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...जब अमेरिका ने अपने गुलामों को बसाने के लिए विदेश में जमीन खरीदकर बसा दिया नया देश

अमेरिका कभी भी सिर्फ गोरों की धरती नहीं थी. अमेरिका तो रेड इंडियंस की धरती थी जो कि 19वीं सदी तक घटकर सिर्फ 2 फीसदी रह गए. लेकिन अमेरिका उनसे भी ज्यादा आबादी थी अफ्रीकी अश्वेतों की. गुलामों के रूप में अमेरिका लाए गए अप्रीकी अश्वेतों की आबादी वैसे तो 15 फीसदी थी लेकिन उनकी गिनती नहीं थी. वे तो गुलाम थे.

उस देश की कहानी जिसे अमेरिका ने विदेश में जमीन खरीदकर बसा दिया. (Image- Getty)) उस देश की कहानी जिसे अमेरिका ने विदेश में जमीन खरीदकर बसा दिया. (Image- Getty))
संदीप कुमार सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 02 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 10:31 AM IST

क्या आपने किसी ऐसे देश के बारे में सुना है जिसे किसी और देश ने विदेश में जमीन खरीदकर बसाया हो और उसे भी अपने गुलामों के लिए. मतलब एक पूरा देश बसा दिया गया हो गुलामों को बसाने के लिए. हां, ऐसा हुआ है और उसका कनेक्शन अमेरिका से जुड़ा हुआ है. अभी अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव की गहमागहमी तेज हो रही है तो ऐसे में अमेरिका के इतिहास पर एक नजर डालना तो बनता है. अमेरिका के चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप जीतें या कमला हैरिस लेकिन उसका नतीजा पूरी दुनिया को लेकर नीतियों में बदलाव के रूप में देखने को मिलेगा. इसलिए अमेरिकी हिस्ट्री की इस अहम कहानी को जानना बहुत जरूरी है.)

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अमेरिका यानी अंकल सैम के अतीत, वर्तमान और भविष्य सबका असर दुनिया के बाकी देशों पर भी होता है. अमेरिकी इतिहास में कई ऐसे विलुप्त अध्याय रहे हैं जिनके बारे में आज भले ही कम लोग जानते हों लेकिन उसका संदेश बहुत व्यापक रहा है. लिंकन, मार्टिन लूथर किंग-जूनियर और केनेडी का ये देश 1776 में आजाद हुआ था यानी भारत की आजादी से भी 171 साल पहले.

कभी हिप्पियों और जिप्सियों का देश कहा जाने वाला अमेरिका नाम का ये मुल्क लगातार बदलता रहा... जैज म्यूजिक के दौर से पॉप म्यूजिक तक लाइफस्टाइल बदला तो सिविल सोसाइटी, नागरिक अधिकारों और अश्वेत लोगों से नस्लीय भेदभाव मिटाने के कदमों जैसे कई मानवीय सुधारों पर भी आगे बढ़कर अमेरिका जैसे मुल्क ने दुनिया को कई पाठ पढ़ाए. आज हम उस दौर की बात कर रहे हैं जब गुलामी खत्म करने के लिए अमेरिका ने जमीन खरीदकर एक नया मुल्क ही बना दिया.

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गुलामी की कहानी

अमेरिका कभी भी सिर्फ गोरों की धरती नहीं थी. अमेरिका तो रेड इंडियंस की धरती थी जो कि 19वीं सदी तक घटकर सिर्फ 2 फीसदी रह गए. लेकिन अमेरिका उनसे भी ज्यादा आबादी थी अफ्रीकी अश्वेतों की. गुलामों के रूप में अमेरिका लाए गए अप्रीकी अश्वेतों की आबादी वैसे तो 15 फीसदी थी लेकिन उनकी गिनती नहीं थी. वे तो गुलाम थे. अंग्रेजों के साथ आए आयरिश मजदूरों की जगह इन्होंने कब की ले ली थी लेकिन उनके पास कोई अधिकार नहीं था. गुलाम बनाया वहां कानूनी था. वे दो सौ वर्षों से अमेरिकी खेतों में काम कर रहे थे, अमेरिका की राजधानी में इमारतें बना रहे थे, अमेरिका को उद्योग का केंद्र बना रहे थे, पीढ़ी-दर-पीढ़ी.

लेकिन कुछ लोग थे जिन्हें अमेरिका में गुलामी की ये प्रथा दर्द देती थी, मानवीय दर्द. उनके मन में ये सवाल उठता कि एक इंसान दूसरे इंसान का गुलाम कैसे हो सकता है? बात अब्राहम लिंकन से भी बहुत पहले की है. अमेरिकी राष्ट्रपति जेम्स मुनरो ने उनको मुक्त करने की सोची. नॉर्थ के राज्यों से उन्हें मुक्त भी किया गया लेकिन अब सवाल उठा कि आजाद हुए ये लोग जाएं कहां. क्या वापस अफ्रीका?

