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UAE के मुस्लिम संगठन ने कहा- इस्लाम पर भारत से सीखे दुनिया

यूएई के मुस्लिम परिषद में भारतीय इस्लाम के रूप को लेकर एक किताब निकाली है. किताब में कई जाने-माने विशेषज्ञों के लेख शामिल है. किताब में लिखा गया है कि भारतीय इस्लाम का मॉडल दुनिया भर के मुसलमानों के लिए एक अच्छे उदाहरण के रूप में काम कर सकता है.

विदेश के मुस्लिम परिषद ने की भारतीय इस्लाम की तारीफ (Photo- Reuters) विदेश के मुस्लिम परिषद ने की भारतीय इस्लाम की तारीफ (Photo- Reuters)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 19 मई 2022,
  • अपडेटेड 6:29 PM IST
  • यूएई के मुस्लिम परिषद ने भारतीय इस्लाम को लेकर निकाली किताब
  • किताब में भारतीय इस्लाम की तारीफ
  • भारतीय इस्लाम के मॉडल को बताया गया और देशों के लिए उदाहरण

संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के विश्व मुस्लिम समुदाय परिषद ने भारत के इस्लामिक मॉडल की तारीफ की है.

परिषद ने इस्लाम पर एक किताब 'धर्मशास्त्र, न्यायशास्त्र और समकालिक परंपरा: इस्लाम का स्वदेशीकरण' प्रकाशित की है. इस किताब में कहा गया है कि इस्लाम के किसी एक रूप को सर्वोच्च मानना गलत है. इस्लाम को जगह के हिसाब से ढाला जाना चाहिए.

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, किताब में इस्लाम के 'सच्चे' प्रतिनिधित्व के रूप में पेश किए जा रहे धर्म के 'अरबीकरण' पर चर्चा की गई है. मुस्लिम परिषद के वरिष्ठ शोधकर्ता डॉ अब्बास पनक्कल ने किताब पर बात करते हुए कहा, 'अरब संस्कृति को इस्लाम के रूप में बढ़ावा देने और इस्लाम के बस एक प्रकार को मानने में कई तरह की दिक्कतें हैं.'

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किताब में ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय, वैंकूवर के डॉ सेबेस्टियन आर प्रांज, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के डॉ मोइन अहमद निजामी और नालसर यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ, हैदराबाद के डॉ. फैजान मुस्तफा के लेख शामिल हैं.

भारतीय इस्लाम का मॉडल है बेहतरीन मिसाल: मुस्लिम परिषद

डॉ सेबेस्टियन आर प्रांज ने इस किताब में 'मॉनसून इस्लाम' शब्द इजाद किया है. ये शब्द इस्लाम धर्म की विविधता को प्रदर्शित करता है. उन्होंने ये शब्द अरब व्यापारियों को ध्यान में रखते हुए इजाद किया है जो मॉनसून हवाओं की दिशा के बाद दक्षिण एशिया की यात्रा करते थे.

इस्लाम को बढ़ावा देने वाले वो सामान्य अरब व्यापारी न तो किसी सरकार के प्रतिनिधि थे और न ही मान्यता प्राप्त धार्मिक अधिकारी थे. उन व्यापारियों ने मुस्लिम गढ़ों के बाहर इस्लाम को विकसित किया जो स्थानीय संस्कृति को आत्मसात किए हुए था. इस इस्लाम में धर्म के मूल को ज्यों का त्यों बनाए रखा गया. प्रांज का कहना है कि मालाबार तट के किनारे की मस्जिदें हिंदू और मुस्लिम वास्तुकला के मेल का जीवंत उदाहरण हैं.

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उन्होंने किताब में दक्षिण भारत के कुछ मंदिरों में हिंदुओं और मुसलमानों दोनों के द्वारा पूजा किए जाने का भी जिक्र किया है.

वहीं, किताब में शामिल अपने एक लेख में डॉ. मुस्तफा कहते हैं कि मुस्लिम शासकों ने मंदिरों को अनुदान देकर, गोहत्या पर प्रतिबंध लगाकर और हिंदुओं को महत्वपूर्ण पदों पर रखकर सांस्कृतिक मेलजोल को बढ़ावा दिया. उन्होंने लिखा कि ऐतिहासिक किताब 'चचनामा' के अनुसार, मुसलमानों ने ईसाइयों और यहूदियों की तरह ही हिंदुओं को अपनत्व दिया.

डॉ. मुस्तफा लिखते हैं कि कुछ मुस्लिम शासकों ने अपने सिक्कों पर देवी लक्ष्मी और भगवान शिव के बैल की आकृतियां भी उकेरी हैं.

अबूधाबी स्थित मुस्लिम परिषद का मानना ​​है कि भारतीय इस्लाम मॉडल 'दुनिया भर में कई मुस्लिम समुदायों के लिए एक अच्छे उदाहरण के रूप में काम कर सकता है.'

मुस्लिम परिषद की ये पहल केरल में ज्यादा महत्व रखती है जहां ये माना जाता है कि अरब देशों से आया इस्लाम आधिकारिक धर्म है. इसमें स्थानीय किस्मों को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति है. लगभग दो दशक पहले खाड़ी सलाफी और मुजाहिद आंदोलन पर इसके प्रभाव को लेकर एक किताब आई थी जिस पर केरल में काफी चर्चा हुई थी. 

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