
यूक्रेन के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की रविवार को हुई बैठक में हुई वोटिंग के दौरान भारत, चीन और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) अनुपस्थित रहे. इससे पहले भी शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूसी हमले की निंदा करने वाले प्रस्ताव को लेकर वोटिंग से भारत ने दूरी बना ली थी. रविवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में यूक्रेन पर रूसी हमले के खिलाफ यूएन की आम सभा बुलाने की मांग के समर्थन में 11 देशों ने वोट किया जबकि रूस ने इसके खिलाफ वोट किया.
भारत ने रूस के खिलाफ पेश हुए प्रस्ताव के समर्थन में वोट भले नहीं किया लेकिन एक साफ संदेश जरूर दिया. संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टी.एस. तिरुमूर्ति ने कहा, शुक्रवार को यूएनएससी की बैठक के बाद से यूक्रेन में हिंसा और बढ़ गई है जो अफसोसजनक है. तिरुमूर्ति ने वार्ता और कूटनीति के जरिए समस्या का समाधान करने की अपील की. उन्होंने कहा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूक्रेन और रूस दोनों देशों के राष्ट्रपति से बात की है और भारत बेलारूस सीमा पर दोनों देशों के बीच बातचीत की पहल का स्वागत करता है.
भारत अपनी रक्षा जरूरतों और रूस से पुरानी दोस्ती को देखते हुए अभी तक अपने सभी बयानों में रूसी हमले का जिक्र करने और उसकी निंदा करने से बचता रहा है. हालांकि, भारत के लिए अब तटस्थ रुख बनाए रखना आसान नहीं रह गया है. पश्चिमी देशों की तरफ से भारत पर लगातार दबाव बढ़ रहा है कि वह खुलकर रूस के हमले की आलोचना करे.
तिरुमूर्ति ने यूएन में भारत के रुख को लेकर दिए स्पष्टीकरण में क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता की बात की. उन्होंने कहा, 'वैश्विक व्यवस्था अंतरराष्ट्रीय नियमों, यूएन चार्टर और सभी देशों की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के सम्मान पर आधारित है. हम सभी इन सिद्धांतों से सहमत हैं.'
भारत ने यूक्रेन में फंसे अपने नागरिकों की वापसी को लेकर भी चिंता जाहिर की. तिरुमूर्ति ने कहा, सीमा पर बने जटिल हालात की वजह से भारतीयों छात्रों को यूक्रेन से बाहर निकालने के हमारे प्रयासों को झटका लगा है. लोगों की आवाजाही में किसी तरह की रुकावट नहीं आनी चाहिए. ये मानवीय जरूरत है जिस पर तत्काल ध्यान दिए जाने की जरूरत है.
चीन ने भी वोटिंग से बनाई दूरी लेकिन भारत से अलग रुख
भारत की तरह चीन ने भी यूएनएसी की वोटिंग से दूरी बनाई है. भारत और चीन ने यूक्रेन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का भले ही समर्थन किया है लेकिन कहा जा रहा है कि चीन और भारत के रुख में काफी फर्क है. भारत जहां रूस और अमेरिका दोनों के साथ रिश्तों में संतुलन साधने की कोशिश कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ चीन का झुकाव रूस की तरफ है.
चीन के राजदूत झांग जुन ने 25 फरवरी को वोटिंग पर दिए अपने बयान में कहा, हमारा मानना है कि एक देश की सुरक्षा दूसरे देश की सुरक्षा की कीमत पर नहीं हो सकती है. क्षेत्रीय सुरक्षा इलाके में शक्ति प्रदर्शन और सैन्य गुट के विस्तार से नहीं की जा सकती है. सभी देशों की वैध सुरक्षा चिंताओं का सम्मान किया जाना चाहिए. पूर्व में नाटो के विस्तार के पांच सफल चरणों के बाद रूस की वैध सुरक्षा चिंताओं पर ध्यान दिया जाना चाहिए और उनका समाधान होना चाहिए.
भारत की तरह चीन के भी काफी छात्र यूक्रेन में फंसे हुए हैं, ऐसे में चीन में लोगों को आगाह किया जा रहा है कि सोशल मीडिया पर यूक्रेन के खिलाफ ज्यादा आक्रामक रुख ना अपनाएं. इससे वहां रह रहे चीनी छात्रों को लोगों के गुस्से का शिकार होना पड़ सकता है.