फिर आया नया देश बसाने का आइडिया. आइए जानते हैं क्या है उस देश की कहानी जिसे अमेरिका ने विदेश में जमीन खरीदकर बसा दिया.

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नए देश बसाने का आइडिया...

वे पीढ़ियों से यहां रहते आए थे. उन्हें तो अफ्रीका में अपने पूर्वजों का गांव-घर भी मालूम नहीं था. फिर राष्ट्रपति जेम्स मुनरों और कुछ धनी सामंतों ने उन्हें बसाने के लिए अफ्रीका में जमीन तलाशनी शुरू की. इलाका चुना गया पश्चिमी अफ्रीका का. वहां जमीन खरीदकर एक देश बनाया गया- लाइबेरिया यानी लैंड ऑफ लिबरेशन. इसकी राजधानी बनाई गई मुनरो के नाम पर मुनरोविया. उसे अमेरिका जैसा झंडा भी मिला जो आज तक है.

किनका रोल था नए देश के पीछे?

अमेरिकी राष्ट्रपति जेम्स मुनरो के अलावा जिन लोगों ने लाइबेरिया को बसाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई उनमें प्रमुख थे- पॉल कफ़े जो अमेरिकी कॉलोनाइजेशन सोसायटी के संस्थापक और पहले अध्यक्ष थे. उन्होंने लाइबेरिया की स्थापना के लिए जमीन खरीदने और बस्ती स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. जेडेडाया बी. क्रूम जो लाइबेरिया के पहले गवर्नर थे. उन्होंने 1822 में लाइबेरिया में बस्ती स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और देश के पहले नेता बने.  रॉबर्ट एलिस जो लाइबेरिया के दूसरे गवर्नर थे. उन्होंने देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और लाइबेरिया को एक स्वतंत्र देश बनाने में मदद की. जोसेफ जेनकिंस रॉबर्ट्स लाइबेरिया के पहले राष्ट्रपति थे. उन्होंने 1848 में लाइबेरिया को एक स्वतंत्र देश घोषित किया और देश के पहले राष्ट्रपति बने.

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पैसा कैसे जुटाया गया?

लाइबेरिया को बसाने के लिए अमेरिका ने लगभग 1 मिलियन डॉलर खर्च किए, जो उस समय के हिसाब से एक बड़ी राशि थी. यह राशि अमेरिकी कॉलोनाइजेशन सोसायटी द्वारा एकत्र की गई थी, जिसमें कई अमेरिकी नागरिकों और संगठनों ने योगदान दिया था. अमेरिकी सरकार ने 1819 में एक अधिनियम पारित किया, जिसमें लाइबेरिया की स्थापना के लिए 100,000 डॉलर की राशि आवंटित की गई थी.

इसके अलावा, अमेरिकी कॉलोनाइजेशन सोसायटी ने लाइबेरिया की स्थापना के लिए धन जुटाने के लिए अभियान चलाया और कई अमेरिकी नागरिकों से योगदान प्राप्त किया. कई अमेरिकी नागरिकों ने व्यक्तिगत रूप से लाइबेरिया की स्थापना के लिए धन दान किया, जिनमें अमेरिकी राजनेता और सीनेटर जॉन कैलहून ने 10,000 डॉलर का योगदान दिया, तो अमेरिकी राजनेता और सीनेटर हेनरी क्ले ने 5,000 डॉलर और अमेरिकी राजनेता और वकील डैनियल वेबस्टर ने 2,000 डॉलर का योगदान दिया.

(Image- Getty)

कहां और कैसे बसे लोग?

लाइबेरिया बनने से पहले उस जगह पर विभिन्न अफ्रीकी जनजातियां रहती थीं. अमेरिकी कॉलोनाइजेशन सोसायटी ने 1822 में लाइबेरिया की स्थापना के लिए दीओला जनजाति के नेता से 36,000 एकड़ जमीन खरीदी, जिसकी कीमत 300 डॉलर थी. यह जमीन लाइबेरिया की राजधानी मोनरोविया के आसपास के क्षेत्र में थी.फिर बस्ती स्थापित करने के लिए काम शुरू किया गया. उन्होंने पहले बसने वालों को लाने के लिए जहाज भेजे और उन्हें जमीन दी.

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हालांकि, कई अफ्रीकी जनजातियों ने नई बस्ती बसाने का विरोध भी किया क्योंकि वे अपनी जमीन और स्वतंत्रता को खोने के डर से आशंकित थे. अमेरिकी कोशिश का ब्रिटिश सरकार ने भी विरोध किया. दास मालिक भी विरोध कर रहे थे. उन्हें डर था कि गुलामों की आजादी से वे अपने दासों को खो देंगे. लेकिन इन विरोधों के बावजूद, अमेरिकी कॉलोनाइजेशन सोसायटी ने लाइबेरिया की स्थापना के लिए काम जारी रखा और धीरे-धीरे देश को विकसित किया.

