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तुर्की में एर्दोगन के विरोधी कमाल की तुलना राहुल गांधी से क्यों हो रही?

तुर्की में राष्ट्रपति एर्दोगन को राष्ट्रपति चुनावों में विपक्षी गठबंधन के उम्मीदवार कमाल कलचदारलू से कड़ी टक्कर मिल रही है. तुर्की की विपक्षी पार्टी CHP और भारत की विपक्षी पार्टी कांग्रेस में काफी समानताएं हैं. ठीक उसी तरह कमाल कलचदारलू और राहुल गांधी के बीच भी कई समानताएं है जैसे दोनों ही नेताओं की छवि को सत्ताधारी पार्टी की तरफ से नुकसान पहुंचाने की कोशिश हुई है.

तुर्की के विपक्ष के नेता कमाल कलचदारलू और कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Photo- Reuters/AFP) तुर्की के विपक्ष के नेता कमाल कलचदारलू और कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Photo- Reuters/AFP)
इफ्तिखार गिलानी
  • तुर्की,
  • 17 मई 2023,
  • अपडेटेड 9:59 PM IST

एशिया के दो महान लोकतंत्र तुर्की और भारत हजारों मील दूर हो सकते हैं, रहन-सहन और विशेषताओं में अलग हैं लेकिन इन दोनों देशों में राजनीतिक हालात और नेताओं के व्यवहार में एक बड़ी समानता है. एक पत्रकार के रूप में दो दशक से अधिक समय तक भारत की राजनीति को कवर करने के बाद और 2019 से तुर्की की राजनीति को करीब से देखने के बाद, मुझे ऐसा लगता है कि तुर्की में भारत की राजनीति को हैरतअंगेज समानताओं के साथ दोहराया जा रहा है.
 
कई विश्लेषक वर्षों से तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शैली, शक्ति, कार्यप्रणाली और राजनीतिक अपील में समानता देखते आए हैं, यहां तक कि तुर्की की सत्तारूढ़ केंद्र-दक्षिणपंथी रूढ़िवादी जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी, जिसे एके पार्टी भी कहा जाता है, और भारतीय जनता पार्टी के बीच भी काफी समानताएं हैं. न केवल मुख्य विपक्षी दलों बल्कि अन्य छोटे दलों के बीच भी एक उल्लेखनीय समानता है.

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दिलचस्प बात यह है कि धर्मनिरपेक्ष केंद्र-वाम विपक्षी रिपब्लिकन पीपल्स पार्टी (CHP, तुर्की), जिसकी एक समृद्ध ऐतिहासिक विरासत है, भारत में कांग्रेस पार्टी जैसी ही समस्याओं से जूझ रही है. जिस तरह कांग्रेस, जिसने स्वतंत्रता संग्राम और गणतंत्र की स्थापना में भूमिका निभाई, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और कई अन्य स्वतंत्रता सेनानियों की विरासत का दावा करती है, उसी तरह CHP भी आधुनिक तुर्की के संस्थापक मुस्तफा कमाल अतातुर्क की विरासत का दावा करती है. अतातुर्क ने 9 सितंबर, 1923 को CHP की स्थापना की थी.

तुर्की और भारत की राजनीति में ढेरों समानताएं

समानताएं यहीं खत्म नहीं होतीं. CHP जिसने लगभग 33 सालों तक तुर्की पर शासन किया, 1979 के बाद से सत्ता में नहीं है. 1979 में पार्टी मुस्तफा बुलेंट एसेविट के नेतृत्व में मध्यावधि चुनाव हार गई थी. उसके बाद से पार्टी अलग-अलग सरकारों, कई राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों के लिए एक सहायक पार्टी बनी हुई है.

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लेकिन 2002 में राजनीतिक पटल पर एर्दोगन की एके पार्टी के उदय के साथ ही काला सागर के गरीब और कम विशेषाधिकार वाले क्षेत्रों, केंद्रीय अनातोलिया और पूर्वी अनातोलिया में पार्टी का प्रभाव नाटकीय रूप से कम हो गया है. यह ऐसा ही है जैसा यूपी और बिहार के हिंदी बेल्ट में कांग्रेस पार्टी सिमटती जा रही है.
 
