. इस दौरान पेट्रोलियम मंत्री अर्जुन रणतुंगा के बॉडीगार्ड ने गोलियां चला दी, इसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई.

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अर्जुन रणतुंगा का दफ्तर में विरोध

समाचार एजेंसी भाषा के मुताबिक पुलिस ने बताया कि गंभीर रूप से घायल एक व्यक्ति ने दम तोड़ दिया और दो लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है. इस सिलसिले में सीलोन पेट्रोलियम कारपोरेशन (सीपीसी) परिसर से एक सुरक्षाकर्मी को गिरफ्तार किया गया है.

यह हादसा उस वक्त हुआ जब क्रिकेटर से राजनेता बने रणतुंगा ने सीपीसी का दौरा किया. इस दौरान कुछ कर्मचारियों ने ऑफिस में उनकी उपस्थिति का विरोध किया. जब रणतुंगा ने इमारत में प्रवेश किया तो नये प्रधानमंत्री राजपक्षे के समर्थकों ने उनका विरोध किया और नारेबाजी की.

प्रदर्शनकारियों ने जब उन्हें बाहर नहीं जाने दिया तो गोलियां चलायी गयी जिसमें तीन लोग घायल हो गए हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक रणतुंगा के दो सुरक्षाकर्मियों को गिरफ्तार कर लिया गया है.

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रणतुंगा विक्रमसिंघे के समर्थक हैं जिन्हें राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना ने बर्खास्त कर दिया था. हालांकि, विक्रमसिंघे ने अपनी बर्खास्तगी को अवैध और असंवैधानिक करार दिया है.

विक्रमसिंघे को मिला स्पीकर का समर्थन

इस बीच श्रीलंका की संसद के स्पीकर कारु जयसूर्या ने संकट में घिरे रानिल विक्रमसिंघे को बड़ी राहत देते हुए रविवार को उन्हें देश के प्रधानमंत्री के तौर पर मान्यता दे दी. यूएनपी नेता विक्रमसिंघे को राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री के पद से बर्खास्त कर दिया था.

समाचार एजेंसी भाषा के मुताबिक सिरीसेना को लिखे एक पत्र में जयसूर्या ने 16 नवंबर तक सदन को निलंबित करने के उनके फैसले पर सवाल उठाया. उन्होंने कहा कि इससे देश को "गंभीर एवं अवांछनीय" परिणाम भुगतने पड़ेंगे. उन्होंने राष्ट्रपति से विक्रमसिंघे को सरकार के नेता के तौर पर मिले विशेषाधिकार फिर से बहाल करने को कहा.

विक्रमसिंघे के बारे में उन्होंने कहा कि उन्होंने "लोकतंत्र एवं सुशासन कायम करने के लिए जनादेश हासिल किया है." संसद के स्पीकर ने कहा कि संसद को निलंबित करने का फैसला स्पीकर के साथ विचार-विमर्श के बाद लिया जाना चाहिए. जयसूर्या ने कहा, "16 नवंबर तक संसद भंग रखने से हमारे देश को गंभीर एवं अवांछनीय परिणाम भुगतने होंगे और मैं आपसे विनम्र आग्रह करता हूं कि इस पर फिर से विचार करें."

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कारु जयसूर्या ने कहा, "मेरे विचार से, यह मेरा कर्तव्य है कि मैं आपका ध्यान उस प्रक्रिया की तरफ आकर्षित करूं जिसके तहत संसद स्थगित करने का फैसला अध्यक्ष के परामर्श से लिया जाना चाहिए." अध्यक्ष ने विक्रमसिंघे की सुरक्षा वापस लेने के सिरीसेना के फैसले पर भी सवाल उठाए.

जयसूर्या ने सिरीसेना को शुक्रवार की रात विक्रमसिंघे की जगह पूर्व राजनीतिक दिग्गज महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री बनाए जाने के बाद से देश के कुछ संस्थानों को बलपूर्वक नियंत्रण में लेने की घटनाएं भी याद दिलाईं.

हिंसा के रास्ते पर जा सकता है श्रीलंका

इधर अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वाच ने रविवार को कहा कि महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री नियुक्त करने के श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना के फैसले से इस देश के एक बार फिर से गलत रास्ते पर जाने का डर पैदा हो गया है.

संगठन की एशिया निदेशक ब्रॉड एडम्स ने कहा, "पूर्व के अपराधों पर किसी न्याय के बगैर ही राजपक्षे की सत्ता के उच्च पद पर वापसी से श्रीलंका में मानवाधिकारों के बारे में चिंताएं सामने आई हैं." मानवाधिकारों पर निगाह रखने वाले इस संगठन ने कहा कि मौजूदा श्रीलंका सरकार "राजपक्षे के शासनकाल में हुये युद्ध अपराधों के पीड़ितों को न्याय दिलाने में विफलता पूर्व दोषियों के लिए गलत रास्तों पर लौटने का रास्ता खोलती है."

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भारत ने रविवार को कहा कि वह श्रीलंका में राजनीतिक गतिविधियों पर करीबी नजर रखे हुये है और उसे उम्मीद है कि द्वीपीय देश में लोकतांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक प्रक्रियाओं का पालन किया जाएगा.

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