
बीते कई हफ्तों से बुर्किना फासो से लेकर माली तक से नरसंहार की खबरें आ रही हैं. अलग-अलग नामों वाले आतंकी समूह आम लोगों को मार रहे हैं. लेकिन इन अलग नामों वाले गुटों में एक बात कॉमन है कि ये सभी इस्लामिक चरमपंथी संगठन हैं, जो अफ्रीका को अपने अनुसार चलाना चाहते हैं. लेकिन यहां सवाल आता है कि मिडिल ईस्ट छोड़कर जेहादी आखिर अफ्रीका क्यों पहुंचे? क्यों एक नहीं, बल्कि कई चरमपंथी गुट यहां फल-फूल रहे हैं? क्या सबका मकसद एक ही है?
कैसे फैला इस्लामिक स्टेट?
साल 2013 में जब इस्लामिक स्टेट बना, तो उसका एजेंडा बिल्कुल साफ था. वो ऐसी संस्थाओं और लोगों को टारगेट करना, जो उसके मुताबिक मजहब का पालन ढंग से नहीं कर रहे थे. पहले उन्हें समझाया जाता, और न मानने पर हत्या कर दी जाती. दो सालों के भीतर ISIS ने सीरिया से लेकर इराक की बड़ी जमीन पर कब्जा जमा लिया. अब लगभग एक करोड़ लोग उसकी हुकूमत में थे. साथ ही दूसरे देशों के लोग भी चरमपंथी गुट की तरफ खिंचने लगे.
दो देशों में चलता था राज
इन शहरों पर हुआ कब्जा खुद तो खलीफा घोषित करने वाले गुट ने सीरिया और इराक के सभी बड़े शहरों, जैसे रक्का, मोसुल, फलुजेह दियाला, किरकर पर कब्जा जमा लिया. यहां तक कि इराक की राजधानी बगदाद तक भी इसकी धमक सुनाई देने लगी. कुल मिलाकर लगभग 1 लाख वर्ग किलोमीटर की टैरिटरी पर इसका पक्का राज चलता था, जबकि आसपास के इलाकों में भी असर दिखने लगा था.
बना रहा था अपनी शाखाएं
इस्लामिक स्टेट जब सीरिया और इराक में उभरा तो बस वहीं तक सीमित नहीं था. वो धीरे-धीरे दुनिया के उन देशों को चुन रहा था, जहां आतंक का अपना कारोबार फैला सके. ये बिल्कुल वैसा ही है, जैसे बिजनेस ग्रुप अपने व्यापार के दौरान करते हैं. वे उन इलाकों की पहचान करते हैं, जहां उनका काम फल-फूल सके. यही फंडा इस्लामिक स्टेट ने भी अपनाया.
क्यों चुना अफ्रीका को?
अफ्रीका उसके लिए सॉफ्ट टारगेट था क्योंकि ये गरीब भी था, और राजनैतिक तौर पर अस्थिर भी. साथ ही एक और बात पक्ष में जाती थी कि यहां की ज्यादा आबादी इस्लाम को मानने वाली है. युवा आबादी भी अफ्रीकी देशों में काफी ज्यादा है. ये लोग जल्दी बहकावे में आ जाते हैं. यानी उनकी सोच बदलकर चरमपंथ के रास्ते पर लाना खास मुश्किल नहीं था. तो इस्लामिक स्टेट ने सीरिया-इराक के साथ ही अफ्रीका को भी ब्रीडिंग ग्राउंड बना लिया.
इस तरह से शुरू हुआ काम
उसने वहां कई संगठनों को फंड करना शुरू किया. ये छुटभैये गुट थे, जो छोटे-मोटे कामों से उगाही किया करते. इस्लामिक स्टेट ने उन्हें चरमपंथ की तरफ जाने को कहा. ये संगठन स्पिलिंटर ग्रुप कहलाने लगे, यानी एक तरह की ब्रांच. हेडक्वार्टर सीरिया-इराक में था, लेकिन कारोबार दूर-दराज तक फैल चुका था. साल 2017 में जब अमेरिका भी इस्लामिक स्टेट के खात्मे के लिए सेनाएं भेजने लगा तो स्टेट के नेताओं ने अफ्रीका में सक्रियता बढ़ा दी. वे समझ चुके थे कि अगर यहां से खत्म हुए तो अफ्रीका ही उनके काम आ सकता है.
कौन से ग्रुप हैं एक्टिव?
नेशनल डिफेंस यूनिवर्सिटी में अफ्रीका सेंटर फॉर स्ट्रेटजिक स्टडीज की रिपोर्ट बताती है कि वहां के गरीब देशों में सक्रिय लगभग सारे ही गुट इस्लामिक चरमपंथ को मानते हैं. इनमें से एक ग्रुप है बोको हराम, जिसकी बर्बरता की खबरें आती रहती हैं. साल 2002 में बना ये संगठन एक चरमपंथी समूह है जिसका आधिकारिक नाम जमाते एहली सुन्ना लिदावति वल जिहाद है. नाइजीरिया की भाषा होसा में बोको हराम का मोटा-मोटी अर्थ है- वेस्टर्न सीख हराम है.