अनोखे देश की चुनौतियां...

लाइबेरिया की कहानी दिलचस्प और अनोखी है. यह एक ऐसा देश है जो अमेरिकी दासों के वंशजों द्वारा स्थापित किया गया था, जो स्वतंत्रता और समानता की तलाश में थे. यह कहानी 18वीं शताब्दी में शुरू होती है, जब अमेरिका में दास प्रथा अपने चरम पर थी. कई अमेरिकी दास स्वतंत्रता की तलाश में थे, लेकिन उन्हें अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ता था. इसी समय, अमेरिकी कॉलोनाइजेशन सोसायटी ने पश्चिम अफ्रीका में एक बस्ती स्थापित करने का फैसला किया. इस सोसायटी का उद्देश्य था दासों को स्वतंत्रता दिलाना और उन्हें एक नए जीवन की शुरुआत करने का अवसर प्रदान करना. इस सोसायटी ने पश्चिम अफ्रीका में जमीन खरीदी और वहां बस्ती स्थापित की. इस बस्ती का नाम लाइबेरिया रखा गया, जिसका अर्थ है 'स्वतंत्रता'. लाइबेरिया की स्थापना 1822 में हुई.

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लाइबेरिया का नाम लैटिन शब्द 'लिबर' से लिया गया है, जिसका अर्थ है 'स्वतंत्रता'.  लेकिन लाइबेरिया की यात्रा आसान नहीं थी. देश को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जैसे कि आर्थिक संकट, राजनीतिक अस्थिरता और सामाजिक तनाव. लाइबेरिया के निवासियों को अपनी पहचान और स्वतंत्रता की लड़ाई लड़नी पड़ी. इसका इतिहास उतार-चढ़ाव से भरा हुआ है. लाइबेरिया की स्थापना के बाद, वहां कई अमेरिकी दासों के वंशज बसने लगे. वे अपने साथ अमेरिकी संस्कृति और राजनीतिक व्यवस्था भी लाए. लाइबेरिया की सरकार अमेरिकी सरकार की तर्ज पर बनाई गई थी, जिसमें राष्ट्रपति, सीनेट और प्रतिनिधि सभा शामिल थे.

कैसा है आज का लाइबेरिया?

आज का लाइबेरिया तबके अमेरिकी सपने से काफी अलग है, ये देश भी बाकी अफ्रीकी देशों की तरह गृहयुद्ध और आर्थिक अव्यवस्था से उबरने का प्रयास कर रहा है. आधिकारिक तौर पर लाइबेरिया गणराज्य, अफ्रीका के पश्चिमी तट पर स्थित एक देश है, जिसकी सीमाएं सिएरा लिओन, गिनी, कोट द आइवोर और अटलांटिक महासागर से मिलती है.

1980 में यहां सेना ने तख्ता पलट कर राष्ट्रपति विलियम आर. टालबोर्ट को पद से हटा दिया. इसके साथ ही अस्थिरता का दौर शुरू हुआ, जो बाद में गृहयुद्ध में तब्दील हो गया, जिसमें हजारों-लाखों लोगों को जहां जान गंवानी पड़ी, वहीं देश की अर्थव्यवस्था बर्बादी के कगार पर पहुंच गई. अब वहां के राष्ट्रपति जोसेफ बोआकाई हैं. आज ये देश  111,369 वर्ग किलोमीटर के एरिया में फैला हुआ है. यहां की आबादी है करीब 39 लाख है. मानव विकास सूचकांक में ये देश 175वें नंबर पर आता है.

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क्या अब अमेरिका से लाइबेरिया का कनेक्शन है?

शुरुआत में जब अमेरिका ने इस देश को बनाया था तो वहां आजाद हुए अफ्रीकियों को भेजा जाने लगा. लेकिन पीढ़ियों तक गुलाम रहे लोगों को नया मुल्क कितना रास आता. कुछ खेपों के बाद लोग जाने को तैयार नहीं थे. देश तो बन गया था लेकिन जो अमेरिका से गुलामी से निकलकर जा रहे थे उनकी आबादी कम ही रह गई. आज वे अमेरिकी गुलाम वंशज उस देश में महज पांच प्रतिशत ही रह गए हैं.

बसने के 15 साल बाद यानी कि 1847 में लाइबेरिया ने खुद को अमेरिका से आजाद घोषित कर दिया और अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश की. हालांकि, आज भी लाइबेरिया और अमेरिका के बीच राजनयिक संबंध हैं. अमेरिका लाइबेरिया को आर्थिक सहायता देता है. कई लाइबेरियाई लोग अमेरिका में रहते भी हैं. अमेरिकी विश्वविद्यालय लाइबेरिया में शैक्षिक कार्यक्रम चलाते हैं और लाइबेरियाई छात्र अमेरिका में पढ़ने जाते हैं. हालांकि, लाइबेरिया के बाकी मामलों में अब अमेरिका का हस्तक्षेप ना के बराबर है.

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