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भूटान का शुक्रगुजार क्यों रहता है बांग्लादेश? ये है वजह

Vijay Diwas 2021: बांग्लादेश आज अपनी आजादी की 50वीं वर्षगांठ मना रहा है. बांग्लादेश को सबसे पहले भारत और भूटान ने स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता दी थी. इनके मान्यता देने के बाद ही रूस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में युद्धविराम के लिए मतदान किया था.

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 16 दिसंबर 2021,
  • अपडेटेड 11:38 AM IST
  • बांग्लादेश की आजादी की 50वीं वर्षगांठ
  • भारत और भूटान का रहा है शुक्रगुजार
  • भारत-भूटान ने सबसे पहले दी थी मान्यता

Vijay Diwas 2021: आज बांग्लादेश की आजादी की 50वीं वर्षगांठ है जिसे भारत 'विजय दिवस' के रूप में मनाता है. 16 दिसंबर 1971 को भारत के सशस्त्र बलों ने पूर्वी पाकिस्तान को लंबे संघर्ष से मुक्ति दिलाई जिससे एक नया देश बांग्लादेश बना. हालांकि, भारत और भूटान ने बांग्लादेश को 10 दिन पहले ही 6 दिसंबर को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता दे दी थी. राजनयिक रिश्तों के 50 साल पूरे होने पर बांग्लादेश के विदेश मंत्री डॉ अब्दुल एके मोमेन ने भारत और भूटान, दोनों ही देशों का शुक्रिया अदा किया था.

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मोमेन ने बांग्लादेश के राष्ट्रीय प्रेस क्लब में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा था कि भारत की मान्यता के बाद रूस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में युद्धविराम के लिए वोट किया था. मोमेन ने साथ ही कहा कि उनका देश भूटान का भी शुक्रगुजार है.

बांग्लादेश क्यों है भूटान का शुक्रगुजार?

बांग्लादेश को भारत और भूटान ने 6 दिसंबर 1971 को मान्यता दी थी जिसकी मदद से वो संयुक्त राष्ट्र में रूस का समर्थन पाने में कामयाब रहा. हालांकि, भारत से पहले भूटान ने बांग्लादेश को आधिकारिक तौर पर मान्यता दे दी थी जिसे लेकर बांग्लादेश भूटान का सदा शुक्रगुजार रहता है.

पहले इस बात को लेकर कई तरह के भ्रम थे कि बांग्लादेश को मान्यता सबसे पहले भारत ने दी या भूटान ने. साल 2014 में बांग्लादेश के तत्कालीन विदेश सचिव एम शाहिदुल हक ने स्पष्ट किया था कि भारत की घोषणा के कुछ घंटे पहले ही भूटान की तरफ से बांग्लादेश को स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता देने की घोषणा हो गई थी.

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भारत ने शुरुआत से ही दिया था बांग्लादेश का साथ

बांग्लादेश के आजादी की लड़ाई में भारत ने हर तरह से मदद की. आवामी लीग और शेख मुजीबुर रहमान को भारत की तरफ से समर्थन दिया गया. भारतीय सेना की पूर्वी कमांड को पूर्वी पाकिस्तान के ऑपरेशन्स की जिम्मेदारी दी गई थी.

15 मई 1971 को भारतीय सेना ने 'ऑपरेशन जैकपॉट' लॉन्च किया. इसके तहत मुक्ति वाहिनी, जो कि पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान में बांग्लादेश) की मिलिट्री और नागरिकों की सेना थी, को हथियार, पैसा और सभी जरूरी सामान की सप्लाई शुरू की गई. 

इस वजह से युद्ध में शामिल हुआ था भारत
हालांकि, भारत प्रत्यक्ष युद्ध में शामिल नहीं हुआ था. 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान की वायु सेना ने भारतीय हमले की आशंका को देखते हुए पश्चिमी क्षेत्र पर हमला कर दिया. इस हमले के जवाब में भारत ने 4 दिसंबर को भारत के खिलाफ युद्ध का ऐलान कर दिया.
युद्ध शुरू होने के 13 दिन बाद 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया. इस युद्ध के दौरान भारत ने एक करोड़ से अधिक शरणार्थियों को अपने यहां शरण दी थी. 

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