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1971 War: 2 लाख महिलाओं से रेप, ढाका की सड़कों पर कत्लेआम... पाकिस्तानी बर्बरता से जब बांग्लादेश को बचाने उतरी इंडियन आर्मी!

आजादी का सूरज देखने के लिए बांग्लादेश को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी. इस दौरान बड़े पैमाने पर कत्लेआम हुआ, तकरीबन दो लाख महिलाओं का रेप किया गया. आलम ये था कि एक तरफ शेख मुजीबुर्रहमान की अगुवाई में 1971 का युद्ध लड़ा जा रहा था. तो दूसरी तरफ महिलाएं अपनी गरिमा और सम्मान को बचाने की जंग लड़ रही थीं. 

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aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 16 दिसंबर 2024,
  • अपडेटेड 10:24 AM IST

1971 का साल बांग्लादेश के साथ-साथ भारत और पाकिस्तान के लिए भी काफी अहम था. इस साल बांग्लादेश ने अपने वजूद की लड़ाई लड़ी. बांग्लादेश ने पाकिस्तान के साए से अलग होकर नए राष्ट्र के रूप में उभरने की जंग लड़ी, जिसमें भारत ने बखूबी उसका साथ दिया. 

लेकिन आजादी का सूरज देखने के लिए बांग्लादेश को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी. इस दौरान बड़े पैमाने पर कत्लेआम हुआ, तकरीबन दो लाख महिलाओं का रेप किया गया. आलम ये था कि एक तरफ शेख मुजीबुर्रहमान की अगुवाई में 1971 का युद्ध लड़ा जा रहा था. तो दूसरी तरफ महिलाएं अपनी गरिमा और सम्मान को बचाने की जंग लड़ रही थीं. 

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पाकिस्तानी फौज की बर्बरता...

ढाका के लिबरेशन वॉर म्यूजियम के मुताबिक, इस युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना ने दो लाख से चार लाख बंगाली महिलाओं का रेप किया. 25 मार्च से 16 दिसंबर 1971 के बीच तीस लाख बंगालियों की मौत हुई, दो लाख महिलाओं से रेप किया गया जबकि इस दौरान एक करोड़ लोगों को विस्थापित होना पड़ा. 

बांग्लादेश युद्ध के दौरान हुई इस यौन हिंसा को आधुनिक इतिहास में सामूहिक बलात्कार (Mass Rape) का सबसे बड़ा मामला बताया जाता है. 1971 में युद्ध के दौरान रेप की राजनीति पर रिसर्च कर चुकीं मानवविज्ञानी नयनिका मुखर्जी कहती हैं कि युद्ध के दौरान रेप राजनीतिक हथियार बन जाता है. यह जीत का राजनीतिक हथकंडा और दुश्मन समुदाय के सम्मान पर आघात के समान है. 

लेकिन इसकी शुरुआत कैसे हुई?

1947 में बंगाल का पूर्वी और पश्चिमी बंगाल में विभाजन हुआ था. पश्चिम बंगाल भारत के अधीन ही रहा जबकि पूर्वी बंगाल का नाम बदलकर पूर्वी पाकिस्तान हो गया, जो पश्चिमी पाकिस्तान (पाकिस्तान) के अधीन था. यहां एक बड़ी संख्या बांग्ला बोलने वाले बंगालियों की रही और यही कारण था कि भाषाई आधार पर पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) ने पाकिस्तान के प्रभुत्व से बाहर निकलने की कोशिश की और आजादी का बिगुल बजाया. 

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1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान एक अनुमान के अनुरूप लगभग एक करोड़ लोग बांग्लादेश से भागकर भारत आ गए थे. इन लोगों ने उस समय पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और असम जैसे इलाकों में शरण ली थी.

यह कोई पहला मौका नहीं था, जब इतनी बड़ी संख्या में बांग्लादेश के लोगों ने भारत में शरण ली थी. इससे पहले 1960 के दशक में भी ऐसा देखने को मिला था. 1964 में पूर्वी पाकिस्तान के दंगों और 1965 में भारत और पाकिस्तान युद्ध के दौरान भी कहा जाता है कि लगभग छह लाख लोग भारत की सीमा में दाखिल हुए थे. वहीं, 1946 और 1958 के बीच लगभग 41 लाख और 1959 से 1971 के बीच 12 लाख बांग्लादेशी भारत आए थे. 

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