नाइजीरिया से किसी भी तरह की चुनी हुई सरकार हटाकर ये लोग अपनी सत्ता लाना चाहते हैं. एक तरह से समझा जाए तो ये ग्रुप नाइजीरिया का तालिबान है, जो मानता है कि एक धर्म विशेष को हर तरह की पश्चिमी चीज से दूर रहना चाहिए.
ISIS से क्या था रिश्ता
दोनों की सोच कॉमन है कि दुनिया में इस्लामिक स्टेट की स्थापना की जाए. इस्लामिक स्टेट का आतंकी रुतबा चूंकि ज्यादा रहा, तो बोको हराम उसे लीडर की तरह मानता है. कई बार ऐसी खबरें आती रहीं कि बोको हराम जेहादियों को इस्लामिक स्टेट में भी भेजता है ताकि वे ज्यादा से ज्यादा कट्टर सोच वाले हो जाएं.
ये गुट भी हैं सक्रिय
अल-कायदा से जुड़े कई ग्रुप अलग-अलग पहचान के साथ एक्टिव हैं. जमात-नस्र अल-इस्लाम वल मुस्लिमिन (JNIM) इनमें बड़ा नाम है. साल 2017 में बना ये संगठन भी उसी सोच के साथ काम करता है. बुर्किना फासो, माली और नाइजर में इसने एक के बाद एक कई हाई-प्रोफाइल अटैक करके दबदबा बना लिया. यूनाइटेड नेशन्स ऑफिस ऑफ काउंटर-टैररिज्म में इसका जिक्र मिलता है.
ये संगठन सीधे पाते रहे मदद
कई ऐसे आतंकी संगठन भी हैं, जिन्हें ISIS से सीधा सपोर्ट मिलता रहा. जैसे इस्लामिक स्टेट इन ग्रेटर सहारा (ISGS) को इस्लामिक स्टेट से फंडिंग और हथियार भी मिलते रहे. इसके अलावा इस्लामिक स्टेट इन वेस्ट अफ्रीका (ISWA) भी चड, कैमरून और नाइजर में एक्टिव है. ये भी इस्लामिक स्टेट का हिस्सा हैं.
इन देशों में चरमपंथ फैल चुका
अफ्रीका के बहुत से देशों में इस्लामिक स्टेट खुद अपने दम पर, या अपनी शाखा संस्थाओं के दम पर पैर पसार रहा है. इसमें बुर्किना फासो, नाइजीरिया, सोमालिया, माली और लीबिया जैसे देश सबसे ऊपर हैं. यहां एक नहीं, कई इस्लामिक चरमपंथी संगठन काम कर रहे हैं, जिनका मकसद एक ही है.
कहां से आते हैं पैसे?
इस्लामिक स्टेट के पास पैसों के कई स्रोत हुआ करते थे, लेकिन साल 2019 में सीरिया और इराक से उखाड़े जाने के बाद इसमें थोड़ी रुकावट आई. लेकिन जल्दी ही अफ्रीका में कई सोर्सेज बनाए गए, जहां से पैसों की सप्लाई होती रहे.
इसमें सबसे ऊपर है तस्करी. लीबिया, नाइजीरिया और बुर्किना फासो में सोने के भंडार हैं. साथ ही यहां तेल भी भरपूर मिलता है. तो ISIS ने इनकी तस्करी शुरू कर दी. अफ्रीकी संस्थान इंस्टीट्यूट फॉर सिक्योरिटी सर्विसेज की रिपोर्ट के मुताबिक, तस्करी में फिलहाल सबसे आगे आतंकी संगठन ही है.
अमीरों से होने लगी उगाही
उत्तरपूर्वी अफ्रीकी देशों में फंडिंग का अलग ही तरीका खोजा गया. वहां चरमपंथी संगठन बड़े व्यापारियों पर टैक्स लगाते हैं. ये टैक्स सरकारी टैक्स से अलग होता है, मतलब एक किस्म की उगाही होती है. लेकिन ISIS और उसकी तरह से सोच वालों को भारी पैसे सहानुभूति में भी मिलते हैं. बहुत से लोग हैं, जो मन ही मन में ISIS की आइडियोलॉजी को पसंद करते हैं. वे चाहते हैं कि दुनिया में इस्लामिक चरमपंथ का राज हो जाए, लेकिन ये बात कह नहीं पाते. ऐसे में वे उन्हें फंडिंग करने लगते हैं. इसके अलावा भी कई स्त्रोत हैं, जहां से पैसे आते रहे, जैसे डकैती और अपहरण.