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सीरिया: विरासत की सत्ता, 24 साल से शासन और 12 साल से झेल रहे बगावत... जानें कौन हैं बशर अल-असद

सीरिया में हालिया उथल-पुथल से राष्ट्रपति बशर अल-असद की सत्ता फिर से खतरे में है. विद्रोही समूह, जिन्हें अमेरिका का समर्थन है, कई अहम क्षेत्रों पर नियंत्रण कर चुके हैं, जिसमें अलेप्पो भी शामिल है. वहीं, असद को रूस का समर्थन मिला है. 2000 से सत्ता में असद ने कई विवादों का सामना किया है और आज भी चुनौतीपूर्ण हालात में शासन कर रहे हैं. अब मानो देश दोबारा गृहयुद्ध की तरफ बढ़ रहा है.

सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद (SANA via AP, File) सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद (SANA via AP, File)
एम. नूरूद्दीन
  • नई दिल्ली,
  • 04 दिसंबर 2024,
  • अपडेटेड 6:36 PM IST

सीरिया में बीते कुछ दिनों से फिर उथल-पुथल मची है. यहां विद्रोही समूहों ने राष्ट्रपति बशर अल-असद के खिलाफ मानो जंग छेड़ दी है और अब तक देश के कई अहम हिस्से को कब्जा चुके हैं, जिसमें अलेप्पो शहर प्रमुख है. इस बीच अमेरिका-रूस का हस्तक्षेप भी देखा गया है, जहां विद्रोहियों को अमेरिका का समर्थन है तो असद शासन को रूस सपोर्ट कर रहा है.

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बशर अल-असद बीते 24 साल से सीरिया पर शासन कर रहे हैं, जिसकी सत्ता उन्हें खानदानी विरासत में मिली थी. अपने राजनीतिक इतिहास में उन्होंने एक लंबा रास्ता तय किया है और अपनी सत्ता को बचाए रखने के लिए कई मोर्चों पर विवादों को निपटाया भी है और विवाद खड़े भी किए हैं. आइए जानते हैं कि आखिर कौन हैं बशर अल-असद? जिनके दरवाजे पर फिर से खतरा मंडराने लगा है.

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कौन हैं बशर अल-असद?

बशर अल-असद का जन्म सीरिया की राजधानी दमिश्क में 11 सितंबर, 1965 को हुआ था. वह 2000 से सीरिया के राष्ट्रपति हैं. उन्होंने अपने पिता, हाफेज अल-असद की जगह ली, जिन्होंने 1971 से सीरिया पर शासन किया था. असद के राष्ट्रपति बनने पर लोगों में उम्मीद थी कि वह लोकतांत्रिक सुधार और आर्थिक विकास की दिशा में कदम बढ़ाएंगे, लेकिन उन्होंने अपने पिता के सत्तावादी तरीकों को ही आगे बढ़ाने पर फोकस किया.

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हाफेज अल-असद की मौत 10 जून, 2000 को हुई थी. उनके निधन के कुछ घंटे बाद ही देश के संवैधानिक ढांचे में बदलाव कर असद को राष्ट्रपति बनाने का रास्ता साफ किया गया. मसलन, हाफेज अल-असद के दौर में राष्ट्रपति बनने की न्यूनतम उम्र 40 थी, जिसे घटाकर 34 कर दिया गया - जो कि उस समय असद की उम्र थी.

18 जून को असद को सत्तारूढ़ बाथ पार्टी का महासचिव नियुक्त किया गया और दो दिन बाद ही पार्टी कांग्रेस ने राष्ट्रपति के रूप में उनके नाम का ऐलान कर दिया. उनके नाम को मंजूरी मिली और 10 जुलाई को अगले सात साल के लिए वह निर्विरोध राष्ट्रपति चुन लिए गए. 

इजरायल-सीरिया जंग पर असद का रुख

बशर अल-असद के राष्ट्रपति की कमान संभालने के बाद इजरायल के साथ तनाव जारी रहा. उन्होंने इजरायल के खिलाफ अपने पिता के रुख को बरकरार रखा और गोलन हाइट्स की वापसी की मांग जारी रखते हुए फिलिस्तीनी और लेबनानी हथियारबंद समूहों का समर्थन किया.

अमेरिका के साथ संबंध तब और बिगड़ गए जब असद ने 2003 में इराक पर अमेरिकी नेतृत्व वाले हमले की निंदा की. इसके बाद वह खुले तौर पर पश्चिम और अमेरिका के खिलाफ अपनी बात रखने लगे. अपने भाषणों में उन्होंने राष्ट्रवाद को तरजीह दी और इसके बाद से सीरिया के हालात और ज्यादा बिगड़ने लगे.