CHP का राजनीतिक प्रभाव अब धनी कुलीन भूमध्यसागरीय (अक्डेनिज बोल्गेसी) और एजियन (एगे बोल्गेसी) क्षेत्रों तक सीमित है, जिसमें इस्तांबुल, इजमिर और अंकारा जैसे प्रमुख शहर शामिल हैं. पार्टी अभी तक देश के वंचित क्षेत्रों में प्रभाव बढ़ाने वाले एर्दोगन की काट नहीं ढूंढ पाई है. यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसकी परवाह तुर्की के शासकों ने गणतंत्र की स्थापना के बाद से ही नहीं की है.

CHP के नेता कमाल और कांग्रेस नेता राहुल गांधी एक जैसी समस्याओं से जूझ रहे

हाल ही में संपन्न चुनावों के पहले दौर में एर्दोगन को कड़ी टक्कर देने वाले इसके नेता, कमाल कलचदारलू को उसी तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जिसका सामना कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को अपना पुरानी पार्टी को पुनर्जीवित करने के प्रयास में करना पड़ा था.

74 वर्षीय पूर्व नौकरशाह (कमाल कलचदारलू) को उनके पतले कद और विनम्रता के कारण तुर्की का गांधी, या कभी-कभी कमाल गांधी भी कहा जाता है. उन्हें इस उपनाम से इसलिए भी बुलाया जाता है क्योंकि उन्हें देखकर दक्षिण अफ्रीका में कानून की पढ़ाई करने गए सूट और टाई पहने महात्मा गांधी की याद आती है. 

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Photo- Reuters

पूर्वी तुर्की में टुनसेली प्रांत के नाजिमिये जिले में जन्मे कमाल को 2010 में पार्टी अध्यक्ष नियुक्त किया गया था. उस वक्त पार्टी के अध्यक्ष रहे डेनिज बायकल को एक सेक्स टेप के लीक होने के बाद इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया था. पार्टी का कोई वरिष्ठ नेता मुश्किल की घड़ी में पार्टी की कमान संभालने को तैयार नहीं था, ऐसे वक्त में कमाल ने पार्टी की कमान संभाली थी.

कमाल कलचदारलू बनाम राहुल गांधी

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा जो भारत के दक्षिणी सिरे कन्याकुमारी से केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर तक, 4,080 किलोमीटर लंबी यात्रा थी, इससे बहुत पहले कमाल ने 2017 में अंकारा से राजधानी इस्तांबुल तक इसी तरह की यात्रा की थी.

Photo- ANI

उन्होंने कहा कि 432 किलोमीटर की उनकी पैदल यात्रा लोकलुभावनवाद के उदय के खिलाफ और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा में एकजुट होने के लिए है. गार्डियन में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कमाल मीडिया द्वारा तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करने और विपक्ष को अनदेखा करने की बात करते हैं, बिल्कुल राहुल गांधी की तरह.

उन्होंने कहा था, 'तुर्की में नए अधिनायकवाद की विशेषता हैं- सीमित विधायी शक्तियों वाली संसद, अखबार जो तथ्यों को गलत तरीके से पेश करते हैं और अक्सर सरकार के प्रवक्ता बन जाते हैं, विपक्ष की बदनामी करते हैं, अदालतें जो कहीं और तय किए फैसलों पर बस मुहर लगाती हैं.'

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उन्होंने लोगों से आग्रह किया कि वो इसके खिलाफ आवाज उठाएं और नए लोकतांत्रिक साधनों का विकास करें. कमाल ने कहा कि लोग अनुदार लोकलुभावन और नई पीढ़ी के तानाशाहों की शक्ति को चुनौती देने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नए लोकतांत्रिक साधनों का आदान-प्रदान करें.

Photo- Reuters

कमाल पर नहीं था विपक्ष को भरोसा

कमाल की राहुल के साथ एक और उल्लेखनीय समानता यह है कि विपक्षी दलों को उनके नेतृत्व में एर्दोगन के खिलाफ संयुक्त मोर्चा बनाने पर संदेह था. 

विपक्षी गठबंधन में शामिल नेशनलिस्ट टर्किश गुड पार्टी (IYI) की नेता, मेराल अक्सेनर ने चुनावों से पहले घोषणा की थी कि वह गठबंधन से अपना समर्थन वापस ले रही हैं क्योंकि गठबंधन ने कमाल को अपना उम्मीदवार बनाया. उनका मानना था कि कमाल एक कमजोर उम्मीदवार हैं और उन्होंने अंकारा के मेयर मंसूर यावस या इस्तांबुल के मेयर एक्रेम इमामोग्लू को गठबंधन का उम्मीदवार बनाए जाने की सिफारिश की थी.

