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US नेशनल इंटेलिजेंस की चीफ बनीं तुलसी गबार्ड, हरे राम... हरे कृष्णा वाला वीडियो वायरल

तुलसी गबार्ड ने 2022 में डेमोक्रेटिक पार्टी से राष्ट्रपति चुनाव के लिए अपनी दावेदारी पेश की थी. लेकिन बाद में अपना नाम वापस ले लिया था. उन्होंने 2022 में डेमोक्रेटिक पार्टी छोड़ दी थी. 

तुलसी गबार्ड तुलसी गबार्ड
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 14 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 2:51 PM IST

अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तुलसी गबार्ड को राष्ट्रीय खुफिया एजेंसी का निदेशक चुना है. अमेरिका की पहली हिंदू महिला सांसद तुलसी को ट्रंप सरकार में मिलने जा रही यह बड़ी जिम्मेदारी मिलने के बाद ही उनका एक पुराना वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है.

इस वीडियो में तुलसी को हिंदू धर्म के पारंपरिक पहनावे सलवार और सूट पहने देखा जा सकता है. इस दौरान वह भक्ति में डूबे हुए हरे कृष्णा और हरे रामा गा रही हैं और जमकर हिंदू धर्म का प्रचार कर रही हैं. 

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तुलसी ने 2022 में डेमोक्रेटिक पार्टी से राष्ट्रपति चुनाव के लिए अपनी दावेदारी पेश की थी. लेकिन बाद में अपना नाम वापस ले लिया था. उन्होंने 2022 में डेमोक्रेटिक पार्टी छोड़ दी थी. 

वह हाल ही में रिपब्लिकन पार्टी में शामिल हो गई थीं और राष्ट्रपति चुनाव में खुलकर ट्रंप का समर्थन किया था. वह प्राउड हिंदू हैं और अक्सर पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ अत्याचार की निंदा करती हैं. वह खुफिया मामलों पर व्हाइट हाउस की सलाहाकार भी होंगी और अमेरिका की 18 जासूसी एजेंसियों का कामकाज देखेंगी.

तुलसी ने एलॉन मस्क के साथ की थी डील

तुलसी गबार्ड ने अरबपति एलन मस्क के साथ एक एग्रीमेंट किया था. इस एग्रीमेंट के तहत तुलसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर एक शो को होस्ट करेंगी. इस शो के जरिए अभिव्यक्ति की आजादी की पैरवी की जाएगी. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X तीन नए शो लेकर आ रहा है, जिनकी मेजबानी तुलसी गबर्ड, सीएनएन के पूर्व एंकर डॉन लेमन और स्पोर्ट्स रेडियो कमेंटेटर जिम रोम करेंगे. तुलसी का नया शो डॉक्यूमेंट्री स्टाइल के वीडियो और कंटेंट की व्यापक सीरीज पेश करेगा.

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तुलसी का कहना है कि वह उन लोगों की कहानियां शेयर करेंगी, जिनकी आवाज को चुप करा दिया गया है और सत्ता में बैठे लोग जिनकी आवाज को दबाने का काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि अमेरिका में अभिव्यक्ति की आजादी मौलिक अधिकार है. दुखद है कि हम ऐसे समय में जी रहे हैं, जहां संवाद, चर्चा और असहमति सत्ता में बैठे लोगों के इशारे पर होती है. अभिव्यक्ति की आजादी की रक्षा के लिए हमें इसका इस्तेमाल करना चाहिए.

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