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2007 में बशर अल-असद दूसरी बार सर्वसम्मति से दूसरी बार राष्ट्रपति चुने गए. हालांकि, आलोचक इस विरोध में उतर आए कि असद शासन ने चुनाव में धांधली की और चुनावों को धोखा करार दिया. अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान असद ने इंटरनेशलन विरोधों को कम करने की दिशा में भी कदम उठाए, और सऊदी अरब और तुर्की के साथ सीरिया के संबंधों को सुधारने की कोशिश की.

सीरिया में गृह युद्ध!

सीरिया में मार्च 2011 में शुरू हुई अशांति से असद शासन को बड़ा झटका लगा. इसके बाद वह स्थानीय स्तर पर संकटों में घिर गए. यह अशांति मिडिल ईस्ट में फैली उस अरब स्प्रिंग से प्रेरित थी, जिसे लोगों ने लोकतंत्र की बहाली के लिए शुरू किया था. सीरिया में भी वो ही मांग उठने लगी, लेकिन असद शासन ने उनपर गहरा पलटवार किया.

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बताया जाता है कि शुरुआती दौर में असद शासन ने विरोधियों के खिलाफ कुछ रियायतें दीं, लेकिन सत्ता विरोध जारी रहने के बाद उन्होंने सुरक्षा बलों से प्रदर्शनकारियों के खिलाफ हिंसात्मक कार्रवाई का आदेश जारी कर दिया. इससे हालात इस कदर बिगड़ गए कि, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनका विरोध होने लगा. प्रदर्शनकारियों के खिलाफ दमनकारी कदमों के बावजूद, विरोध पूरे देश में फैल गया.

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असद शासन ने कई शहरों में टैंकों और सैनिकों को तैनात कर दिया. इसका नतीजा ये हुआ कि सितंबर 2011 तक देश में हथियारबंद समूह अस्तित्व में आ गए, और धीरे-धीरे असद शासन के खिलाफ प्रभावी हमले करने लगे. कहा जाता है कि इसे रोकने की कोशिश अरब लीग और यूनाइटेड नेशन ने भी मध्यस्थता की लेकिन तमाम कोशिशें असफल रहीं, और 2012 के मध्य तक संकट पूरी तरह से गृहयुद्ध में बदल गया.

2012 में असद के करीबी सुरक्षा अधिकारियों पर हुए बम हमले ने उनकी सरकार को हिला दिया. इसके बाद सुरक्षा और बिगड़ने लगी. असद ने अपने सहयोगियों से मदद ली, जबकि सऊदी अरब, तुर्की और कतर जैसे अरब मुल्कों ने विद्रोही समूहों का समर्थन करना शुरू कर दिया, जिसमें बताया जाता है कि आम लोग शामिल थे.

केमिकल वेपन से हमला और फिर बदले हालात

असद शासन और खासतौर पर सीरिया के काले दिन तब शुरू हो गए, जब असद ने 2013 में आम लोगों पर कथित रूप से कमेकिल हथियारों से हमले किए. इसके बाद अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने भी कार्रवाई करने की धमकी दी. हालांकि, तब तक रूस असद के समर्थन में आ गया, और मध्यस्थता कर हालात को शांत करने में मदद की.

रूस और ईरान ने असद शासन का पुरजोर समर्थन किया और यहां तक कि 2015 में रूसी सैन्य सपोर्ट से गृह युद्ध के दौरान असद की कुर्सी और मजबूत हो गई. 2018 तक, असद ने अधिकांश सीरिया पर दोबारा से कब्जा कर लिया था.

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इस गृहयुद्ध का नतीजा ये हुआ कि सीरिया के अधिकतर हिस्से तबाह हो गए. देश प्रशासनिक रूप से दो हिस्सों में विभाजित हो गए, जहां 30 फीसदी पर विद्रोही ग्रुप और बाकी हिस्से पर असद का शासन चल रहा है. इस दौरान उन्होंने देश के पुनर्निर्माण की योजनाओं पर काम करने की कोशिश की, लेकिन अब एक बार फिर उनकी सत्ता पर खतरा बन आया है - जहां विद्रोही समूह बताया जाता है कि अमेरिकी सपोर्ट से अपना विद्रोह तेज कर रहे हैं.

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