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ट्रंप ने अपने मन से 'गल्फ ऑफ मैक्सिको' का नाम बदल दिया, लेकिन क्या इससे वाकई फर्क पड़ता है?

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 'गल्फ ऑफ मैक्सिको' का नाम बदलकर 'गल्फ ऑफ अमेरिका' कर दिया है, लेकिन यह बदलाव सिर्फ अमेरिका के अंदर लागू होगा. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह मान्य नहीं होगा क्योंकि किसी भी देश को अकेले समुद्री क्षेत्र का नाम बदलने का अधिकार नहीं है.

ट्रंप के नाम बदलने के बाद गूगल मैप्स अब अमेरिका की खाड़ी को US में दिखाता है. ट्रंप के नाम बदलने के बाद गूगल मैप्स अब अमेरिका की खाड़ी को US में दिखाता है.
नलिनी शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 13 फरवरी 2025,
  • अपडेटेड 1:39 PM IST

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत में कई कार्यकारी आदेश जारी किए हैं. इनमें से एक बड़ा फैसला यह है कि अमेरिका ने 'गल्फ ऑफ मैक्सिको' का नाम बदलकर 'गल्फ ऑफ अमेरिका' कर दिया है. अमेरिका में इस नाम को आधिकारिक रूप से लागू करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है.  

कैसे बदला नाम?  

अमेरिका के 'बोर्ड ऑन जियोग्राफिक नेम्स' (US Board on Geographic Names), जो आधिकारिक रूप से जगहों के नाम तय करता है, उसे ट्रंप सरकार ने 'जियोग्राफिक नेम्स इंफॉर्मेशन सिस्टम' (GNIS) में इस बदलाव को लागू करने के लिए कहा है. इसके अलावा गूगल और एप्पल जैसी बड़ी टेक कंपनियों ने भी अपने मैपिंग प्लेटफॉर्म पर इस बदलाव को लागू कर दिया है.  

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अब अमेरिका में गूगल मैप्स पर यह जल क्षेत्र 'गल्फ ऑफ अमेरिका' के नाम से दिख रहा है, जबकि मेक्सिको में इसे अभी भी 'गल्फ ऑफ मैक्सिको' ही कहा जा रहा है. बाकी दुनिया के लिए दोनों नाम दिखाए जा रहे हैं – 'गल्फ ऑफ मैक्सिको' और ब्रैकेट में 'गल्फ ऑफ अमेरिका.'  

बिना पूछे लिया गया फैसला  

अमेरिका ने यह फैसला अकेले लिया है. जबकि इस जल क्षेत्र से सिर्फ अमेरिका नहीं जुड़ा है, बल्कि मेक्सिको और क्यूबा भी इसके तट से लगे हैं. ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या अमेरिका को बिना किसी देश से पूछे यह नाम बदलने का अधिकार है?  

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किसी भी देश को अकेले ही किसी समुद्री क्षेत्र का नाम बदलने का अधिकार नहीं है. इसके लिए आमतौर पर सभी संबंधित देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों जैसे 'यूनाइटेड नेशन्स ग्रुप ऑफ एक्सपर्ट्स ऑन जियोग्राफिकल नेम्स' (UNGEGN) और 'इंटरनेशनल हाइड्रोग्राफिक ऑर्गनाइजेशन' (IHO) से मंजूरी लेनी होती है. जब तक अमेरिका, मेक्सिको और क्यूबा आपसी सहमति से इस बदलाव को मान्यता नहीं देते, तब तक यह फैसला अंतरराष्ट्रीय कानून में कोई मान्यता नहीं रखता. सीधे शब्दों में कहें तो, अमेरिका का यह फैसला सिर्फ अमेरिका के लिए मान्य है, दुनिया के लिए नहीं.  

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गूगल और एप्पल को मानना जरूरी नहीं  

ट्रंप के इस फैसले को लागू करने के लिए गूगल और एप्पल जैसी कंपनियों को बाध्य नहीं किया जा सकता. आमतौर पर ये कंपनियां वही नाम अपनाती हैं जिन्हें अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं मान्यता देती हैं. हालांकि, गूगल ने अपने ट्विटर हैंडल पर बताया कि वे सरकारी रिकॉर्ड में अपडेट होने वाले नामों को अपनाने की पुरानी नीति पर चलते हैं. इसलिए, अमेरिका के सरकारी डेटाबेस GNIS में बदलाव होने के बाद उन्होंने अपने मैप्स पर भी यह नाम बदला है.  

नाम को लेकर पहले भी हुए हैं विवाद  

ऐसा पहली बार नहीं हुआ जब किसी जल क्षेत्र के नाम को लेकर विवाद हुआ हो. दुनिया में कई जगहों के नाम ऐतिहासिक, राजनीतिक और राष्ट्रीय पहचान से जुड़े विवादों में फंसे हुए हैं.  

पर्शियन गल्फ बनाम अरबियन गल्फ: ईरान और अरब देशों के बीच इस बात पर विवाद है कि इस जल क्षेत्र को 'पर्शियन गल्फ' कहा जाए या 'अरबियन गल्फ'. ईरान इसे ऐतिहासिक नाम 'पर्शियन गल्फ' से बुलाने की बात करता है, जबकि सऊदी अरब और यूएई इसे 'अरबियन गल्फ' कहने की मांग करते हैं.
  
सी ऑफ जापान बनाम ईस्ट सी: जापान और साउथ कोरिया के बीच इस जल क्षेत्र के नाम को लेकर मतभेद हैं. जापान इसे 'सी ऑफ जापान' कहता है, जबकि साउथ कोरिया इसे 'ईस्ट सी' के नाम से बुलाने की मांग करता है.
  
साउथ चाइना सी पर विवाद: चीन और फिलीपींस के बीच साउथ चाइना सी को लेकर विवाद है. वियतनाम और चीन के बीच गल्फ ऑफ टोंकिन को लेकर भी यही स्थिति है.  

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इंग्लिश चैनल पर विवाद: यूके और फ्रांस के बीच इंग्लिश चैनल का नाम विवाद का विषय रहा है.  

पहले भी पानी को लेकर हुआ है विवाद   

अमेरिका और मेक्सिको के बीच पानी को लेकर यह पहला विवाद नहीं है. दोनों देशों के बीच लंबे समय से एक नदी को लेकर मतभेद हैं. दोनों देशों के बीच लंबे समय से उस नदी को लेकर मतभेद रहा है जो दक्षिणी कोलोराडो से मैक्सिको की खाड़ी तक बहती है. 16 मिलियन से अधिक लोगों के यह नदी जीवन रेखा का काम करती है. अमेरिका में इसे 'रियो ग्रांडे' कहा जाता है, जबकि मेक्सिको में इसे 'रियो ब्रावो' के नाम से जाना जाता है. हालांकि, दोनों देशों ने एक-दूसरे के नाम को मान्यता दी है. हालांकि, असली विवाद नदी के पानी के बंटवारे को लेकर है.

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