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तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन ने ग्लासगो समिट पर क्यों किया ये फैसला? सबको चौंकाया

ग्लासगो में जलवायु परिवर्तन के संकट के समाधान तलाशने के लिए जहां दुनिया भर के नेता जुटे हैं, वहीं तुर्की के राष्ट्रपति  रेसेप तईप एर्दोआन ने सुरक्षा का हवाला देकर ग्लासगो का दौरा रद्द कर दिया है. एर्दोआन ने सोमवार को कहा कि उन्होंने सुरक्षा प्रोटोकॉल पर विवाद के कारण ग्लासगो में COP26 जलवायु सम्मेलन में शामिल ना होने का फैसला किया है. 

एर्दोआन, फोटो क्रेडिट: रॉयटर्स एर्दोआन, फोटो क्रेडिट: रॉयटर्स
aajtak.in
  • नई दिल्ली ,
  • 02 नवंबर 2021,
  • अपडेटेड 5:12 PM IST
  • तुर्की के राष्ट्रपति ने रद्द किया ग्लासगो का दौरा
  • सुरक्षा कारणों के चलते वापस अपने देश गए अर्दोआन

स्कॉटलैंड की राजधानी ग्लासगो में जलवायु परिवर्तन के संकट के समाधान तलाशने के लिए जहां दुनिया भर के नेता जुटे हैं, वहीं तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन ने ऐन वक्त पर सुरक्षा का हवाला देकर ग्लासगो का दौरा रद्द कर दिया. एर्दोगन ने सोमवार को कहा कि उन्होंने सुरक्षा प्रोटोकॉल पर विवाद के कारण ग्लासगो में COP26 जलवायु सम्मेलन में शामिल ना होने का फैसला किया है. 

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एर्दोगन रोम में G20 शिखर सम्मेलन में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ बैठक करने के बाद स्कॉटलैंड में ग्लासगो की यात्रा करने वाले थे लेकिन फिर उन्होंने अपनी यात्रा कैंसिल कर दी. एर्दोगन तुर्की की अपनी उड़ान से पहले पत्रकारों से कहा कि ग्लासगो कार्यक्रम के आयोजक उनके प्रतिनिधिमंडल की सुरक्षा चिंताओं को दूर करने में विफल रहे हैं.

उन्होंने अपने बयान में कहा कि कुछ सुरक्षा प्रोटोकॉल थे जिनकी हमने मांग की थी. हमें अंतिम समय में बताया गया था कि हमारी मांगें पूरी नहीं हो पाएंगी. हमें बाद में पता चला कि इससे पहले भी एक देश के लिए अपवादस्वरूप कुछ कदम उठाए गए थे जो राजनयिक प्रोटोकॉल के खिलाफ है. हम इस बात को स्वीकार नहीं कर पाए. फिर हमने ग्लासगो नहीं जाने का फैसला किया. ये फैसला हमारे देश की प्रतिष्ठा को लेकर था. हम अपने देश के लोगों के हितों की रक्षा के लिए बाध्य हैं. हमने दिखाया है कि हम निष्पक्ष दृष्टिकोण से ही एक निष्पक्ष दुनिया का निर्माण कर सकते हैं.

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तुर्की-अमेरिका के तनावपूर्ण हालात के बीच बाइडेन-अर्दोआन की हुई थी मुलाकात

एर्दोगन ने इससे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से भी मुलाकात की. अमेरिका और तुर्की के रिश्तों में पिछले कुछ समय में तनाव देखने को मिला है. तुर्की के रूस निर्मित एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीदने से अमेरिका काफी भड़का था और तुर्की पर प्रतिबंध भी लगाए गए थे. तुर्की ने जब एस- 400 प्रणाली खरीदी थी तब उसे एफ-35 लड़ाकू विमानों को खरीदने के एक अमेरिकी कार्यक्रम से बाहर कर दिया था. अमेरिका को नाटो गठबंधन के भीतर रूसी प्रणाली के इस्तेमाल पर कड़ी आपत्ति है और उसका कहना है कि यह एफ-35 के लिए खतरा है. इसके चलते अमेरिका और तुर्की के बीच तीखी जुबानी जंग चली थी.

एर्दोगन ने कुछ समय पहले अमेरिका, जर्मनी और फ्रांस समेत कुल 10 देशों के राजदूतों के आंतरिक मामले में कथित दखल को लेकर उन्हें निष्कासित करने की बात कही थी. हालांकि, बाद में उन्होंने अपने कदम पीछे खींच लिए. एर्दोगन का यह फैसला राजदूतों के उस बयान के बाद आया था, जिसमें उन्होंने तुर्की के एक्टिविस्ट ओस्मान कवाला की तत्काल रिहाई की मांग की थी. 

इससे पहले सितंबर में तुर्की की समाचार समिति अनादोलु ने एर्दोगन के हवाले से कहा था कि 'मैं ईमानदारी से नहीं कह सकता हूं कि तुर्की-अमेरिकी संबंध में सब कुछ अच्छा चल रहा है.' यही कारण है कि मुलाकात के दौरान बाइडेन ने एर्दोगन से कहा था कि दोनों देशों के बीच जारी असहमतियों को बेहतर तरीके से डील करने की जरूरत है. 

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