
सीरिया में बशर अल-असद को सत्ता से हटाए जाने के बाद से सबसे खराब हिंसा देखने को मिली है. गुरुवार को देश में फैली हिंसा में अब तक 1,000 से अधिक लोग मारे गए हैं. इस लड़ाई में इस्लामिस्ट नेतृत्व वाली सरकार के सुरक्षाबल और असद के अलावी अल्पसंख्यक समुदाय के लड़ाके आमने-सामने हैं. मरने वालों में सैकड़ों अलावी नागरिक शामिल है जिनके बारे में सीरियन ऑब्जर्वेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स ने बताया कि सुरक्षा बलों पर हमलों के बाद बदले की कार्रवाई में वो मारे गए.
सीरिया में हिंसा कैसे शुरू हुई?
सीरिया से असद के जाने के बाद वहां एक अंतरिम सरकार का गठन किया गया है जिसका नेतृत्व अंतरिम राष्ट्रपति अहमद अल-शारा के हाथ में है. शारा शासित सीरिया में हिंसा गुरुवार को तब शुरू हुई, जब अधिकारियों ने कहा कि तटीय क्षेत्र में उनकी सेना पर अपदस्थ असद से जुड़े लड़ाकों ने हमला किया.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, लड़ाकों के हमले के बाद अंतरिम सरकार ने अलावी बहुल इलाकों में अपनी सेना तैनात कर दी. लेकिन जैसे ही वहां सेना की तैनाती की गई, नए प्रशासन के प्रति वफादार क्षेत्रों में मस्जिदों पर लोगों से जिहाद का आह्वान करना शुरू कर दिया. मस्जिदों के जरिए लोगों से कहा गया कि वो सुरक्षा बलों के समर्थन में अलावी लोगों के खिलाफ जिहाद करें. शुक्रवार दोपहर तक, ऐसी रिपोर्टें सामने आने लगीं कि अलावी कस्बों और गांवों में सांप्रदायिक दंगों में कई नागरिक मारे गए हैं.
रविवार शाम तक, ब्रिटिश संगठन सीरियन ऑब्जर्वेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स ने कहा कि सरकारी बलों और उनका साथ दे रहे लड़ाकों की बदले की कार्रवाई में 973 लोग मारे गए. इसने कहा कि 250 से अधिक अलावी लड़ाके मारे गए और 250 से अधिक सरकारी सुरक्षाकर्मी भी मारे गए हैं.
अलावी कौन हैं?
अलावी सीरिया में सुन्नी मुसलमानों के बाद दूसरे सबसे बड़े धार्मिक समूह हैं. अलावी मुसलमान खुद को शिया इस्लाम का ही एक हिस्सा मानते हैं. असद खुद अलावी समुदाय से थे और उन्होंने अपनी सेना में अलावी समुदाय के लोगों को भारी संख्या में भर्ती किया था. असद और उनके परिवार का शासन सीरिया में पांच दशकों तक चला और इसे बेहद ही क्रूर शासन माना गया.
2011 में असद शासन के खिलाफ सीरिया में भड़के विरोध-प्रदर्शनों के दौरान अलावी समुदाय के बहुत से लोग अहम भूमिका निभा रहे थे. सीरिया का गृहयुद्ध जल्द ही एक सांप्रदायिक संघर्ष बन गया था जहां सुन्नी मुस्लिम विद्रोही गुट ईरान, लेबनान के शिया मुस्लिम हिजबुल्लाह से चल रही असद सरकार को गिराने की कोशिश में थे. तब वर्तमान अंतरिम राष्ट्रपति शारा ने असद से लड़ने वाले सबसे शक्तिशाली सुन्नी इस्लामवादी समूह का नेतृत्व किया था.
नुसरा फ्रंट के नाम से जाना जाने वाला शारा का समूह आतंकी संगठन अलकायदा का हिस्सा था. लेकिन 2016 में नुसरा फ्रंट ने अलकायदा से अपने संबंध खत्म कर लिए हालांकि, सगठन का नाम नहीं बदला.
शारा ने 2015 में अल जजीरा को एक इंटरव्यू दिया था जिसमें उन्होंने अलावी लोगों को एक ऐसे संप्रदाय का हिस्सा बताया था जिन्होंने अल्लाह और इस्लाम धर्म को छोड़ दिया है. तब उन्होंने सीरिया के लोगों, खासकर अलावी मुसलमानों से कहा था कि वो असद सरकार का साथ छोड़ दें और सुरक्षित रहने के लिए अपना धर्म बदल लें.
शारा जब राष्ट्रपति बने तब उन्होंने सीरिया के सभी लोगों को साथ लेकर चलने की बात कही थी. पद ग्रहण करने के बाद उन्होंने सार्वजनिक रूप से कुर्दों, ईसाइयों और ड्रूज समुदाय से बात की लेकिन अलावी समुदाय के किसी नेता से बात नहीं की. कई अलावी लोगों का कहना है कि असद और उनके पिता के शासन भी ज्यादा अलग नहीं था बल्कि उस दौरान भी उन्हें दूसरे सीरियाई लोगों की तरह की दिक्कतें सहनी पड़ीं.
गुरुवार को तनाव बढ़ने से पहले, अलावी समुदाय के कई लोगों ने अपने समुदाय पर हमले की रिपोर्ट की थी खासकर Homs और Latakia इलाकों में.
हिंसा के बारे में अंतरिम राष्ट्रपति शारा ने क्या कहा है?
शारा ने रविवार को एक भाषण में कहा कि असद सरकार के बचे हुए समर्थकों को बाहरी समर्थन मिल रहा है और वो देश में संघर्ष पैदा कर सीरिया को बांटने की कोशिश में हैं. उन्होंने हिंसा की जांच के लिए एक समिति बनाने का वादा किया और कहा कि समिति के नतीजों को सार्वजनिक किया जाएगा. हिंसा में जो भी व्यक्ति शामिल होगा, उसे जवाबदेह ठहराया जाएगा.
शारा ने देश में शांति बनाए रखने के लिए भी एक समिति बनाने की घोषणा की जिसका काम हिंसा प्रभावित इलाकों के लोगों से बातचीत करना और उन्हें सुरक्षा की गारंटी देना होगा. एक इंटरव्यू में शारा ने कहा कि अलावी लोगों की सामूहिक हत्याएं देश को एकजुट करने के उनके मिशन के लिए एक खतरा हैं. उन्होंने कहा कि हिंसा में अगर उनके अपने लोग भी शामिल होंगे तो उन्हें भी दंडित किया जाएगा.