लेकिन बाद में छह दलों का गठबंधन, जो बाद में चलकर 17 दलों का गठबंधन बन गया, ने महसूस किया कि कमजोर और कम प्रभावशाली कमाल को विनम्र नेता के रूप में पेश किया जा सकता है और इसलिए वो विपक्षी गठबंधन के मजबूत नेता बन गए. ठीक वैसे ही जैसे कांग्रेस ने संयुक्त मोर्चा को अप्रैल 1997 में कर्नाटक के मजबूत नेता एचडी देवेगौड़ा को प्रधानमंत्री पद से हटाने के लिए कम प्रभावशाली नेता इंदर कुमार गुजराल को नियुक्त करने के लिए मजबूर किया था.
 
जिस तरह भाजपा के रणनीतिकारों ने राहुल गांधी को पप्पू कहते हुए उनकी गलतियों का फायदा उठाने की पूरी कोशिश की है ताकि उन्हें एक ऐसे राजनेता के रूप में पेश किया जाए जिसे गंभीरता से नहीं लिया जाता हो, ठीक वैसे ही एर्दोगन भी कमाल की गलतियों पर निशाना साधने का एक मौका नहीं छोड़ते हैं.

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Photo- AFP

कमाल जब 2009 में इस्तांबुल के मेयर के लिए खड़े हुए तब उनके गलत उच्चारण की काफी चर्चा हुई. कोविड के दुनिया भर में फैलने से कुछ महीने पहले उन्होंने संसद में एक धमाकेदार भाषण दिया जिसमें उन्होंने स्वास्थ्य क्षेत्र पर बहुत अधिक पैसा खर्च करने और उन जगहों पर अस्पताल और हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण के लिए सरकार की आलोचना की, जहां कोई नहीं रहता है. इसके ठीक दो महीने बाद कोविड पूरी दुनिया में फैल गया जिसके बाद कमाल की काफी आलोचना हुई.

कमाल ने गठबंधन का नेतृत्व इस वादे के साथ संभाला है कि वो CHP का गौरव फिर से बहाल करेंगे और कमाल अतातुर्क की धर्मनिरपेक्ष विरासत को पुनर्जीवित करेंगे. हालांकि, जल्दी ही उन्होंने महसूस किया कि इस्लामवादियों और धार्मिक हलकों तक पहुंचने के लिए उन्हें पार्टी के संस्थापकों के धर्मनिरपेक्ष आदर्शों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है.

कमाल की आलोचना का कोई मौका नहीं छोड़ते एर्दोगन

हाल ही में वो तब विवादों मे पड़ गए जब उनकी एक तस्वीर वायरल हुई जिसमें वो नमाज के लिए बिछे गलीचे पर जूते पहने चलते दिख रहे थे. इस तस्वीर को लेकर रूढ़िवादी वोटर्स उनकी आलोचना करने लगे. दरअसल, रूढ़िवादियों का वोट हासिल करने की उम्मीद से उन्होंने अपनी एक तस्वीर पोस्ट की थी जिसमें वो रमजान के महीने में उपवास तोड़ते दिख रहे थे. लेकिन इस दौरान वो नमाज के लिए बिछे गलीचे पर जाने से पहले अपने जूते उतारना भूल गए.

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सांकेतिक तस्वीर-रॉयटर्स

इसे लेकर एर्दोगन ने तुरंत उन पर देश की संस्कृति से अनजान होने और मुस्लिम वोटर्स का अपमान करने का आरोप लगा दिया था.

रूढ़िवादियों को खुश करने की CHP की रणनीति

महाराष्ट्र की राजनीति में हिंदुत्व की चैंपियन शिवसेना ने धर्मनिरपेक्ष कांग्रेस के साथ गठबंधन कर लिया, यही बात तुर्की में भी दोहराई जा रही है. CHP ने अपने गठबंधन का विस्तार करने के लिए तुर्की में मुस्लिम ब्रदरहुड के समकक्ष तुर्की की सबसे बड़ी इस्लामवादी सआदत पार्टी के साथ गठबंधन कर लिया. यही नहीं बल्कि इस्लामवादी नेता तेमेल करमोल्लाग्लू ने कमाल को गठबंधन के उम्मीदवार के रूप में स्वीकार करने में दूसरी पार्टियों को मनाने में अहम भूमिका निभाई.

