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हर 10 में से 1 बिल्डिंग अभी-अभी बनी थी, फिर भी ढह गई... तुर्की में भूकंप ने ऐसे मचाई तबाही

तुर्की और सीरिया में बीते सोमवार को आए भीषण भूकंप में अब तक 19,300 लोगों की मौत हो गई है. मौतों का यह आंकड़ा जापान के फुकाशिमा सुनामी से भी अधिक है. राष्ट्रपति अर्दोगन ने भूकंप से प्रभावित 10 प्रांतों में तीन महीने के लिए आपातकाल का ऐलान किया है. स्कूलों को 13 फरवरी तक के लिए पहले ही बंद किया जा चुका है.

तुर्की में भीषण भूकंप से तबाही तुर्की में भीषण भूकंप से तबाही
मिलन शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 09 फरवरी 2023,
  • अपडेटेड 10:24 PM IST

तुर्की में सोमवार को आया भूकंप अपने पीछे विनाश का मंजर छोड़ गया है. अब तक भूकंप से तुर्की और सीरिया में 19,000 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई है. देश के 10 प्रांतों में 10000 इमारतें ढह हुई हैं जबकि पचास हजार से एक लाख इमारतें पूरी तरह से नष्ट हो गई हैं. ऐसे में एक्सपर्ट्स ने स्टडी के बाद बताया है कि तुर्की में भूकंप से ढही हर 10 में से एक इमारत नई थी, जिनका निर्माण 2007 के बाद हुआ था. 

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तुर्की में बड़े पैमाने पर इमारतों के ढहने ने वहां के इन्फ्रास्ट्रक्चर की पोल खोल दी है. मियामोटो इंटरनेशनल के सीईओ और स्ट्रक्चरल इंजीनियर डॉ. किट मियामोटो का कहना है कि तुर्की में इमारतों के निर्माण में मानकों का ध्यान नहीं रखा गया, जिस वजह से इमारतों को इतना नुकसान पहुंचा है. हालात ऐसे हैं कि भूकंप के बाद भी लोग कंक्रीट की इमारतों में नहीं रहना चाहते. भूकंप के बाद आ रहे आफ्टरशॉक बहुत बड़े हैं और ये आफ्टरशॉक अगले छह महीनों तक जारी रह सकते हैं. 

मियामोटो ने इस भूकंप को इस दशक की सबसे बड़ी आपदा बताते हुए कहा कि भूकंप से फॉल्टलाइन के लगभग 100 किलोमीटर लंबा हिस्सा प्रभावित हुआ है, जिससे एक से दो करोड़ लोगों पर असर पड़ा है. भूकंप से मृतकों का आंकड़ा अभी और बढ़ सकता है. इसमें कोई शक नहीं है कि मृतकों की संख्या 30000 से 40000 भी हो सकती है. देश के 10 प्रांतों में 10000 इमारतें ढह गई हैं. वहीं, पचास हजार से एक लाख इमारतें नष्ट हुई हैं. 

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उन्होंने बचाव अभियान के बारे में बताते हुए कहा कि सिर्फ इमारतों को नुकसान नहीं पहुंचा है बल्कि सड़कें और ब्रिज भी नष्ट हुए हैं, विशेष रूप से पहाड़ी इलाकों में. 

यह पूछने पर कि इतने बड़े पैमाने पर इमारतों के ढहने की क्या वजह रही? इस पर डॉ. मियामोटो ने कहा कि 1997 में तुर्की के बिल्डिंग कोड में बदलाव किया गया था. 1997 के बाद अगर इमारतों के निर्माण में मानकों का पालन किया जाता तो इमारतों को इतना नुकसान नहीं होता. तुर्की में पुरानी इमारतें कंक्रीट और ईंटों की है, जिस तरह से भारत में देखी जा सकती हैं. तुर्की में समय के साथ बिल्डिंग कोड में बदलाव हुआ. जिस तरह की इमारतों का निर्माण होना था, उसका पालन नहीं किया गया. इमारतों के निर्माण की इंजीनियरिंग में दिक्कत थी. बेशक, भूकंप में पुरानी इमारतें भी ढही हैं लेकिन हमारी टीम को पता चला है कि भूकंप में गिरी हर दस में एक इमारत बिल्कुल नई थी. 

तुर्की को नेपाल से सीखना था

उन्होंने कहा कि यह भूकंप बहुत शक्तिशाली था. तुर्की सरकार को इसके लिए तैयार रहना था. 1999 में यहां जिस तरह का भूकंप आया था, उसके बाद तो कम से कम सरकार को तैयारी रखनी थी. नेपाल में 2015 में भीषण भूकंप आया था, जिसके बाद वहां की सरकार ने तय मानकों के अनुरूप इमारतों का निर्माण करना शुरू किया. 

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उन्होंने कहा कि दुनियाभर में भूकंपों की संख्या बढ़ी है, भारत में भी यह आंकड़ा बढ़ा है. हम जानते हैं कि भारत हाई सेस्मिक जोन 4 में है. कई इमारतों का निर्माण तेजी से किया जा रहा है. घनी आबादी वाले खतरनाक इलाकों में गगनचुंबी इमारतों का निर्माण एक तरह से आपदा को न्योता है. 

तुर्की और सीरिया में बीते सोमवार को आए भीषण भूकंप में अब तक 19,300 लोगों की मौत हो गई है. मौतों का यह आंकड़ा जापान के फुकाशिमा सुनामी से भी अधिक है. राष्ट्रपति अर्दोगन ने भूकंप से प्रभावित 10 प्रांतों में तीन महीने के लिए आपातकाल का ऐलान किया है. स्कूलों को 13 फरवरी तक के लिए पहले ही बंद किया जा चुका है.

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