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Jaffar Express Hijacked: 'ट्रेन में घुसते ही ID चेक करने लगे हमलावर, हमें बोला पीछे मुड़कर मत देखना...', हाईजैक ट्रेन के चश्मदीदों ने बताई आपबीती

जाफर एक्सप्रेस में सवार होकर पेशावर जा रहे मुश्ताक मुहम्मद ने माछ स्टेशन पहुंचने पर बताया कि क्वेटा से ट्रेन शुरू हुई और बीच सफर में अचानक बड़ा धमाका हुआ. इस धमाके के बाद ट्रेन अचानक रुक गई. ट्रेन के रुकते ही फायरिंग शुरू हो गई, जो लगभग एक घंटे तक होती रही. 

क्वेटा स्टेशन पर मौजूद बंधकों के रिश्तेदार (फोटोः AP) क्वेटा स्टेशन पर मौजूद बंधकों के रिश्तेदार (फोटोः AP)
शिवानी शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 12 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 3:32 PM IST

पाकिस्तान में क्वेटा से पेशावर जा रही जाफर एक्सप्रेस अभी भी बलूच विद्रोहियों के कब्जे में हैं. पाकिस्तानी सेना के ऑपरेशन के बीच अब तक 155 बंधकों को छुड़ाया जा चुका है और कई विद्रोहियों को मार गिराया जा चुका है. कई बंधक घंटों के पैदल सफर के बाद नजदीकी स्टेशन पर पहुंचे. इस दौरान कई प्रत्यक्षदर्शियों ने उस खौफनाक मंजर को बयां किया. 

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जाफर एक्सप्रेस में सवार होकर पेशावर जा रहे मुश्ताक मुहम्मद ने माछ स्टेशन पहुंचने पर बताया कि क्वेटा से ट्रेन शुरू हुई और बीच सफर में अचानक बड़ा धमाका हुआ. इस धमाके के बाद ट्रेन अचानक रुक गई. ट्रेन के रुकते ही फायरिंग शुरू हो गई, जो लगभग एक घंटे तक होती रही.

इस ट्रेन की बोगी नंबर सात में सवार एक अन्य प्रत्यक्षदर्शी इशाक नूर ने बताया कि वह अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ क्वेटा से रावलपिंडी जा रहे थे. धमाका इतना तेज था कि इससे ट्रेन के दरवाजे और खिड़कियां जोर-जोर से हिले. धमाके के बाद जैसे ही गोलियां चलनी शुरू हुई तो मैंने अपने बच्चों को जमीन पर लेटने को कहा ताकि हम गोली से बच सके.

इशाक ने बताया कि फायरिंग पचास मिनट तक होती रही. हमें समझ ही नहीं आ रहा था कि हो क्या रहा है? गोलीबारी थमते ही बंदूकधारी ट्रेन में घुसे और लोगों का आईडी कार्ड देखने लगे और कुछ लोगों को अपने साथ ले गए. तीन हथियारबंद हमारी बोगी के गेट पर खड़े थे और पहरेदारी कर रहे थे. हथियारबंद लोगों ने हमसे कहा कि हमें आम नागरिकों, महिलाओं और बुजुर्गों की कोई परवाह नहीं है. हमें बलूच लोगों की भी परवाह नहीं है. 

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उन्होंने कहा कि हमलावर बलूची भाषा में बात कर रहे थे और इनका सरगना लगातार कह रहा था कि सुरक्षाकर्मियों पर भी नजर रखो. हमारी बोगी से 11 लोगों को इन्होंने मार दिया. उनका कहना था कि ये सेना के आदमी थे. 

इशाक नूर ने कहा कि शाम के समय हमलावरों ने हमें बताया कि वे बलूच लोगों, महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों को नहीं मारेंगे. लेकिन अन्य प्रत्यक्षदर्शी मोहम्मद अशरफ ने बताया कि हमलावरों ने बुजुर्गों, आम नागरिकों, महिलाओं और बच्चों की हत्या की है.

उन्होंने बताया कि जब हमें रिहा किया गया तो हम शाम को ही स्टेशन की तरफ पैदल-पैदल चलने लगे. हम साढ़े तीन घंटों के पैदल रास्ते के बाद बड़ी मुश्किल से स्टेशन पहुंचे. हमारे साथ महिलाएं और बच्चे भी थे, जिनकी हालत अच्छी नहीं थी. कुछ लोगों ने ट्रेन में ही अपना सामान छोड़ दिया जबकि कुछ लोगों ने अपना सामान ले लिया. लेकिन वह पल हमारे लिए काफी खौफनाक था. एक अन्य प्रत्यक्षदर्शी ने जब हमें छोड़ा तो उन्होंने हमसे कहा कि कुछ भी हो जाए पीछे मुड़कर नहीं देखना. हमने ऐसा ही किया.

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