CHP के विरोधियों ने आशंका जताई है कि सत्ता में इस पार्टी की वापसी का मतलब है- महिलाओं के लिए हिजाब पहनने पर प्रतिबंध, अरबी में अजान और मस्जिदों में नमाज के लिए जाने वाले सरकारी कर्मचारियों पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा. CHP के कार्यकाल में नेताओं और जजों की नियुक्ति में सेना का भी दखल हुआ करता था जिसे एर्दोगन ने समाप्त कर दिया था.

Photo- Reuters

इसे लेकर कमाल के एक सहयोगी अकबर एलिसी ने CHP मुख्यालय में बात करते हुए कहा, 'अब हालात बदल चुके हैं. वो दौर गणतंत्र की स्थापना का प्रारंभिक दौर था. हमें साथ मिलकर रहना है और देश और सामाजिक सद्भाव के लिए काम करना है.'

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उन्होंने कहा कि उनके देश ने पश्चिमी अवधारणा के बजाय धर्मनिरपेक्षता के भारतीय वर्जन को अपनाना सीख लिया है, जो धर्म के प्रति शत्रुतापूर्ण नहीं है बल्कि सभी विचारधाराओं और धर्मों का सम्मान करता है.

हाल के वर्षों में कमाल ने गैर-अभिजात्य और गैर-धर्मनिरपेक्ष दलों को पार्टी में शामिल करने के लिए अपनी पार्टी से कमाल अतातुर्क को मानने वाली राष्ट्रवादी हस्तियों को हटा दिया. जिस तरह गुलाम नबी आजाद और कई अन्य प्रमुख नेताओं ने कांग्रेस छोड़ दी, उसी तरह CHP के महासचिव ओंदर साव, जो पार्टी में सबसे शक्तिशाली नेताओं में से एक माने जाते थे, कमाल का पहला निशाना बने. साव ने पहले डेनिज बायकल के इस्तीफे के बाद पार्टी की कमान संभालने में कमाल की मदद की थी.

रूढ़िवादियों को रिझाया लेकिन चुनाव में नहीं मिला ज्यादा फायदा

रूढ़िवादियों और CHP के बीच के फासले को कम करने के मकसद से कमाल महिलाओं को हिजाब पहनने के अधिकार की गारंटी देने के लिए एक विधेयक भी लेकर आए थे. उन्होंने संसद में अपना अंतिम भाषण कुरान की आयत 'बिस्मिल्लाह' के साथ शुरू किया था, जिसका अर्थ है 'अल्लाह के नाम पर.'

बाद में उन्हें शुक्रवार की नमाज में भाग लेते देखा गया. ठीक वैसे ही जैसे 2017 में कांग्रेस पार्टी ने किया था जब उसने घोषणा की थी कि राहुल गांधी जनेऊ धारी हैं. उस रणनीति के तहत राहुल गांधी ने मंदिरों और मस्जिदों की यात्रा करके नरम हिंदुत्व का रास्ता अपनाया था.

Photo- PTI

लेकिन विडंबना यह है कि एक इंद्रधनुषी गठबंधन बनाने और रूढ़िवादियों, राष्ट्रवादियों को खुश करने के बावजूद भी CHP का वोट शेयर हाल ही में संपन्न चुनावों में 25 प्रतिशत पर रहा. संसद की 600 सीटों में से CHP केवल 169 सीटें जीतने में सफल रही. CHP ने गठबंधन की पार्टियों के साथ मिलकर एर्दोगन के 49.5 प्रतिशत की तुलना में मात्र 35 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 213 सीटें जीतीं.

आम आदमी पार्टी के समकक्ष तुर्की में भी एक पार्टी है. पूर्व वित्त मंत्री अली बाबा कैन, जिन्होंने तुर्की के आर्थिक बदलाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, ने अपनी खुद की डेमोक्रेसी एंड एंटरप्रेन्योरशिप पार्टी (DEVA) बनाई है. उनकी पार्टी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ती है. शुरुआत में DEVA ने एके पार्टी और CHP नेतृत्व के गठबंधन दोनों से समान दूरी बनाए रखने की कोशिश की थी लेकिन अंत में जाकर यह विपक्षी गठबंधन में शामिल हो गई.
 

(लेखक भारतीय पत्रकार हैं और इस समय तुर्की की राजधानी अंकारा में हैं. इस लेख में व्यक्त उनके विचार निजी हैं, आजतक की उनसे सहमति अनिवार्य नहीं है.)

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